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Sunday, July 20, 2025

वक्फ संशोधन बिल 2025: सुप्रीम कोर्ट में चुनौती और उठते सवाल

नई दिल्ली, 4 अप्रैल 2025, शुक्रवार। वक्फ (संशोधन) बिल 2025, जो हाल ही में संसद के दोनों सदनों से पारित हुआ, अब सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंच गया है। इस बिल के खिलाफ पहली याचिका बिहार के किशनगंज से कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने दाखिल की है, जबकि इसके तुरंत बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने भी इसकी वैधानिकता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। यह मामला अब सिर्फ एक विधेयक का नहीं, बल्कि संविधान, नागरिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता की लड़ाई का प्रतीक बन गया है।

पहली याचिका: मोहम्मद जावेद का दांव

बिहार के किशनगंज से लोकसभा सांसद और कांग्रेस के व्हिप मोहम्मद जावेद ने वक्फ संशोधन बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। उनकी याचिका में दावा किया गया है कि यह बिल संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 25 (धार्मिक स्वतंत्रता), 26 (धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता) और 29 (अल्पसंख्यक अधिकारों) का उल्लंघन करता है। जावेद, जो वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 पर संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य भी रहे हैं, इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण और उनकी धार्मिक स्वायत्तता पर हमला मानते हैं। उनका कहना है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अनुचित सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ावा देता है, जो संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

ओवैसी की हुंकार: “यह संविधान पर हमला है”

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी इस बिल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनकी याचिका में इसे “असंवैधानिक” करार देते हुए कहा गया है कि यह बिल नागरिक अधिकारों और संविधान के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर करता है। ओवैसी ने संसद में भी इस बिल का कड़ा विरोध किया था और प्रतीकात्मक रूप से इसकी कॉपी फाड़कर अपना रोष जाहिर किया था। उनकी दलील है कि यह विधेयक मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रहार है और वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने जैसे प्रावधान इस्लामी परंपराओं के खिलाफ हैं। ओवैसी इसे “मुस्लिम विरोधी” बताते हुए कहते हैं, “यह बिल हमारी मस्जिदों, दरगाहों और मदरसों को निशाना बना रहा है।”

वक्फ संशोधन बिल: क्या है विवाद?

वक्फ (संशोधन) बिल 2025, जिसे लोकसभा में 2 अप्रैल और राज्यसभा में 3 अप्रैल को लंबी बहस के बाद पास किया गया, वक्फ अधिनियम 1995 में बदलाव का प्रस्ताव करता है। सरकार का दावा है कि यह बिल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाएगा और इसमें महिलाओं व गैर-मुस्लिमों को शामिल कर समावेशिता को बढ़ावा देगा। लेकिन विपक्ष और मुस्लिम संगठन इसे वक्फ की स्वायत्तता पर हमला मानते हैं। बिल में कलेक्टर को यह अधिकार देने का प्रावधान है कि वह किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति माने या न माने, जिसे कई लोग “कलेक्टर राज” की वापसी के रूप में देखते हैं। इसके अलावा, वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि अन्य धार्मिक संस्थानों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

सड़क से कोर्ट तक: बढ़ता विरोध

वक्फ बिल के खिलाफ न सिर्फ संसद में हंगामा हुआ, बल्कि सड़कों पर भी विरोध प्रदर्शन देखने को मिले। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने इसे “वक्फ संपत्तियों पर कब्जे की साजिश” करार दिया और इसके खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन की चेतावनी दी। कांग्रेस, DMK और अन्य विपक्षी दलों ने भी इस बिल को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, “हम संविधान पर हर हमले का जवाब देंगे। यह बिल मुस्लिम समुदाय के अधिकारों को कुचलने की कोशिश है।”

सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा?

यह पहला मौका नहीं है जब संसद से पारित किसी कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई हो। इससे पहले चुनावी बॉन्ड योजना को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया था, जबकि अनुच्छेद 370 को हटाने के फैसले को बरकरार रखा था। वक्फ बिल के मामले में कोर्ट संविधान के नजरिए से इसकी जांच कर सकता है। क्या यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है? क्या यह समानता के अधिकार के खिलाफ है? ये सवाल कोर्ट के सामने होंगे। हालांकि, कुछ लीगल एक्सपर्ट्स का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट संसद की संप्रभुता में हस्तक्षेप से बच सकता है, जब तक कि संवैधानिक उल्लंघन स्पष्ट न हो।

एक नई जंग की शुरुआत

वक्फ संशोधन बिल को लेकर शुरू हुई यह लड़ाई अब सड़क, संसद और अदालत—तीनों मोर्चों पर लड़ी जा रही है। यह सिर्फ एक कानून का मसला नहीं, बल्कि धार्मिक पहचान, संवैधानिक अधिकारों और सामाजिक न्याय का सवाल बन गया है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला न सिर्फ इस बिल का भविष्य तय करेगा, बल्कि यह भी संदेश देगा कि भारत में संविधान और अल्पसंख्यक अधिकारों की कितनी कद्र है। क्या यह बिल वाकई पारदर्शिता की राह खोलेगा, या यह धार्मिक स्वायत्तता पर चोट साबित होगा? जवाब का इंतजार अब देश को है।

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