लखनऊ, 21 मार्च 2025, शुक्रवार। उत्तर प्रदेश के दो जिलों, संभल और बहराइच, में एक ही नाम के इर्द-गिर्द दो अलग-अलग कहानियां सामने आ रही हैं। सैयद सालार मसूद गाजी, एक ऐतिहासिक शख्सियत जिसे लेकर विवादों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा, इन दिनों फिर सुर्खियों में है। जहां संभल में उनके नाम पर होने वाले नेजा मेले पर प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए रोक लगा दी, वहीं बहराइच में उनकी दरगाह पर शादी की रस्म की तैयारियां जोर-शोर से चल रही हैं। यह विरोधाभास न केवल सांस्कृतिक और धार्मिक पहलुओं को उजागर करता है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने पर भी सवाल उठाता है। आइए, इस रोचक कहानी को करीब से देखें।
संभल: नेजा मेले पर सख्ती, प्रशासन का कड़ा रुख
संभल में हर साल होली के बाद सैयद सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाला नेजा मेला इस बार नहीं होगा। प्रशासन ने इसे लेकर साफ संदेश दे दिया है— “लुटेरों के नाम पर कोई आयोजन नहीं।” संभल पुलिस ने न केवल मेले की अनुमति देने से इनकार किया, बल्कि ढाल गाड़ने वाले गड्ढे को सीमेंट से भरवा दिया। क्षेत्र में सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं और सुरक्षा बढ़ा दी गई है। अपर पुलिस अधीक्षक श्रीश चंद्र ने इसे ऐतिहासिक संदर्भों से जोड़ते हुए कहा कि सैयद सालार मसूद गाजी को एक आक्रांता के तौर पर देखा जाता है, जिसके नाम पर मेला आयोजित करना उचित नहीं।
यह फैसला उस वक्त लिया गया जब कुछ समुदायों ने मेले के खिलाफ आपत्ति जताई। उनका तर्क था कि एक ऐसे शख्स का गुणगान, जिसे मंदिरों को लूटने और कत्लेआम से जोड़ा जाता है, देश की भावनाओं के खिलाफ है। प्रशासन ने इसे कानून-व्यवस्था और सामाजिक सौहार्द बनाए रखने का कदम बताया। लेकिन यह सख्ती संभल की उस पुरानी परंपरा को तोड़ रही है, जो दशकों से चली आ रही थी।
बहराइच: दरगाह में शादी की तैयारियां, गंगा-जमुनी तहजीब का दावा
दूसरी ओर, बहराइच में सैयद सालार मसूद गाजी की दरगाह पर माहौल एकदम जुदा है। यहां रस्म-ए-बारात की तैयारियां जोरों पर हैं। दरगाह कमेटी के मुताबिक, 15 अप्रैल से दुनिया भर के जायरीनों को शादी का निमंत्रण भेजा जाएगा। मुख्य आयोजन 18 मई को होगा, जब बारात निकलेगी, और यह समारोह 15 जून तक चलेगा। कमेटी का दावा है कि यह आयोजन गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है, जिसमें 70% से ज्यादा हिंदू और अन्य धर्मों के श्रद्धालु शामिल होते हैं। हाजी अजमत उल्लाह, दरगाह कमेटी के एक सदस्य, ने कहा, “यहां हर साल 10 से 15 लाख लोग आते हैं। यह मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि आपसी भाईचारे का उत्सव है।” प्रशासन भी इस भीड़ को संभालने के लिए तैयार है। जीआरपी से लेकर 15 अस्थायी पुलिस चौकियां स्थापित की गई हैं, और सुरक्षा से लेकर सफाई तक की व्यापक व्यवस्था की जा रही है।
एक नाम, दो तस्वीरें: विवाद की जड़ क्या?
सैयद सालार मसूद गाजी का नाम इतिहास में महमूद गजनवी के भतीजे और सेनापति के तौर पर दर्ज है। 1034 ईस्वी में बहराइच के चित्तौरा झील के किनारे महाराजा सुहेलदेव ने उन्हें युद्ध में हराया और मार डाला। उनकी कब्र को बाद में दरगाह का रूप दिया गया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है। लेकिन जहां कुछ लोग उन्हें सूफी संत मानते हैं, वहीं दूसरों के लिए वह एक विदेशी आक्रांता हैं, जिसने भारत में लूटपाट और अत्याचार किए।
संभल में इस ऐतिहासिक छवि को आधार बनाकर मेला रोका गया, तो बहराइच में इसे सांस्कृतिक धरोहर के तौर पर बढ़ावा दिया जा रहा है। यह अंतर न केवल प्रशासनिक नीतियों में दिखता है, बल्कि समाज के ध्रुवीकरण को भी उजागर करता है।
क्या है आगे की राह?
संभल और बहराइच की यह कहानी महज एक मेले या आयोजन की नहीं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और आस्था के बीच टकराव की है। जहां संभल में प्रशासन ने सख्ती बरती, वहीं बहराइच में परंपरा को जारी रखने की तैयारी है। लेकिन सवाल वही है— क्या एक ही शख्स को लेकर इतने अलग-अलग नजरिए सही हैं? क्या यह विवाद भविष्य में और गहराएगा, या सामंजस्य का रास्ता निकलेगा?
फिलहाल, संभल की सड़कों पर सन्नाटा है, तो बहराइच की दरगाह पर रौनक की तैयारी है। यह कहानी अभी खत्म नहीं हुई— आगे क्या होगा, यह वक्त ही बताएगा।