नई दिल्ली, 23 मार्च 2025, रविवार। उत्तर प्रदेश के चर्चित IAS अधिकारी अभिषेक प्रकाश का नाम इन दिनों सुर्खियों में है। 2006 बैच के इस अधिकारी पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे हैं, जो उनके करियर की शुरुआत से लेकर अब तक की तैनातियों के दौरान कथित तौर पर किए गए काले कारनामों की कहानी बयां करते हैं। लखीमपुर खीरी और बरेली में जिलाधिकारी (DM) रहते हुए सैकड़ों बीघा जमीन की खरीद से लेकर डिफेंस कॉरिडोर घोटाले और सौर परियोजना में रिश्वतखोरी तक, अभिषेक प्रकाश पर लगे आरोपों की फेहरिस्त लंबी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या ये आरोप महज व्यक्तिगत शिकायतों का नतीजा हैं, या सिस्टम की नाकामी और ऊपरी संरक्षण का परिणाम? आइए, इस मामले की सत्यता को परखते हुए एक नजर डालते हैं।
लखीमपुर और बरेली: जमीन का खेल और स्टाम्प चोरी
अभिषेक प्रकाश पर आरोप है कि उन्होंने लखीमपुर खीरी में DM रहते 300 बीघा और बरेली में 400 बीघा जमीन अपने परिवार के नाम या फर्जी कंपनियों के जरिए खरीदी। यह शिकायत सबसे पहले 2021 में बलिया के तत्कालीन सांसद वीरेंद्र सिंह ने भारत सरकार के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DoPT) में दर्ज की थी। सांसद ने सबूतों के साथ दावा किया कि यह जमीन खरीद अभिषेक के कार्यकाल के दौरान हुई, जिसमें स्टाम्प ड्यूटी चोरी और राजस्व हेराफेरी का खेल खेला गया। बरेली के तत्कालीन DM ने भी अपनी रिपोर्ट में इस मामले को “अति संवेदनशील और गंभीर” बताते हुए स्टाम्प चोरी और राजस्व नुकसान की पुष्टि की थी। उन्होंने सुझाव दिया था कि इसकी जांच अपर मुख्य सचिव (ACS) स्तर के अधिकारी से कराई जाए।
लेकिन कहानी यहीं रोचक मोड़ लेती है। DoPT ने उत्तर प्रदेश के नियुक्ति विभाग को जांच के लिए पत्र लिखा, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इसकी संस्तुति की। फिर भी, जांच आगे नहीं बढ़ी। आरोप है कि नियुक्ति विभाग के तत्कालीन विशेष सचिव, जो अब तराई के एक जिले में कलेक्टर हैं, ने इस पत्र को दबा दिया। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने जातीय अस्मिता का हवाला देकर जांच अधिकारी बदलने की सलाह दी और पत्र को ठंडे बस्ते में डाल दिया।
जुगाड़ का खेल: आलोक सिन्हा की नियुक्ति
अभिषेक प्रकाश ने कथित तौर पर “पंचम तल” (यानी शीर्ष प्रशासनिक प्रभाव) का इस्तेमाल करते हुए ACS आलोक सिन्हा को जांच अधिकारी नियुक्त करवा लिया। सिन्हा की रिपोर्ट ने मामले को नया रंग दिया। उन्होंने अपनी जांच के अंत में लिखा कि अभिषेक के पिता “ख्यातिलब्ध प्रतिष्ठित चिकित्सक” हैं, इसलिए उनके खिलाफ आरोपों को गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं। यह तर्क हैरान करने वाला था। सवाल उठता है कि एक चिकित्सक पिता, जिनके पास पहले और बाद में ऐसी संपत्ति नहीं थी, ने अपने बेटे के DM रहते हुए 2012-2014 के बीच सैकड़ों बीघा जमीन कैसे खरीद ली? क्या यह संयोग था, या सत्ता के दुरुपयोग का नतीजा?
विभागीय सूत्रों का कहना है कि आलोक सिन्हा ने “खाद-पानी” डालकर इस मामले को दाखिल-दफ्तर कर दिया। यानी, जांच को औपचारिक रूप से खत्म कर दिया गया, और अभिषेक पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। लेकिन यह सवाल अब भी अनुत्तरित है कि क्या प्रतिष्ठित पिता की छवि ने बेटे के कथित अपराधों को ढक दिया?
2500 करोड़ की धांधली और योगी का रुख
अभिषेक प्रकाश का मामला सिर्फ जमीन खरीद तक सीमित नहीं है। हाल ही में उन पर लखनऊ डिफेंस कॉरिडोर घोटाले में 20 करोड़ की हेराफेरी और सौर परियोजना में 5% कमीशन मांगने का आरोप लगा, जिसके बाद 20 मार्च 2025 को उन्हें निलंबित कर दिया गया। उनकी संपत्तियों की विजिलेंस जांच भी शुरू हो चुकी है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या यह कार्रवाई सिर्फ दिखावा है, या सचमुच भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी? कुछ लोग दावा करते हैं कि अभिषेक की संपत्ति और घोटालों का आंकड़ा 2500 करोड़ तक पहुंच सकता है। अगर यह सच है, तो यह उत्तर प्रदेश के प्रशासनिक इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला हो सकता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का दावा किया है। बरेली-सितारगंज हाईवे घोटाले में PCS अधिकारियों को बर्खास्त करने से लेकर अभिषेक प्रकाश के निलंबन तक, उनके इरादे साफ दिखते हैं। लेकिन जब बात सिस्टम के भीतर की साजिश और जांच को दबाने की आती है, तो क्या योगी इस “धृतराष्ट्र” वाली भूमिका से बाहर निकल पाएंगे? क्या वह किसी ईमानदार एजेंसी से इस मामले की गहराई तक जांच करवाएंगे, या यह मामला भी फाइलों में दफन हो जाएगा?
सिस्टम की सच्चाई: भ्रष्टाचार या संरक्षण?
अभिषेक प्रकाश का मामला सिर्फ एक अधिकारी की कहानी नहीं, बल्कि सिस्टम की उस सच्चाई को उजागर करता है जहां शक्ति और प्रभाव जांच को प्रभावित करते हैं। अगर एक सांसद की शिकायत, सबूतों के बावजूद, ब्यूरोक्रेसी के जाल में दब जाती है, तो आम जनता का क्या हाल होगा? बरेली के DM की रिपोर्ट, DoPT का पत्र, और योगी की संस्तुति के बावजूद जांच का दबना यह साबित करता है कि सिस्टम में अभी भी “जुगाड़” और “संरक्षण” की जड़ें गहरी हैं।
सच का इंतजार
अभिषेक प्रकाश के मामले में सत्यता की पुष्टि के लिए अभी और सबूतों की जरूरत है। लेकिन जो जानकारी सामने आई है, वह गंभीर सवाल उठाती है। क्या योगी सरकार इस मामले को अंत तक ले जाएगी? क्या 2500 करोड़ की कथित धांधली का पर्दाफाश होगा? या फिर यह एक और कहानी बनकर रह जाएगी, जहां भ्रष्टाचार पर पर्दा डाल दिया जाता है? जनता की नजर अब इस बात पर है कि क्या मुख्यमंत्री सचमुच भ्रष्टाचार के खिलाफ “शून्य सहनशीलता” का वादा निभाएंगे, या सिस्टम की खामियां फिर हावी हो जाएंगी। समय ही बताएगा कि यह कहानी सजा की ओर बढ़ती है, या सिर्फ सनसनी बनकर रह जाती है।