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Thursday, June 26, 2025

कृष्ण बने अखिलेश : वाराणसी में सुदामा के पोस्टर ने मचाया सियासी तूफान!

वाराणसी, 1 अप्रैल 2025, मंगलवार। उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों तल्ख बयानों, तीखे तंज और पोस्टरों की सियासी तलवारबाजी से सराबोर है। समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच छिड़ी जुबानी जंग ने माहौल को गरमा दिया है। इस बार सियासत का रणक्षेत्र बन गए हैं गौशाला, गंगा और सनातन संस्कृति। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने भाजपा पर हमला बोलते हुए कहा, “भाजपा को दुर्गंध भाती है, तभी तो वे गौशालाएं बना रहे हैं, जबकि हम सुगंध के कायल हैं, इसलिए इत्र पार्क बना रहे हैं।” इस एक बयान ने ऐसा सियासी भूचाल मचाया कि दोनों दलों के बीच तल्खी की आंधी चल पड़ी। भाजपा ने तुरंत जवाबी हमला बोला और कहा, “गौशाला में दुर्गंध नहीं, सनातन की आत्मा ढूंढो। गाय हमारी माता है, और मां पर ऊंगली नहीं उठाई जाती।” इस तरह गाय को आस्था से जोड़कर भाजपा ने अखिलेश के बयान को निशाने पर लिया।

लेकिन यह सियासी ड्रामा यहीं नहीं रुका। वाराणसी में सपा ने पोस्टर वॉर का दांव खेला और भाजपा पर हमले की धार को और तेज कर दिया। लोहिया वाहिनी के झंडे तले लगे एक पोस्टर ने सियासत को नया रंग दे दिया। पोस्टर पर तंज भरे लहजे में लिखा है, “गाय, गंगा, गीता का ढोंग रचाने वाले अब गौशाला, गोबर और गाय की बातें करने चले हैं!” इतना ही नहीं, इस पोस्टर में अखिलेश यादव को भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के रूप में दिखाया गया, जो सुदर्शन चक्र से ‘कलयुगी भ्रष्टाचारी मामा’ का संहार करते नजर आए। इस ‘मामा’ का चेहरा पीएम नरेंद्र मोदी से हूबहू मिलता-जुलता बनाया गया। पोस्टर के पीछे सपा नेता संदीप मिश्रा का दिमाग था, जिन्होंने खुद को सुदामा के रूप में पेश किया। वाराणसी के लहुराबीर पर लगा यह पोस्टर सिर्फ एक हमला नहीं, बल्कि सपा की आक्रामक रणनीति का चटक प्रतीक बन गया।

लोहिया वाहिनी के महानगर अध्यक्ष संदीप मिश्रा ने मौके का फायदा उठाते हुए भाजपा पर शब्दों के तीर चलाए। उन्होंने कहा कि वाराणसी, जो पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र है, वहां गंगा मां की हालत देखते ही बनती है। नदी के बीच रेत के ढेर उभर आए हैं, गंगा सूख रही है और उसका पानी तलहटी छोड़ता जा रहा है। सरकारी गौशालाओं की दुर्दशा भी कम नहीं। संदीप ने तंज कसा, “गायें मर रही हैं, गौशालाओं से दुर्गंध उठ रही है, और ये लोग गाय-गंगा की बात करते हैं।” उन्होंने भाजपा को ‘ढोंगी’ ठहराते हुए कहा कि यह सरकार सनातन संस्कृति के नाम पर सिर्फ नाटक करती है। सपा नेता ने एक कदम आगे बढ़कर दावा किया, “भाजपा वाले घर में कुत्ते पालते हैं, जबकि समाजवादी गाय पालकर गौसेवा करते हैं।”

सपा नेता संदीप मिश्रा यहीं नहीं रुके। उन्होंने एक और सनसनीखेज आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने शहरों में गाय पालने पर पाबंदी लगा दी, जिसकी वजह से मासूम बच्चों को जहरीला पैकेट वाला दूध पीना पड़ रहा है। इस पोस्टर और बयानों से सपा ने भाजपा की कमजोरियां उघाड़ने की पूरी कोशिश की।

यह सियासी जंग अब गौशाला और गंगा से निकलकर आस्था, संस्कृति और व्यक्तिगत तानों की जद में आ गई है। अखिलेश का ‘दुर्गंध-सुगंध’ वाला तीर हो या सपा का पोस्टरों का दंगल—दोनों पक्ष एक-दूसरे को पटखनी देने में जुटे हैं। अब सवाल यह है कि यह सियासी तमाशा जनता के दिल में कितनी जगह बना पाता है और आने वाले दिनों में इसका असर क्या होगा। एक बात तो तय है—यूपी की सियासत का यह तापमान अभी ठंडा होने वाला नहीं।

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