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Sunday, July 20, 2025

जनजातियों की जमीन को वक्फ से मुक्ति: एक ऐतिहासिक कदम और खुशी की लहर

नई दिल्ली, 3 अप्रैल 2025, गुरुवार। केंद्र सरकार ने एक ऐसा फैसला लिया है, जिसने देश के जनजातीय समुदायों के चेहरों पर मुस्कान बिखेर दी है। हाल ही में पेश किए गए वक्फ संशोधन विधेयक में जनजातियों की जमीन को वक्फ के दायरे से बाहर रखने का प्रावधान किया गया है। यह विधेयक बुधवार को लोकसभा में पेश हुआ और देर रात 288 मतों के भारी समर्थन से पारित हो गया। इस कदम की सराहना करते हुए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम ने केंद्र सरकार के इस निर्णय का दिल खोलकर स्वागत किया है।

वनवासी कल्याण आश्रम की मेहनत रंग लाई

वनवासी कल्याण आश्रम ने इस मुद्दे को लेकर लंबे समय से आवाज उठाई थी। संगठन ने देश भर के विभिन्न हिस्सों में संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के सामने अपना पक्ष रखा और ज्ञापन सौंपे। इनमें बताया गया कि संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाले जनजातीय क्षेत्रों में संवैधानिक नियमों और कानूनों का उल्लंघन करते हुए बड़ी मात्रा में वक्फ की जमीनें और संपत्तियां दर्ज की गई थीं। आश्रम का मानना था कि यह जनजातियों के हितों पर सीधा हमला था।

इन तथ्यों को संज्ञान में लेते हुए जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश की कि वक्फ विधेयक में जनजातीय जमीनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। आश्रम के पिछले 15 दिनों के अथक प्रयासों का नतीजा यह रहा कि अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने लोकसभा में ऐलान किया कि संविधान की पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत आने वाली जनजातीय भूमि अब वक्फ के दायरे से पूरी तरह बाहर रहेगी। इसी प्रावधान के साथ यह विधेयक संसद में मंजूरी के लिए पारित हुआ।

जनजातीय क्षेत्रों में खुशी का माहौल

इस फैसले की खबर जैसे ही जनजातीय इलाकों में पहुंची, वहां खुशी और संतोष की लहर दौड़ गई। यह निर्णय न केवल जनजातियों की जमीन को सुरक्षित करता है, बल्कि उनके अधिकारों और पहचान को भी मजबूती देता है। वनवासी कल्याण आश्रम के राष्ट्रीय अध्यक्ष सत्येंद्र सिंह ने इस कदम के लिए भाजपा नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का आभार जताया और कहा, “यह जनजातीय समुदायों के लिए एक ऐतिहासिक जीत है। हम सरकार के इस संवेदनशील और साहसिक फैसले का अभिनंदन करते हैं।”

एक नई शुरुआत

यह संशोधन विधेयक न सिर्फ कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जनजातीय समुदायों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। वनवासी कल्याण आश्रम का मानना है कि यह कदम जनजातियों के हितों की रक्षा के साथ-साथ संवैधानिक मूल्यों को भी मजबूत करेगा। देश भर में बसे जनजातीय समुदाय अब इस उम्मीद के साथ आगे बढ़ रहे हैं कि उनकी जमीन, उनकी संस्कृति और उनका भविष्य सुरक्षित हाथों में है।

केंद्र सरकार का यह फैसला निस्संदेह एक नई शुरुआत का प्रतीक है, जहां न्याय और समानता की भावना को प्राथमिकता दी गई है।

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