इंदौर, 27 मार्च 2025, गुरुवार। इंदौर, मध्य प्रदेश की स्वच्छता की मिसाल और आर्थिक राजधानी कहलाने वाला शहर, एक बार फिर सुर्खियों में है। लेकिन इस बार वजह स्वच्छता या विकास नहीं, बल्कि नगर पालिका निगम के ड्रेनेज विभाग में सामने आया 11 करोड़ रुपये का घोटाला है। यह मामला तब प्रकाश में आया जब ऑडिट रिपोर्ट और गहन जाँच-पड़ताल ने फर्जी बिलों के जरिए करोड़ों रुपये को इधर-उधर करने की सनसनीखेज सच्चाई उजागर की।
फर्जी बिलों का जाल, पैसा हुआ गायब
जाँच में पता चला कि ड्रेनेज विभाग में नींव कंस्ट्रक्शन के प्रोप्राइटर मोहम्मद साजिद ने 169 फर्जी बिलों के जरिए 11 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि को गलत तरीके से हस्तांतरित करवाया। ये बिल कागजों पर तो भव्य प्रोजेक्ट्स और कामों के नाम पर तैयार किए गए थे, लेकिन हकीक鏡 में ज्यादातर काम हुए ही नहीं। कुल 185 बिलों में से केवल 16 ही असली पाए गए, बाकी सब कूटरचित दस्तावेजों का हिस्सा थे। इस राशि को विभिन्न खातों में ट्रांसफर करवाकर निगम को भारी चपत लगाई गई।
ऑडिट ने खोली पोल, एमजी रोड थाने में शिकायत
नगर निगम के सहायक लेखापाल आशीष तायडे की शिकायत पर यह घोटाला सामने आया। ऑडिट रिपोर्ट ने जब इन फर्जी बिलों की परतें खोलीं, तो निगम के अधिकारियों के होश उड़ गए। इसके बाद तुरंत एमजी रोड थाने में शिकायत दर्ज की गई। पुलिस ने मोहम्मद साजिद के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर जाँच शुरू कर दी है। डीसीपी हंसराज सिंह ने बताया कि नगर निगम के अधिकारियों की शिकायत पर यह केस दर्ज किया गया है और मामले की तह तक जाने के लिए हर पहलू की बारीकी से पड़ताल की जा रही है।
पहले भी हो चुकी है बदनामी
यह कोई पहला मौका नहीं है जब इंदौर नगर निगम घोटालों की वजह से चर्चा में आया हो। इससे पहले भी नींव कंस्ट्रक्शन को 28 करोड़ रुपये के ड्रेनेज घोटाले में ब्लैक लिस्ट किया जा चुका है। इसके बावजूद, मोहम्मद साजिद ने फिर से फर्जीवाड़े का जाल बिछाया और निगम के खजाने को नुकसान पहुँचाया। सवाल यह उठता है कि आखिर इतनी सख्ती के बाद भी ऐसे घोटाले बार-बार कैसे सामने आ रहे हैं? क्या निगम की व्यवस्था में कोई बड़ी खामी है या फिर यह सब अधिकारियों और ठेकेदारों की मिलीभगत का नतीजा है?
जाँच तेज, जनता में आक्रोश
पुलिस और निगम की संयुक्त जाँच में अब तक कई चौंकाने वाले खुलासे हो चुके हैं। डीसीपी हंसराज सिंह के नेतृत्व में एक विशेष टीम इस मामले की गहराई में जा रही है। वहीं, इस घोटाले ने शहरवासियों में गुस्सा भर दिया है। लोग पूछ रहे हैं कि उनके टैक्स के पैसों का दुरुपयोग कब तक होता रहेगा? सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर बहस छिड़ी हुई है।
आगे क्या?
यह घोटाला न सिर्फ निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी बताता है कि जिम्मेदारों पर नकेल कसने की कितनी जरूरत है। मोहम्मद साजिद के खिलाफ दर्ज धोखाधड़ी का मामला अब कानून के दायरे में है, लेकिन असली सवाल यह है कि क्या इस घोटाले के पीछे और बड़े चेहरे भी शामिल हैं? क्या जाँच पूरी होने पर सच सामने आएगा या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा? इंदौर की जनता अब इंसाफ की उम्मीद में टकटकी लगाए बैठी है। यह घोटाला न केवल आर्थिक नुकसान की कहानी है, बल्कि विश्वास के टूटने की भी दास्तान है। अब देखना यह है कि इस कहानी का अंत क्या होगा—सजा या फिर एक और अनसुलझी गुत्थी?