नई दिल्ली, 4 अप्रैल 2025, शुक्रवार। अयोध्या के राजर्षि दशरथ स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार एक बार फिर सुर्खियों में हैं, लेकिन इस बार वजह उनका कोई नेक काम नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार का सनसनीखेज कारनामा है। कमीशनबाजी और वसूली के चक्कर में उन्होंने सारे नियम-कानून को ताक पर रखकर सरकारी खजाने को करोड़ों का चूना लगा दिया। बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी पर रहते हुए भी टेंडर जारी करना और 2 करोड़ से ज्यादा की रकम खर्च कर देना—यह कहानी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं है। आइए, इस पूरे प्रकरण को करीब से समझते हैं।
बीमारी का बहाना, शासन को ठगा
डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार ने इलाज के नाम पर शासन से छुट्टी की अनुमति ली और अपना चार्ज डॉ. पारस खरबंदा को सौंप दिया। लेकिन छुट्टी पर रहते हुए भी उनकी हरकतें रुकी नहीं। जांच में सामने आया है कि 4 जनवरी 2025 से 19 जनवरी 2025 तक अवकाश की अवधि में उन्होंने 20 मेडिकल उपकरणों के लिए GEM (Government e-Marketplace) कॉन्ट्रैक्ट पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान सरकारी खजाने से 2 करोड़ 12 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। हैरानी की बात यह है कि अवकाश पर रहते हुए और चार्ज किसी और के पास होने के बावजूद उनके पास वित्तीय मामलों में हस्ताक्षर करने का कोई अधिकार ही नहीं था। फिर भी, शासन को गुमराह कर यह कारनामा कर डाला।
करोड़ों का खेल, नियमों की धज्जियां
मौजूदा प्राचार्य डॉ. सत्यजीत वर्मा ने इस घोटाले का पर्दाफाश करते हुए शासन को विस्तृत रिपोर्ट भेजी है। उनके मुताबिक, डॉ. ज्ञानेंद्र ने न सिर्फ नियमों को तोड़ा, बल्कि सरकारी धन का अनधिकृत उपयोग कर भ्रष्टाचार को नई ऊंचाई दी। GEM कॉन्ट्रैक्ट के जरिए टेंडर जारी करना और भुगतान करना, वह भी तब जब उनके पास कोई अधिकार नहीं था—यह सब सुनियोजित साजिश का हिस्सा लगता है। जांच में यह भी खुलासा हुआ कि यह पहला मौका नहीं है जब ज्ञानेंद्र कुमार विवादों में घिरे हैं। उनके खिलाफ लोकायुक्त और विजिलेंस की कई जांचें पहले से चल रही हैं, लेकिन वह शासन के हर आदेश को ठेंगे पर रखते आए हैं।
हटाए गए, फिर भी सरकारी आवास पर कब्जा
डॉ. ज्ञानेंद्र को भ्रष्टाचार के आरोपों में उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम और चिकित्सा शिक्षा मंत्री ब्रजेश पाठक के आदेश पर अयोध्या मेडिकल कॉलेज से हटा दिया गया था। उन्हें 16 जनवरी 2025 को डीजी चिकित्सा शिक्षा (DGME) कार्यालय से संबद्ध किया गया, लेकिन आज तक उन्होंने वहां जॉइनिंग नहीं दी। इतना ही नहीं, कॉलेज से हटाए जाने के बाद भी वह सरकारी आवास पर कब्जा जमाए बैठे हैं। यह उनकी बेशर्मी और नियमों के प्रति उदासीनता का जीता-जागता सबूत है।
FIR की तलवार लटकी, कार्रवाई की मांग तेज
मौजूदा प्राचार्य डॉ. सत्यजीत वर्मा ने डॉ. ज्ञानेंद्र के “काले चिट्ठे” को शासन के सामने रखते हुए सख्त कार्रवाई की सिफारिश की है। सूत्रों के मुताबिक, वित्तीय अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के पुख्ता सबूतों के आधार पर जल्द ही उनके खिलाफ FIR दर्ज हो सकती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर चल रही है, और इस मामले में भी कड़ा एक्शन तय माना जा रहा है। विजिलेंस और लोकायुक्त की जांच में अगर और बड़े खुलासे हुए, तो यह घोटाला कई और सिरों को लपेटे में ले सकता है।
एक भ्रष्टाचारी की बेशर्मी की कहानी
डॉ. ज्ञानेंद्र कुमार की यह हरकत न सिर्फ उनके व्यक्तिगत चरित्र पर सवाल उठाती है, बल्कि सरकारी तंत्र में भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका भी उदाहरण है। बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी लेना, टेंडर जारी करना, करोड़ों रुपये खर्च करना, और फिर शासन के आदेशों को नजरअंदाज करना—यह सब एक सुनियोजित खेल का हिस्सा लगता है। अयोध्या जैसे पवित्र शहर में मेडिकल कॉलेज जैसी महत्वपूर्ण संस्था को भ्रष्टाचार का अड्डा बनाना निंदनीय है।
क्या होगा आगे?
यह मामला अब जनता के बीच चर्चा का विषय बन गया है। लोग सवाल उठा रहे हैं कि आखिर कब तक ऐसे भ्रष्टाचारी नियमों को ताक पर रखकर मनमानी करते रहेंगे? शासन से लेकर जनता तक, सभी की निगाहें अब इस बात पर टिकी हैं कि डॉ. ज्ञानेंद्र के खिलाफ क्या कार्रवाई होती है। क्या यह सिर्फ एक और जांच बनकर रह जाएगा, या सचमुच सजा का रास्ता खुलेगा? जवाब का इंतजार है, लेकिन इतना तय है कि यह घोटाला अयोध्या मेडिकल कॉलेज के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज हो चुका है।
अब सवाल यह है कि क्या सरकार इस भ्रष्टाचार की सजा दे पाएगी, या यह भी एक और फाइल बनकर दफ्तरों में दफन हो जाएगा? जनता इंसाफ की उम्मीद में है, और समय ही बताएगा कि इस कहानी का अंत क्या होगा।