नई दिल्ली, 2 अप्रैल 2025, बुधवार। लोकसभा में इन दिनों वक्फ संशोधन बिल को लेकर हलचल मची हुई है। बुधवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस बहस में अपनी बात रखते हुए न सिर्फ बिल के पक्ष में मजबूत तर्क दिए, बल्कि विपक्ष को भी आईना दिखाया। शाह ने साफ कहा, “वक्फ बोर्ड में एक भी गैर-मुस्लिम को शामिल नहीं किया जाएगा और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक मामलों में कोई दखल नहीं होगा।” यह बयान न केवल सरकार के इरादों को स्पष्ट करता है, बल्कि विवादों को शांत करने की कोशिश भी दिखाता है।
लालू यादव का जिक्र, कांग्रेस पर निशाना
शाह ने बहस को रोचक मोड़ देते हुए आरजेडी नेता लालू प्रसाद यादव का पुराना बयान छेड़ा। उन्होंने कहा, “2013 में लालू यादव ने वक्फ संपत्तियों की चोरी रोकने के लिए सख्त कानून की मांग की थी। लेकिन कांग्रेस ने उनकी यह इच्छा पूरी नहीं की। अब पीएम मोदी ने वह काम कर दिखाया।” शाह का यह तंज कांग्रेस के लिए करारा जवाब था। उन्होंने आगे कहा कि यह बिल पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होगा, यानी पुराने मामलों पर भी नजर रखी जाएगी।
कलेक्टर की भूमिका पर सवाल क्यों?
शाह ने जमीन के मालिकाना हक के सत्यापन पर जोर देते हुए कहा, “कलेक्टर का काम जमीन की सच्चाई जांचना है। अगर वह वक्फ संपत्ति का सत्यापन करता है, तो इसमें आपत्ति क्यों?” उन्होंने विपक्ष से पूछा, “क्या आप नहीं चाहते कि सरकारी या निजी जमीन को वक्फ के नाम पर हड़पने से रोका जाए?” शाह ने यह भी दावा किया कि 2014 के चुनावों से पहले तुष्टिकरण की राजनीति के चलते लुटियंस दिल्ली की 123 प्रमुख संपत्तियां और तमिलनाडु में तिरुचेंदूर मंदिर की 400 एकड़ जमीन वक्फ को सौंप दी गई थी। उनका कहना था कि अगर 2013 में संशोधन सही तरीके से हुए होते, तो आज इस बिल की जरूरत ही नहीं पड़ती।
सबूत दो, आरोप मत लगाओ
सीएए, अनुच्छेद 370, ट्रिपल तलाक और राम मंदिर जैसे मुद्दों पर विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए शाह ने चुनौती दी, “यह बताएं कि एक भी मुसलमान की नागरिकता छीनी गई हो। उमर अब्दुल्ला आज जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री हैं, फिर ये आरोप क्यों?” उनका यह बयान न सिर्फ सरकार के रुख को मजबूत करता है, बल्कि विपक्ष को सबूत पेश करने की कठिन स्थिति में भी डालता है।
वक्फ संपत्ति पर नई नीति
शाह ने साफ किया कि अब सिर्फ घोषणा से कोई जमीन वक्फ की संपत्ति नहीं बनेगी। एएसआई, सरकार, आदिवासी समुदाय और निजी नागरिकों की जमीन कानून से सुरक्षित रहेगी। साथ ही, शिया, पसमांदा, अहमदिया, बोहरी जैसे मुस्लिम समुदायों को वक्फ के बजाय ट्रस्ट रजिस्टर करने की आजादी होगी। यह कदम समावेशिता और पारदर्शिता की दिशा में बड़ा बदलाव माना जा रहा है।
पारदर्शिता का नया दौर
वक्फ संशोधन बिल पर अमित शाह का यह रुख न केवल सरकार की मंशा को उजागर करता है, बल्कि जमीन के मालिकाना हक और धार्मिक स्वायत्तता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश भी दिखाता है। यह बिल अगर पास होता है, तो यह वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता का नया अध्याय शुरू कर सकता है। लेकिन सवाल यह है कि क्या विपक्ष इसकी राह आसान होने देगा? यह देखना अभी बाकी है।