नई दिल्ली, 20 मार्च 2025, गुरुवार। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में मयूर विहार-2 के संजय झील पार्क में स्थित तीन मंदिरों—कालीबाड़ी मंदिर, अमरनाथ मंदिर और बदरीनाथ मंदिर—को लेकर बुधवार, 19 मार्च की रात को एक बड़ा विवाद शुरू हुआ। दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) ने इन मंदिरों को ढहाने के लिए नोटिस जारी किया था, जिसमें दावा किया गया कि ये मंदिर ग्रीन बेल्ट क्षेत्र में बने हैं और इन्हें अवैध रूप से बनाया गया है। नोटिस के मुताबिक, मंदिरों को स्वयं हटाने या प्रशासन द्वारा हटाए जाने की चेतावनी दी गई थी। इस नोटिस के बाद गुरुवार, 20 मार्च की सुबह इन मंदिरों पर बुलडोजर कार्रवाई की तैयारी शुरू हो गई थी, लेकिन स्थानीय लोगों के भारी विरोध और राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण यह कार्रवाई फिलहाल रोक दी गई है।
ये है पूरी घटना की कहानी
19 मार्च की रात 9 बजे डीडीए ने मंदिरों पर नोटिस चस्पा किया, जिसमें 20 मार्च की सुबह 4 बजे तोड़फोड़ की योजना का उल्लेख था। स्थानीय निवासियों के अनुसार, ये मंदिर करीब 40 साल पुराने हैं और इनका धार्मिक व सांस्कृतिक महत्व है। कालीबाड़ी मंदिर में पिछले 10 साल से पुजारी पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं, जबकि अमरनाथ और बदरीनाथ मंदिरों को जम्मू-कश्मीर से आए कश्मीरी पंडितों ने बनवाया था। नोटिस में विभागीय मुहर और अधिकारी के हस्ताक्षर की कमी को लेकर भी लोगों ने सवाल उठाए।
20 मार्च की सुबह करीब 5 बजे, प्रशासन ने एक दर्जन से अधिक बुलडोजरों के साथ मंदिरों को ढहाने की तैयारी शुरू की। हालांकि, रात भर चले स्थानीय लोगों के विरोध और पूजा-पाठ के बाद स्थिति तनावपूर्ण हो गई। निवासियों ने मंदिरों को बचाने के लिए सड़कों पर उतरकर हंगामा किया, जिसके चलते प्रशासन को पीछे हटना पड़ा। दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता के हस्तक्षेप और राज्यपाल से बातचीत के बाद यह कार्रवाई अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई।
कानूनी मोड़ ने बुलडोजर पर लगाया ब्रेक
इस मामले ने अब कानूनी रूप ले लिया है। तीनों मंदिरों की समितियों—पूर्वी दिल्ली काली बाड़ी समिति, श्री अमरनाथ मंदिर संस्था, और श्री बद्रीनाथ मंदिर—ने डीडीए के नोटिस को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। वकील विष्णु शंकर जैन के माध्यम से दायर याचिका में तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की तत्काल सुनवाई के लिए सहमति जताई है और जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल, और जस्टिस संजय मेहता की बेंच आज ही इस पर सुनवाई कर रही है। डीडीए का दावा है कि उसके पास हाई कोर्ट का आदेश है, जिसके आधार पर यह कार्रवाई शुरू की गई थी।
लोगों की प्रतिक्रिया और दावे
स्थानीय निवासियों का कहना है कि ये मंदिर पंजीकृत हैं और यहां हर साल दुर्गा पूजा, सरस्वती पूजा जैसे त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। उनका आरोप है कि बिना पूर्व सूचना और उचित प्रक्रिया के यह कार्रवाई शुरू की गई। कालीबाड़ी मंदिर के पुजारी ने कहा, “मैं 10 साल से यहां पूजा करता हूं, कभी कोई समस्या नहीं हुई। अचानक नोटिस चस्पा कर दिया गया।” वहीं, कुछ लोगों ने इसे राजनीतिक साजिश करार दिया है।
मुख्यमंत्री के दखल के बाद वापस लौटी डीडीए की टीम
फिलहाल, मंदिरों पर बुलडोजर की कार्रवाई रुक गई है और मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को हाई कोर्ट में जाने की छूट दी है, जिसके बाद यह विवाद और गहरा सकता है। पटपड़गंज विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी विधायक रविंद्र सिंह नेगी ने भी कार्रवाई रोकने में भूमिका निभाई और दावा किया कि मुख्यमंत्री के दखल के बाद डीडीए की टीम को वापस लौटना पड़ा।
यह घटना न केवल धार्मिक भावनाओं से जुड़ा मुद्दा बन गई है, बल्कि प्रशासनिक प्रक्रिया और पारदर्शिता पर भी सवाल खड़े कर रही है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस मामले में अगला कदम तय करेगा, लेकिन तब तक मयूर विहार-2 के संजय झील पार्क के ये मंदिर चर्चा का केंद्र बने रहेंगे। यह मामला दिल्ली में विकास और धार्मिक स्थलों के संरक्षण के बीच टकराव का एक और उदाहरण बन गया है।