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Monday, August 11, 2025

माँ शैलपुत्री का आलौकिक दरबार: काशी में भक्ति का अनुपम संगम

वाराणसी, 30 मार्च 2025, रविवार। जहाँ स्वयं भगवान शिव विराजमान हों, वहाँ आदि शक्ति का आशीर्वाद कैसे पीछे रह सकता है? शिव की नगरी काशी अपने आप में अनंत आस्था और रहस्यों का खजाना है। इसी पावन भूमि पर माँ शैलपुत्री का एक ऐसा मंदिर है, जहाँ चैत्र नवरात्रि के पहले दिन भक्तों को माँ के साक्षात दर्शन का सौभाग्य प्राप्त होता है। बनारस के सिटी स्टेशन से मात्र चार किलोमीटर की दूरी पर बसा यह मंदिर नवरात्रि के पहले दिन आस्था के समंदर में डूब जाता है।

चैत्र नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही माँ शैलपुत्री के दरबार में भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है। सुबह की पहली किरण के साथ ही मंदिर परिसर “जय माता दी” के जयकारों से गूंज उठता है। भक्त माँ के चरणों में मत्था टेकते हैं और अपने जीवन को कृतार्थ मानते हैं। लाल फूल, चुनरी, नारियल और सुहाग का सामान लेकर माँ को भेंट चढ़ाने वालों की कतारें कई किलोमीटर तक फैल जाती हैं।

माँ शैलपुत्री की कथा: तप और भक्ति का अनुपम संगम

मंदिर के पुरोहित बताते हैं कि माँ शैलपुत्री का जन्म राजा शैलराज के यहाँ हुआ था। जन्म के समय मुनि नारद वहाँ पहुँचे और भविष्यवाणी की कि यह कन्या गुणवान होगी और भगवान शिव के प्रति उसकी अटूट भक्ति होगी। जैसे-जैसे माँ शैलपुत्री बड़ी हुईं, उनके मन में शिव के प्रति प्रेम और आस्था गहरी होती गई। एक दिन वह भ्रमण पर निकलीं और शिव की नगरी काशी पहुँच गईं। वरुणा नदी के किनारे का शांत और पवित्र वातावरण उन्हें इतना भाया कि उन्होंने यहीं तपस्या शुरू कर दी।

कुछ समय बाद जब राजा शैलराज अपनी पुत्री को देखने आए, तो वह माँ की तपस्या से अभिभूत हो गए। उन्होंने भी वहीं आसन लगाया और तप में लीन हो गए। बाद में इसी स्थान पर पिता और पुत्री के मंदिर का निर्माण हुआ। मंदिर के गर्भगृह में नीचे शिवलिंग के रूप में राजा शैलराज विराजमान हैं, जबकि ऊपर माँ शैलपुत्री अपनी अलौकिक छवि के साथ भक्तों को आशीर्वाद देती हैं। पुरोहित बताते हैं कि माँ ने बाद में पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया और भगवान शिव से उनका विवाह संपन्न हुआ।

माँ का स्वरूप और भक्तों की आस्था

माँ शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। उनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित रहता है, जो शक्ति और शांति का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माँ के दर्शन से दांपत्य जीवन की सभी परेशानियाँ दूर होती हैं। सुहागिनें यहाँ सुहाग का सामान चढ़ाकर अपने वैवाहिक जीवन की मंगल कामना करती हैं। इसके अलावा, माँ अपने भक्तों के सारे कष्ट हरकर उनकी हर मुराद पूरी करती हैं।

काशी की शक्ति: माँ शैलपुत्री का आशीर्वाद

दूर-दराज से आए भक्तों के लिए यह मंदिर आस्था का केंद्र है। नवरात्रि के पहले दिन माँ के दर्शन के लिए लगने वाली लंबी कतारें इस बात का प्रमाण हैं कि माँ शैलपुत्री के प्रति लोगों का विश्वास कितना अटूट है। गंगा और वरुणा के संगम के पास बसा यह मंदिर काशी की धार्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि का जीवंत उदाहरण है। यहाँ हर भक्त को लगता है कि माँ की एक झलक से ही जीवन के सारे संकट मिट जाएँगे।

माँ शैलपुत्री का यह दरबार न केवल भक्ति का प्रतीक है, बल्कि शिव और शक्ति के अनूठे मिलन की कहानी भी बयां करता है। काशी की इस पावन धरती पर माँ हर साल अपने भक्तों को आशीर्वाद देने आती हैं, और भक्त उनके चरणों में श्रद्धा का अर्घ्य चढ़ाकर धन्य हो जाते हैं।

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