नई दिल्ली, 2 अप्रैल 2025, बुधवार। सहारनपुर के सांसद और कांग्रेस नेता इमरान मसूद ने वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर केंद्र सरकार पर जमकर हमला बोला। उन्होंने इसे सहिष्णुता और विविधता के खिलाफ एक खतरनाक कदम करार दिया, जो देश के संविधान की मूल भावना को कमजोर करता है। मसूद का कहना था कि यह विधेयक न सिर्फ अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर चोट करता है, बल्कि सामाजिक लोकतंत्र की नींव को भी हिलाने की कोशिश है, जिसे बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर ने संविधान में सुनिश्चित किया था।
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम बहुमत क्यों?
इमरान मसूद ने विधेयक के प्रावधानों पर सवाल उठाते हुए कहा कि वक्फ बोर्ड में 22 सदस्य होंगे, लेकिन उनमें से सिर्फ 10 मुस्लिम होंगे। इसका मतलब साफ है कि गैर-मुस्लिम सदस्यों का बोर्ड में बहुमत होगा। उन्होंने तंज कसते हुए काशी विश्वनाथ ट्रस्ट का उदाहरण दिया। मसूद ने कहा कि वहां नियम है कि डीएम पदेन अधिकारी होता है, लेकिन अगर डीएम मुस्लिम हुआ तो उसकी जगह कोई और अधिकारी अध्यक्ष बनाया जाएगा। “यह दोहरा मापदंड क्यों?” मसूद ने पूछा। उनका कहना था कि मुस्लिम समुदाय की जरूरतों को वही समझ सकता है, जो उसकी संस्कृति और परंपराओं से वाकिफ हो। “90 फीसदी लोग ‘पाकी और नापाकी’ का मतलब नहीं बता सकते, यह सिर्फ मुसलमान ही समझ सकते हैं,” उन्होंने जोड़ा।
विवादित संपत्तियों पर सरकार की नजर
मसूद ने विधेयक के एक-एक प्रावधान को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने बताया कि नए नियम के मुताबिक, सिर्फ वही संपत्ति वक्फ बोर्ड के दायरे में आएगी, जो पूरी तरह विवाद से मुक्त हो। लेकिन हकीकत यह है कि उत्तर प्रदेश में 1,15,000 हेक्टेयर वक्फ की जमीन को सरकारी घोषित किया जा चुका है और उस पर विवाद चल रहा है। “अब इस बिल के बाद यह संपत्ति वक्फ की नहीं रहेगी,” मसूद ने चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि विवादों को सुनने का अधिकार ट्राइब्यूनल से छीनकर सरकार के पास चला जाएगा, लेकिन यह साफ नहीं है कि फैसला कब तक होगा। “जब तक विवाद खत्म नहीं होता, संपत्ति पर सरकार का कब्जा रहेगा। इससे अतिक्रमण करने वालों को खुला मौका मिलेगा,” मसूद ने आरोप लगाया।
क्या किसी और ट्रस्ट के साथ ऐसा हो रहा है?
कांग्रेस नेता ने सरकार से सवाल किया, “कोई दूसरा धार्मिक ट्रस्ट बताइए, जहां दूसरे धर्म के लोगों की एंट्री हो रही हो। आपकी नजर हर समुदाय की जमीन पर है।” उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि सरकार की ओर से हाल ही में “सौगात-ए-मोदी” मिली थी, जिसमें “ईद की सेवाइयां” थीं। “हमें ऐसी सौगात नहीं चाहिए। हमें वह सौगात दीजिए, जिसमें हमारे सीने पर गोलियां न चलें। हमें समानता का हक दीजिए, हमारी रक्षा कीजिए,” मसूद ने भावुक अपील की।
संविधान की आत्मा को बचाने की लड़ाई
इमरान मसूद ने कहा कि संविधान सभी नागरिकों को समानता और संरक्षण की गारंटी देता है। “आंबेडकर ने कहा था कि राजनीतिक लोकतंत्र तभी टिकेगा, जब उसकी जड़ों में सामाजिक लोकतंत्र मजबूत हो। यह बिल उस वादे को तोड़ रहा है,” उन्होंने जोर देकर कहा। मसूद ने विधेयक तैयार करने वालों पर भी निशाना साधा। उनका कहना था कि इसे बनाने वाले ज्यादातर लोग वक्फ की बारीकियों से अनजान थे। “वक्फ का प्रबंधन पहले ही सरकार के हाथ में है, फिर यह बदलाव क्यों?” उन्होंने सवाल उठाया।
अंत में, मसूद ने इस विधेयक को संविधान और सामाजिक न्याय के खिलाफ एक साजिश करार दिया। उनकी यह हुंकार न सिर्फ वक्फ संपत्तियों के भविष्य पर सवाल उठाती है, बल्कि देश में समानता और सहिष्णुता की लड़ाई को भी नई आवाज देती है।