नई दिल्ली, 19 मार्च 2025, बुधवार। तेल, ऊर्जा और इसकी कीमतों को लेकर विपक्ष का दुष्प्रचार भले ही जोर-शोर से चलाया गया हो, लेकिन हकीकत आंकड़ों और तथ्यों की रोशनी में कुछ और ही कहानी बयां करती है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट को आमतौर पर आम जनता के लिए राहत की खबर माना जाता है, लेकिन तेल कंपनियों, खासकर रिफाइनर और तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) के लिए यह एक दोधारी तलवार साबित होती है। आइए, इस जटिल मसले को आसान शब्दों में समझते हैं और देखते हैं कि कैसे सरकार और ओएमसी इस चुनौती से निपट रहे हैं।
कच्चे तेल की कीमतों का खेल और इन्वेंट्री का नुकसान
कच्चा तेल कोई ऐसी चीज नहीं है जो आज खरीदा जाए और कल बेच दिया जाए। ओएमसी और रिफाइनर इसे पहले से खरीदते हैं—कई बार हफ्तों या महीनों पहले के अनुबंधों पर। जब तक यह तेल रिफाइन होकर पेट्रोल, डीजल या विमानन ईंधन के रूप में बाजार में पहुंचता है, तब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत बदल चुकी होती है। अगर कीमतें गिरती हैं, तो पहले से ऊंची कीमत पर खरीदा गया तेल इन कंपनियों के लिए घाटे का सौदा बन जाता है। इसे इन्वेंट्री घाटा कहते हैं।
हाल के महीनों में यह साफ दिखा है। अप्रैल 2024 में कच्चे तेल की कीमत 89.44 डॉलर प्रति बैरल थी, जो मार्च 2025 तक घटकर 71.75 डॉलर प्रति बैरल हो गई। इस गिरावट से देश की सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनरियों (पीएसयू) को भारी नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि उनके पास कम से कम 45 दिनों का स्टॉक पहले से मौजूद था। नतीजा? अप्रैल से दिसंबर 2024 तक ओएमसी को कुल 9500 करोड़ रुपये का इन्वेंट्री घाटा हुआ—आईओसीएल को 5500 करोड़, बीपीसीएल को 1428 करोड़ और एचपीसीएल को 2550 करोड़।
लाभप्रदता पर चोट
यह घाटा सिर्फ इन्वेंट्री तक सीमित नहीं रहा। कम रिफाइनिंग मार्जिन और एलपीजी की कम वसूली ने ओएमसी की कमर तोड़ दी। वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तीन तिमाहियों की तुलना में 2024-25 में इन कंपनियों के कर पश्चात लाभ (पीएटी) में भारी गिरावट आई। आईओसीएल का पीएटी 37,573 करोड़ से घटकर 5421 करोड़ (-85%), बीपीसीएल का 22,069 करोड़ से 8944 करोड़ (-59%) और एचपीसीएल का 13,305 करोड़ से 3320 करोड़ (-75%) रह गया। साफ है कि कीमतों में तेज गिरावट से तेल कंपनियों को फायदा होने की बात महज एक मिथक है।
फिर भी स्थिर रहीं पंप की कीमतें
अब सवाल यह है कि जब कच्चे तेल कीैक कीमतों में इतना उतार-चढ़ाव हो रहा है, तो पेट्रोल पंप पर कीमतें कैसे स्थिर हैं? इसका जवाब है—सरकारी नीतियां और ओएमसी के रणनीतिक फैसले। भारत में ईंधन की खुदरा कीमतें कई कारकों से तय होती हैं: अंतरराष्ट्रीय बाजार की कीमतें, डॉलर-रुपये की विनिमय दर, माल ढुलाई लागत, केंद्र का उत्पाद शुल्क, राज्य का वैट और डीलर कमीशन। इन सबके बावजूद, सरकार ने कीमतों को काबू में रखा है।
नवंबर 2021 और मई 2022 में केंद्र ने पेट्रोल पर 13 रुपये और डीजल पर 15 रुपये प्रति लीटर उत्पाद शुल्क घटाया। इस कटौती का बोझ सरकारी खजाने पर पड़ा—सालाना 2.20 लाख करोड़ रुपये। फिर 14 मार्च, 2024 को ओएमसी ने पेट्रोल और डीजल पर 2 रुपये प्रति लीटर की कमी की। ये कदम उपभोक्ताओं को राहत देने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए उठाए गए।
नीति और संतुलन की जीत
तेल की कीमतों का उतार-चढ़ाव एक वैश्विक खेल है, जिस पर भारत का पूरा नियंत्रण नहीं है। लेकिन सक्रिय नीतियों और ओएमसी के प्रयासों से सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि आम आदमी पर इसका बोझ कम से कम पड़े। विपक्ष भले ही दुष्प्रचार करे, लेकिन आंकड़े और तथ्य बताते हैं कि यह जंग नीति और संतुलन की जीत है। तेल कंपनियों को नुकसान हुआ, मगर उपभोक्ताओं को राहत मिली—और शायद यही इस कहानी का सबसे बड़ा सबक है।