वाराणसी, 30 मार्च 2025, रविवार। वाराणसी की जिला जेल चौकाघाट में एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है, जहां विचाराधीन कैदी सुनील कुमार उर्फ सुनील चौधरी को बिना जमानत के रिहा कर दिया गया। इस मामले ने न केवल जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं, बल्कि एक बड़े घोटाले की आशंका को भी जन्म दिया है। नवनियुक्त जेल अधीक्षक राजेश कुमार ने इस घटना को गंभीरता से लेते हुए लालपुर-पांडेयपुर थाने में सुनील और एक अज्ञात व्यक्ति के खिलाफ FIR दर्ज कराई है। पुलिस ने जांच शुरू कर दी है, लेकिन इस प्रकरण ने जेल के पूर्व अधिकारियों पर भी सवालों की बौछार कर दी है।
फर्जी रिहाई आदेश का खेल
सुनील कुमार, हाथरस का निवासी, साइबर क्राइम और धोखाधड़ी जैसे गंभीर आरोपों में वाराणसी की जिला जेल में बंद था। जेल अधीक्षक राजेश कुमार के मुताबिक, सुनील को 24 फरवरी 2024 को अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट-1, वाराणसी के कस्टडी वारंट के साथ जेल में लाया गया था। उसके खिलाफ धारा 411, 419, 420, 467, 468, 471, 120बी IPC और IT एक्ट की धारा 66, 66C के तहत मामला दर्ज था। दूसरी ओर, अलीगढ़ की अदालत में भी उसका एक मुकदमा चल रहा था।
25 फरवरी 2025 को अलीगढ़ की अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट चतुर्थ की ओर से कथित तौर पर एक रिहाई कन्फर्मेशन रेडियोग्राम जेल को मिला, जिसके आधार पर सुनील को 7 मार्च को रिहा कर दिया गया। लेकिन जब इसकी पड़ताल शुरू हुई, तो चौंकाने वाला खुलासा हुआ। अलीगढ़ के संयुक्त निदेशक अभियोजन ने स्पष्ट किया कि ऐसा कोई रेडियोग्राम जारी नहीं किया गया था और सुनील की जमानत अभी इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है। यह रिहाई आदेश पूरी तरह फर्जी निकला।
पूर्व जेलर पर भ्रष्टाचार के आरोप
इस मामले ने तब तूल पकड़ा जब नैनी जेल में ट्रांसफर हुईं डिप्टी जेलर की बेटी नेहा शाह और पूर्व IPS अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने इसे सार्वजनिक किया। दोनों ने मुख्यमंत्री से इसकी जांच और कार्रवाई की मांग की थी। अमिताभ ठाकुर ने तो एक वीडियो जारी कर तत्कालीन जेल अधीक्षक उमेश सिंह पर गंभीर आरोप लगाए। उनके मुताबिक, सुनील को फर्जी रिहाई आदेश के जरिए छोड़ा गया और यह सब भारी रिश्वत के बदले हुआ। ठाकुर ने दावा किया कि सुनील के खिलाफ अलीगढ़, मेरठ, बरेली और वाराणसी में IT एक्ट के कई मामले दर्ज हैं, लेकिन अलीगढ़ के एक मामले में उसकी जमानत अभी तक नहीं मिली थी। फिर भी, 4 मार्च 2025 को जेल में फर्जी आदेश पहुंचा और उसे रिहा कर दिया गया।
डिप्टी जेलर का उत्पीड़न और बेटी की लड़ाई
इस प्रकरण में एक और परत तब जुड़ी, जब पूर्व डिप्टी जेलर मीना कन्नौजिया ने उमेश सिंह पर उत्पीड़न का आरोप लगाया। उनकी बेटी नेहा शाह ने इस मामले को आगे बढ़ाते हुए उमेश सिंह के खिलाफ FIR की मांग की थी। नेहा और उनके वकील ने दावा किया कि यह फर्जी रिहाई उमेश सिंह की मिलीभगत से हुई। इसके बाद अमिताभ ठाकुर ने भी इस मुद्दे को उठाया और मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर जांच की गुहार लगाई।
क्या है पूरा मामला?
सुनील कुमार एक कुख्यात साइबर अपराधी है, जिसके खिलाफ कई जिलों में मुकदमे दर्ज हैं। अलीगढ़ के साइबर क्राइम थाने में दर्ज अपराध संख्या 16/2023 में उसकी जमानत याचिका (संख्या 26163/2024) इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है, जहां 25 मार्च 2025 को सुनवाई हुई। इसके बावजूद वाराणसी जेल ने उसे फर्जी आदेश के आधार पर रिहा कर दिया। जेल अधीक्षक राजेश कुमार ने इसे गंभीर अपराध मानते हुए तुरंत कार्रवाई की और पुलिस को सूचित किया।
अब आगे क्या?
पुलिस ने सुनील और अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि फर्जी रेडियोग्राम जेल तक कैसे पहुंचा और इसके पीछे कौन-कौन शामिल हैं। पूर्व जेलर उमेश सिंह पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की भी जांच की मांग तेज हो रही है। इस घटना ने जेल प्रशासन की पारदर्शिता और विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। क्या यह महज एक गलती थी या सुनियोजित साजिश? जवाब जांच के बाद ही सामने आएगा। फिलहाल, यह मामला सुर्खियों में है और लोग इस सनसनीखेज घोटाले के हर पहलू पर नजर रखे हुए हैं।