एक भूला बिसरा राजनेता गुलज़ारीलाल नंदा
वरिष्ठ पत्रकार- त्रिलोक दीप
आज राजनीतिक और आम लोग भी जिस राजनेता को भूल से गये हैं या कम याद करते हैं उनका नाम है गुलज़ारीलाल नंदा ।सरल,सहज और उजली छवि वाला यह कोई आम नेता नहीं बल्कि दो बार देश का कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहा है और तीन प्रधानमंत्रियों पंडित जवाहरलाल नेहरू,लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की सरकारों में गृहमंत्री ।यह भी ऐतिहासिक सच्चाई है । उन्हें लोग प्रेम और आदर से नंदा जी कहकर संबोधित किया करते थे ।
नंदा जी स्वाधीनता संग्राम में खासे सक्रिय रहे ।1921
में उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया तथा 1932 में सत्याग्रह आंदोलन और 1942-44 में भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्हें जेल भी जाना पड़ा । 1937 से 1939 तथा 1947 से 1950 तक वह बॉम्बे की विधनसभा में विधायक रहे ।1947 में इंडियन नेशनल ट्रेड यूनियन की स्थापना का श्रेय नंदा जी को ही जाता है ।वह योजना आयोग के पहले उपाध्यक्ष थे ।1950-51,1952-53 और 1960 से 1963 तक वह इसी पद पर रहे।उन्होंने योजना आयोग के सदस्य तरलोक सिंह,आईसीएस के सहयोग से पंचवर्षीय योजना बनायी । दरअसल वह पंडित नेहरू की सरकार में 24 सितम्बर, 1951 से लेकर 13 मई, 1952 तक योजना मंत्री रहे जबकि 13 मई,1952 से 6 जून,1952 तक योजना आयोग के साथ नदी घाटी योजना जुड़ गया और 6 जून, 1952 से 17 अप्रैल, 1957 तक सिंचाई और बिजली मंत्री का ज़िम्मा भी ।17 अप्रैल, 1957 से 10 अप्रैल, 1962 तक वह श्रम,रोज़गार और योजना मंत्री रहे और 10 अप्रैल, 1962 से 24 जनवरी, 1964 तक श्रम और रोज़गार मंत्री ।

1 सितम्बर,1963 से 27 मई, 1964, 9 जून, 1964 से 11 जनवरी,1966 और फिर 24 जनवरी, 1966 से 9 सितम्बर, 1966 तक वह गृहमंत्री रहे अर्थात पंडित नेहरू,लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी की सरकारों में ।मई, 1964 तथा 11 जनवरी,1966 में जब वह कार्यवाहक प्रधानमंत्री रहे तो उनके पास गृह मंत्रालय के साथ साथ परमाणु ऊर्जा मंत्रालय भी था ।पंडित नेहरू के निधन के बाद तो विदेश मंत्रालय का काम भी उन्हीं के जिम्मे था क्योंकि पंडित नेहरू ने कोई विदेशमंत्री नहीं रखा था,केवल लक्ष्मी मेनन राज्य विदेशमंत्री थीं ।18 फरवरी,1970 से 18 मार्च, 1971 तक वह रेल मंत्री भी रहे और दोनों सालों का रेल बजट उन्होंने ही पेश किया था ।तब सामान्य और रेल बजट अलग-अलग पेश हुआ करते थे ।इसके बाद नंदा जी ने राजनीति से यह कहते हुए रेल मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था कि उन्हें उस दौर की राजनीति पसंद नहीं थी । यह भी संभव है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री के समय नंदा जी को जो अहमियत मिला करती थी वैसी इंदिरा गांधी से न मिली हो ।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच नौकरशाही का बंटवारा हो गया ।ये सभी बड़े नौकरशाह आईसीएस अर्थात इम्पीरियल सिविल सर्विस के अधिकारी हुआ करते थे, भारत की अपनी केंद्रीय सेवाओं का गठन तो 1950 में एक अधिनियम के अनुसार हुआ ।इसके मुताबिक आईएएस (भारतीय प्रशासनिक सेवा),आईएफएस, (भारतीय विदेश सेवा) तथा आईपीएस (भारतीय पुलिस सेवा) के साथ साथ कुछ सम्बद्ध सेवाओं के लिए भर्ती का प्रवधान रखा गया । जब तक इस अधिनियम के तहत भर्ती होती विरासत में मिले इन आईसीएस अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर तैनात किया गया ।योजना आयोग का सदस्य बनने से पहले तरलोक सिंह ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के पहले निजी सचिव की जिम्मेदारी का निर्वाहन किया।वह पंजाब में पुनर्वास महानिदेशक भी रहे जो शरणार्थियों के पुनर्वास के लिए जिम्मेदार थे ।उन्होंने भारत की पहली पंचवर्षीय योजना भी लिखी थी योजनामंत्री गुलज़ारीलाल नंदा के निर्देशन में ।

अन्य जिन प्रमुख आईसीएस अधिकारियों के नाम याद पड़ते हैं वे इस प्रकर हैं: चंदूलाल माधव लाल त्रिवेदी, पंजाब के राज्यपाल, सी डी देशमुख(सर चिंतामणि द्वारका नाथ देशमुख) भारतीय रिज़र्व बैंक के प्रथम भारतीय गवर्नर (1943-1949) तथा भारत के वित्तमंत्री(1950-1956) बने जॉन मथाई के स्थान पर, 1955 में तो कई छोटे बैंकों के साथ इम्पीरियल बैंक के राष्ट्रीयकरण के माध्यम से स्टेट बैंक का गठन किया तथा बीमा कंपनियों का एकजुट कर उन्होंने ही भारतीय जीवन निगम का गठन किया ।सी डी देशमुख विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष रहे (1956-61), राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संस्थापक अध्यक्ष थे,दिल्ली विश्वविद्यालय के दसवें कुलपति (1962-67) 1969 में उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव भी लड़ा लेकिन पराजित हो गये ।दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के संस्थापक भी सी डी देशमुख ही थे । सुकुमार सेन,भारत के मुख्य
चुनाव आयुक्त,केपीएस मेनन, भारत के प्रथम विदेश
सचिव,एन आर पिल्लई,भारत के प्रथम कैबिनेट
सचिव,गिरिजा शंकर बाजपेयी,महाराष्ट्र के राज्यपाल, सुबिमल दत्त,विदेश सचिव, धर्म वीर, कैबिनेट सचिव,पश्चिम बंगाल, पंजाब,हरियाणा और कर्नाटक के राज्यपाल, भैरव दत्त पांडे,पश्चिम बंगाल के राज्यपाल , लल्लन प्रसाद सिंह,असम के राज्यपाल,लक्ष्मीकांत झा,अमेरिका में भारतीय राजदूत (1970-73), रिज़र्व बैंक के गवर्नर (1967-70) प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के सचिव (1964-66), जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल (1973-1981) तथा 7 जुलाई,1986 से 16 जनवरी,1988 तक राज्यसभा के सदस्य, हरिभाई एम पटेल (एच एम पटेल के नाम से प्रसिद्ध,)भारत के रक्षा सचिव (7 अक्टूबर,1947 से 20 जुलाई,1953), साबरकांठा से लोकसभा सदस्य और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार में गृह एवं वित्त मंत्री (1977-79), एम एस रंधावा,चंडीगढ़ के मुख्य आयुक्त, महाराज श्री नागेन्द्र सिंह,अंतररारष्ट्रीय न्यायालय हेग के अध्यक्ष,आदित्य नाथ झा,भारत सरकार में सचिव,उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव,दिल्ली के प्रथम उपराज्यपाल, के बी लाल,रक्षा सचिव,त्रिलोकी
नाथ कौल,राजदूत और विदेश सचिव, गोविंद नारायण
कर्नाटक के राज्यपाल,एस जगन्नाथन,रिज़र्व बैंक के गवर्नर,निर्मल कुमार मुकर्जी ,पंजाब के राज्यपाल, 8वें
गृह सचिव, 13वें कैबिनेट सचिव और भारत सरकार में अंतिम आईसीएस अधिकारी, भगवान सिंह,फिजी में भारतीय उच्चायुक्त,किशन चंद,दिल्ली के
उपराज्यपाल आदि ।कपूर सिंह पंजाब में आईसीएस का कार्यकाल पूरा करके शिरोमणि अकाली पार्टी में शामिल हो गये ।वह एक बार लोकसभा का सदस्य
(1962-67) और पंजाब विधानसभा के विधायक
1969 से 1972 तक रहे।वह सिख बुद्धिजीवी और
सिख धर्म और राजनीति के बारे में लिखते थे। उन्हें सिख ‘धर्म के प्रोफेसर’ के नाम से भी जाना जाता है । अंग्रेज़ी,पंजाबी,हिंदी,फारसी,अरबी और संस्कृत के विद्वान सरदार कपूर सिंह ने 1973 में अकाली दल के आनंदपुर साहब प्रस्ताव को लिखा था जिसमें पंजाब और सिख समुदाय के अधिकारों की मांग की गयी थी।
तरलोक सिंह की योजना आयोग में भूमिका के चलते इतने प्रमुख आईसीएस अधिकारियों के बारे में लेखाजोखा देने की एक वजह थी ।एक बार मैंने गुलज़ारीलाल नंदा से पूछा कि इन आईसीएस अफसरों के साथ काम करने में आपको दिक्कत पेश नहीं आती,क्योंकि इनकी सोच पर अंग्रेज़ी हुक्मरानों का असर होगा… मेरी बात काटते हुए नंदा जी ने बताया कि ‘ऐसा बिल्कुल नहीं ।स्वंतत्र भारत में आज जिस शिद्दत के साथ ये अधिकारी काम कर रहे हैं आप उसकी कल्पना नहीं कर सकते ।जहां तक तरलोक सिंह की बात है इनका पंजाब में पुनर्वास महानिदेशक के तौर पर काम देख चुका हूं और उन्हें तो मैं पंडित नेहरू के निजी सचिव के तौर से भी जानता हूं ।आपको सरकार से जुड़े इन अधिकारियों के अपने देश की बहबूदी के लिए समर्पण और लगन की भावना देखकर लगेगा कि ये अंग्रेज़ों के नहीं हमारे देश को मिली आजादी को पुख्ता करने के स्तंभ हैं ।’इस संदर्भ में मेरी तरलोक सिंह जी से बात हुई थी ।उन्होंने बताया कि नौकरशाही का काम सत्तारूढ़ सरकार की नीतियों को कार्यन्वित करना होता है जो हम सभी अधिकारी बड़ी ही ईमानदारी के साथ कर रहे हैं ।पाकिस्तान से जितनी तादाद में उजड़ कर शरणार्थियों का सैलाब आया था उससे निपटना कोई आसान काम नहीं था,हम सभी अधिकारियों ने दिनरात एक करके इनके पुनर्वास का काम किया ।देश के उत्थान की दिशा में जिस पंचवर्षीय योजना की कल्पना प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की सरकार ने की थी उसका पहला प्रारूप मैंने सरकार को सौंप दिया है,मुझे खुशी है कि उसे स्वीकृति मिल गयी है ।

कई आईसीएस अधिकारियों से मिलने के मुझे अवसर मिले ।कुछ से लोकसभा सचिवालय (1956-65) में काम करते हुए और कुछ से ‘दिनमान'(1965-89) में रहते हुए ।लोकसभा और राज्यसभा सचिवालय उन दिनों गोल वाली बिल्डिंग में था ।यहीं उन दिनों सुप्रीम कोर्ट भी था और संसदीय कार्य मंत्रालय भी ।लोक सभा सचिवालय में उन दिनों कुछ चुनिंदा और विशेष शाखायें थीं और कर्मचारियों की संख्या भी सीमित थी ।कर्मचारियों के बीच किसी प्रकार का भेदभाव नहीं हुआ करता था। जिन प्रमुख शाखाओं का सांसदों और मंत्रियों से मिलना जुलना रहता था वह प्रमुखतया तीन शाखाएं थीं: टेबल ऑफ़िस, लेजिस्लेटिव ब्रांच और क्वशन ब्रांच ।मैं लेजिस्लेटिव ब्रांच में काम करता था जहां सरकारी और गैरसरकारी दोनों के कामों की कार्यसूची बनती थी-गैरसरकारी का तात्पर्य सांसदों के विधेयकों और संकल्पों पर कार्य ।सांसदों का
पीएनओ यानी पार्लियामेंटरी नोटिस ऑफ़िस में और पब्लिकेशन काउंटर पर आना जाना रहा करता था ।एक बार किन्हीं कागजों पर दस्तखत लेने के लिए मुझे वित्तमंत्री सी डी देशमुख के पास भेजा गया ।बहुत ।ज़हीन व्यक्ति थे कागज़ों को देखकर जब उन्होंने हस्ताक्षर कर दिये तो मैंने सहमते हुए उनसे कहा कि क्या मैं आपसे एक सवाल पूछ सकता हूं ।उन्होंने हामी भरते हुए कहा ‘हां,पूछिये।’ मैंने पूछा कि बैंकों और बीमा कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करने के विरोध में आप पर दबाव नहीं पड़ा था ।उन्होंने एकबारगी मुझे गौर से देखा,’बिल्कुल पड़ा था।मुझ पर ही क्यों प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर भी लेकिन हम लोग अपने फैसले पर वैसे ही अडिग रहे जैसे सरदार वल्लभभाई पटेल देसी रियासतों का भारत में विलय करते समय ।हमारा काम देश भर में छितरी वित्तीय संस्थाओं को एकजुट करना था जो आसान काम नहीं था लेकिन हम लोगों ने इसे देशहित में ज़रूरी माना ।’ फिर मुझे घूरते हुए बोले,आप तो लोकसभा में काम करते हैं,फिर यह पत्रकारों जैसा शौक क्यों ।मैंने साहस बटोरते हुए उत्तर दिया था,’लिखने पढ़ने का कुछ शौक है इसीलिए ।मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा था कि मेरी धृष्टता के लिए मुझे माफ कर दीजियेगा।’ उन्होंने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा ‘नहीं, मेरा तो आपको आशीर्वाद है ।अपने इस शौक को जारी रखिये ।मैं कहीं भी होऊँ आप मुझे मिलने के लिए आ सकते हैं ‘।यह बात है 1956 की ।
ऐसे ही जिन दिनों लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री थे तो उनसे मिलने जाने के लिए मुझे लक्ष्मीकांत झा से मिलकर जाना होता था ।एक बार उन्होंने मुझसे पूछ ही लिया कि ‘आप शास्त्री जी को कैसे जानते हैं ‘।मैंने कहा कि लोकसभा सचिवालय में काम करते हुए ।
इसी प्रकार कपूर सिंह से भी लोकसभा में मुलाकात हुई थी ।अपनी बहुत बड़ी पगड़ी से वह पहचाने जा सकते थे ।उन्होंने सिखों के साथ ज़्यादतियों की बात करते हुए बताया था कि इसका मुझे खामियाज़ा भी भुगतना पड़ा ।लेकिन मेरी मुहिम जारी रहेगी ।उन्होंने बताया कि एक बार कैम्ब्रिज में कुछ मुसलमान छात्र यह प्रचार करते घूम रहे थे कि पूरा पंजाब पाकिस्तान को मिलना चाहिये तो मैंने सिख अस्मिता की बात की थी ।मोहम्मद अली जिन्ना से भी मेरे सौहार्दपूर्ण संबंध थे ।उन्होंने कहा था कि ऐसी कोई बात नहीं है ।1933
के आईसीएस कपूर सिंह ने विभिन्न प्रशासनिक पदों पर काम किया था । कुछ लोगों ने कपूर सिंह पर मुसलमानों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया था ।इसे मुद्दा बनाकर उस समय के पंजाब के राज्यपाल चंदूलाल त्रिवेदी ने पंडित नेहरू से शिकायत की जिसके चलते उन्हें सिविल सेवा से निलंबित कर दिया गया जिसे कपूर सिंह राज्यपाल त्रिवेदी की पुरानी रंजिश मानते हैं आईसीएस के दिनों की ।त्रिवेदी भी आईसीएस थे ।कपूर सिंह को कभी बहाल नहीं किया गया ।उन्होंने सिखों के बारे में अपनी एक पुस्तक मुझे भेंट की थी जिसे मैंने एक लाइब्रेरी को डोनेट कर दिया ।
दिल्ली के उपराज्यपाल किशन चंद से राज निवास पर दो बार लंच के लिए गया था ।तब मैं ‘दिनमान’ में काम करता था ।मेरे साथ मेरे एक सहयोगी महेश्वर दयालु
गंगवार भी थे ।आईसीएस अधिकारी की तरह लंच से पहले जिन टॉनिक पेश किया गया ।राज्यपाल के निजी सचिव आईएएस नवीन चावला थे (बाद में मुख्य चुनाव आयुक्त)। उनसे भी मेरी अच्छी दोस्ती हो गयी थी ।उन्होंने मदर टेरेसा के साथ बहुत काम किया था ।उन पर लिखी एक पुस्तक के लोकार्पण समारोह में मुझे भी बुलाया गया ।मदर टेरेसा से यह मेरी पहली भेंट थी ।किशन चंद जी बहुत अच्छे मेजबान थे और उनसे अच्छी ‘कॉपी’ मिलती थी ।बाद में उनका संदिग्ध अवस्था में निधन हो गया ।
धर्म वीर से भी मेरी मुलाकात थी ।पहली नवंबर,1966 में वह हरियाणा राज्य के पहले राज्यपाल थे । उन्हें दो मुख्यमंत्रियों के साथ काम करना पड़ा-पंडित भागवत दयाल शर्मा और राव वीरेंद्र सिंह ।क्योंकि हरियाणा बिना मांगे तश्तरी में रखकर मिल गया था अपने अनुभव के ज़रिये धर्म वीर ने इन दोनों मुख्यमंत्रियों की नये मिले राज्य में अनौपचारिक तौर पर प्रशासन चलाने में मदद की ।क्योंकि वह पंजाब के भी राज्यपाल थे जहां उन्होंने तीन मुख्यमंत्रियों के साथ काम किया-राम किशन,गुरमुख सिंह मुसाफिर और जस्टिस गुरनाम सिंह ।पहले दो कांग्रेसी थे जबकि गुरनाम सिंह अकाली पार्टी के थे और उनकी साझा सरकार थी ।राम किशन संभवतः दूसरे गैर सिख मुख्यमंत्री थे भीमसेन सच्चर के बाद। इन दो राज्यों में धर्म वीर की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी जिसके बारे में उनसे कई बार चर्चाएं हुआ करती थीं । दिलचस्प बात यह है कि ज़्यादातर आईसीएस अधिकारी उन्नीसवीं और बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध जन्मा थे ।
गुलज़ारीलाल नंदा भारत सेवक समाज के संस्थापक थे जिसके चलते उन्होंने मिलावट और भ्रष्टाचार के विरुद्ध न केवल आवाज़ उठायी बल्कि लोकपाल के लिए लोकायुक्त गठन के माध्यम से रास्ता भी बनाया ।भारत सेवक समाज के अतिरिक्त नंदा जी ने
भारत साधु समाज की नींव रखी ।उन्होंने मानवीय मूल्यों से जुड़ी कई धार्मिक और आध्यात्मिक संस्थाओं का गठन किया ।प्रमुख हैं:सनातन महावीर दल, राष्ट्रीय लोक सेना,कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड,नव जीवन संघ,मानव धर्म सम्मेलन आदि ।श्रमिकों और औद्योगिक क्षेत्रों में दो दर्जन से अधिक संस्थाएं स्थापित कीं ।उन्होंने कुरुक्षेत्र विकास मंडल को महाभारत से जुड़े तीर्थों के कायाकल्प के लिए योजना बना कर उसे पंजीकृत कराया ।वह श्रम और रोज़गार मंत्री भी रहे ।उनमें राजनेताओं जैसी ठसक नहीं थी ।वह सीधे-साधे और सामान्य व्यक्ति थे लेकिन राजनीति की बारीकियां और इंसानी फितरत से वाकिफ थे पर बोलते कुछ नहीं थे ।गुलज़ारीलाल नंदा को पहले पद्म विभूषण से नवाजा गया और 1997 में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया ।
