नई दिल्ली, 3 अप्रैल 2025, गुरुवार। प्रधानमंत्री म्यूजियम एंड लाइब्रेरी (PMML) ने एक बार फिर सुर्खियां बटोरी हैं, और इस बार मामला है देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निजी पत्रों का। PMML ने कांग्रेस की दिग्गज नेता सोनिया गांधी को एक पत्र लिखकर उनसे नेहरू से जुड़े महत्वपूर्ण दस्तावेजों को वापस करने की गुहार लगाई है। ये वही दस्तावेज हैं, जिन्हें सोनिया गांधी ने साल 2008 में अपने पास रख लिया था। लेकिन अब तक उनके ओर से इस पत्र का कोई जवाब नहीं आया है। तो आखिर क्या है इस कहानी के पीछे का सच? चलिए, इसे करीब से समझते हैं।
पत्रों की वापसी की मांग क्यों?
PMML ने अपने पत्र में साफ कहा है कि ये दस्तावेज शोधकर्ताओं के लिए बेहद जरूरी हैं। इनमें नेहरू के उस दौर के पत्र शामिल हैं, जो आधुनिक भारतीय इतिहास की गहराई को समझने में मदद कर सकते हैं। म्यूजियम का कहना है कि इन कागजातों तक पहुंच न केवल शोध को बढ़ावा देगी, बल्कि इतिहास के उन अनछुए पहलुओं को भी सामने लाएगी, जो अब तक छिपे हुए हैं। खास बात ये है कि यह पत्र PMML की नई सोसाइटी की पहली वार्षिक आम बैठक से ठीक पहले लिखा गया। इससे पहले फरवरी 2024 में पुरानी सोसाइटी ने भी इस मुद्दे पर चर्चा की थी।
51 बक्सों का रहस्य
बात 2008 की है, जब सोनिया गांधी ने नेहरू से जुड़े 51 बक्सों को PMML से वापस ले लिया था। इनमें जयप्रकाश नारायण, एडविना माउंटबेटन, अल्बर्ट आइंस्टाइन, अरुणा आसफ अली, विजया लक्ष्मी पंडित और जगजीवन राम जैसे दिग्गजों के साथ नेहरू के पत्र शामिल हैं। ये दस्तावेज मूल रूप से 1971 में इंदिरा गांधी ने PMML को दान किए थे, और बाद में सोनिया गांधी ने भी इसे आगे बढ़ाया। लेकिन 2008 में इन्हें वापस लेने का फैसला क्यों लिया गया, यह सवाल आज भी अनुत्तरित है।
पिछले साल रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में हुई PMML की बैठक में भी इन पत्रों पर लंबी चर्चा हुई। सोसाइटी के सदस्यों ने एकमत से कहा कि इन दस्तावेजों को वापस लाना जरूरी है। साथ ही, इनके मालिकाना हक, कस्टडी, कॉपीराइट और उपयोग को लेकर कानूनी सलाह लेने की बात भी उठी।
PMML में नया नेतृत्व, नई उम्मीदें
15 जनवरी 2025 को PMML की एक्जीक्यूटिव काउंसिल का पुनर्गठन हुआ। प्रधानमंत्री के पूर्व चीफ सेक्रेट्री नृपेंद्र मिश्रा को पांच साल के लिए अध्यक्ष चुना गया। इस नई टीम में स्मृति ईरानी, राजीव कुमार, सैयद अता हुसैन, शेखर कपूर और वासुदेव कामथ जैसे नाम शामिल हैं। यह नया नेतृत्व इस मामले को और गंभीरता से ले रहा है, और शायद यही वजह है कि सोनिया गांधी को यह पत्र लिखा गया।
सवाल जो बाकी हैं
सोनिया गांधी इन दस्तावेजों को क्यों अपने पास रखना चाहती हैं? क्या इनमें कुछ ऐसा है, जो सार्वजनिक होने से इतिहास की तस्वीर बदल सकती है? या फिर यह सिर्फ एक प्रशासनिक मसला है? PMML का कहना है कि ये पत्र देश की धरोहर हैं, और इन्हें शोधकर्ताओं के लिए उपलब्ध कराना जरूरी है। लेकिन सोनिया गांधी की चुप्पी इस मामले को और रहस्यमयी बना रही है।
फिलहाल, यह कहानी अधूरी है। क्या सोनिया गांधी इन दस्तावेजों को लौटाएंगी? या फिर यह विवाद और गहराएगा? जवाब का इंतजार तो हमें करना होगा, लेकिन इतना तय है कि नेहरू के ये निजी पत्र भारतीय इतिहास के पन्नों में एक नया अध्याय जोड़ने की कूवत रखते हैं।