प्रयागराज, 19 जनवरी 2025, रविवार। प्रयागराज में 12 वर्षों के लंबे इंतजार के बाद महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, जो भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और एकता का अद्वितीय संगम है। यह आयोजन गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के पवित्र त्रिवेणी संगम पर हो रहा है, जो आत्मशुद्धि और मोक्ष का प्रतीक है। महाकुंभ में भाग लेने से व्यक्ति को अपने सभी पापों से मुक्ति मिलती है और यह समृद्धि, शांति, भक्ति और सामाजिक एकता का प्रतीक है। इतिहास में इसे “विश्व की सबसे बड़ी मानव सभा” कहा गया है, जहां हर 12 वर्षों बाद करोड़ों श्रद्धालु एकत्र होते हैं। महाकुंभ का मुख्य केंद्र नागा साधु और अन्य प्रमुख संत होते हैं। इस आयोजन में हजारों लोग नागा साधु की दीक्षा लेते हैं और इस बार भी नागा साधु बनने के लिए हजारों आवेदन आए हैं।
नागा साधु बनने की दीक्षा में उमड़ी भीड़: क्या है इसके पीछे की कहानी और महत्व?
नागा साधु बनने की दीक्षा लेने के लिए अखाड़ों में हजारों आवेदन आए हैं। इसके लिए तीन स्तरों पर जांच की जा रही है और दीक्षा देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। निरंजनी अखाड़े के महंत रवींद्र पुरी ने बताया कि पहले चरण में 300-400 लोगों को नागा संन्यासी के रूप में दीक्षा दी जा रही है। महंत रवींद्र पुरी ने आगे बताया कि 13 अखाड़ों में से सात शैव अखाड़े हैं, जिनमें से छह अखाड़ों में नागा साधु के रूप में दीक्षा दी जाती है। इन अखाड़ों में निरंजनी, आनंद, महानिर्वाणी, अटल, जूना और आह्वान शामिल हैं। उन्होंने बताया कि अग्नि अखाड़े में ब्रह्मचारी होते हैं, वहां नागा साधु नहीं बनाए जाते हैं। जूना अखाड़े के महामंत्री हरि गिरि महाराज ने बताया कि जूना अखाड़े में नागा साधुओं को दीक्षा देने के लिए जगह की कमी है, इसलिए कई चरणों में इन्हें नागा साधु की दीक्षा दी जाएगी। महानिर्वाणी अखाड़े के सचिव महंत यमुनापुरी महाराज ने बताया कि महानिर्वाणी में 300-350 लोगों को नागा साधु के रूप में दीक्षा दी जा रही है।
नागा साधु बनने की अनोखी यात्रा: जानें क्या है इसके पीछे की कहानी और महत्व!
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने बताया कि ये लोग सनातन धर्म के लिए अपना सब कुछ बलिदान करने को तैयार हैं। एक आवाहन अखाड़े के महामंडलेश्वर ने बताया कि पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है और पर्चियां जारी की जा रही हैं। साथ ही, गोपनीय ढंग से आवेदकों के साक्षात्कार लिए जा रहे हैं। सभी पात्रता पूरी करने वाले लोगों को ही नागा साधु के तौर पर दीक्षा दी जा रही है। महामंडलेश्वर ने बताया कि गंगा नदी के किनारे नागा साधुओं के संस्कार किए जा रहे हैं। इसमें मुंडन संस्कार और पिंडदान शामिल है। ये संन्यासी अपना स्वयं का पिंडदान कर यह घोषणा करते हैं कि उनका भौतिक दुनिया से अब कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि इन सभी अनुष्ठान के बाद मौनी अमावस्या पर अमृत स्नान के साथ नागा साधु बनने की प्रक्रिया पूरी होती है। महामंडलेश्वर ने बताया कि ये सभी लोग धर्म ध्वजा के नीचे नग्नावस्था में खड़े होंगे और आचार्य महामंडलेश्वर उन्हें नागा बनने की दीक्षा देंगे। उन्होंने कहा कि सभापति उन्हें अखाड़े के नियम आदि बताएंगे और उन्हें नियमों का पालन करने की शपथ दिलाएंगे। यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद हर किसी को अमृत स्नान के लिए भेजा जाएगा।
नागा साधु बनने के लिए कठिन चयन प्रक्रिया!
एक अन्य अखाड़े के महंत ने बताया कि ऐसा नहीं है कि हर उम्मीदवार को नागा साधु बनाया जाएगा क्योंकि जांच के दौरान कई लोग अपात्र पाए गए हैं। उन्होंने कहा कि तीन चरणों में आवेदनों की जांच की गई और यह प्रक्रिया छह महीने पहले शुरू की गई थी। उन्होंने बताया कि अखाड़ा के थानापति ने उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि और गतिविधियों की जांच की और इसकी रिपोर्ट आचार्य महामंडलेश्वर को दी गई और आचार्य महामंडलेश्वर ने अखाड़े के पंचों से पुनः इसकी जांच कराई जिसके बाद ही नागा साधु बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई।