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Saturday, February 22, 2025

उपचार मुफ्त होने के बावजूद भारत में लगभग आधे मरीजों पर आर्थिक बोझ, टीबी मरीजों का स्वास्थ्य बीमा जरूरी।

टीबी की जांच और उपचार मुफ्त होने के बावजूद भारत में लगभग आधे मरीजों पर बहुत ज्यादा आर्थिक बोझ पड़ रहा है। इसकी वजह बीमारी के दौरान काम न कर पाने से रोजमर्रा की कमाई में कमी और अस्पताल में भर्ती होने के कारण होने वाला खर्च है। खासतौर पर इसके कारण कमजोर वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहा है।

यह जानकारी टीबी सपोर्ट नेटवर्क, डब्ल्यूएचओ कंट्री ऑफिस फॉर इंडिया और इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी के शोधकर्ताओं के अध्ययन में सामने आई है। इसके नतीजे जर्नल ग्लोबल हेल्थ रिसर्च एंड पॉलिसी में प्रकाशित हुए हैं।

2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाना लक्ष्य
राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) का लक्ष्य 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाना है। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की टीबी उन्मूलन रणनीति का लक्ष्य 2035 तक इस महामारी को दुनिया भर से खत्म करना है। 2023 में वैश्विक स्तर पर करीब 1.08 करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में आए थे। इनमें से करीब 60 लाख पुरुष और 36 लाख महिलाएं थीं। इस दौरान 13 लाख बच्चे भी इस बीमारी की चपेट में आए। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी नवीनतम आंकड़ों के अनुसार 2023 में टीबी की वजह से 12.5 लाख लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा था।
मरीज पर आता है 33,000 रुपये का खर्च      
शोधकर्ताओं ने 1,400 से अधिक लोगों का साक्षात्कार लिया है। इन लोगों के उपचार के नतीजे मई 2022 और फरवरी 2023 के बीच घोषित किए गए थे। इससे पता चला है कि इलाज और देखभाल पर प्रति व्यक्ति करीब 33,000 रुपये का खर्च आता है। मरीज पर अप्रत्यक्ष लागत के रूप में करीब 25,996 का वित्तीय बोझ पड़ा। मजदूरी को हुए नुकसान के कारण उन्हें आर्थिक संकट झेलना पड़ा।
दुनिया के एक चौथाई मरीज भारत में
ग्लोबल ट्यूबरक्लोसिस रिपोर्ट 2024 के अनुसार दुनिया में टीबी के जितने भी मामले सामने आते हैं उनमें से 56 फीसदी भारत, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस और पाकिस्तान में दर्ज किए गए हैं। 2023 में दुनिया के एक चौथाई से अधिक यानी करीब 26 फीसदी मामले भारत में सामने आए थे।
टीबी मरीजों का स्वास्थ्य बीमा जरूरी
शोधकर्ताओं ने टीबी के मरीजों को कवर करने के लिए स्वास्थ्य बीमा का विस्तार करने और बीमारी का जल्द से जल्द पता लगाने पर जोर देने का सुझाव दिया है। इसके साथ ही उन्होंने टीबी में योगदान देने वाले सामाजिक आर्थिक कारकों को भी समय रहते पहचानने पर जोर दिया है ताकि कमजोर वर्गों के मरीजों पर पड़ने वाले भारी वित्तीय  बोझ को काफी हद तक कम किया जा सके।

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