वाराणसी, 17 दिसंबर 2024, मंगलवार। वाराणसी के मदनपुरा में एक पुराना मंदिर मिला है, जो लगभग 300 साल पुराना बताया जा रहा है। इस मंदिर को सिद्धिश्वर महादेव का मंदिर कहा जा रहा है, जिसका वर्णन स्कन्ध पुराण में भी है। मकान में रहने वाले शहाबुद्दीन ने बताया कि 1916 में जब इसे करखी रियासत के रईस से हमारे बुजुर्ग ताज बाबा ने खरीदी थी, तब से मंदिर का यही स्वरूप था, लेकिन पूजा करने की कोई सामग्री और कोई शिवलिंग नहीं था। मकान बेचकर पूजा सामग्री लेकर बंगाली परिवार चला गया था। अब 108 साल बाद इस तरह के सवाल खड़े करना विवाद खड़ा करने जैसा है। शहाबुद्दीन ने कहा कि हम मंदिर के स्वरूप को यथावत रखेंगे, लेकिन हम यहां पूजा नहीं होने देंगे।
वहीं, इस मंदिर के बारे मे जानकारी मिलते ही ढूंढे बनारस और सनातन रक्षक दल के लोग बंद मंदिर के सामने शंख बजाने लगे, हर-हर महादेव का उद्घोष करने लगे और पूजा-पाठ का अधिकार देने की मांग करने लगे। इसी बीच बड़ी संख्या में पुलिस के जवानों ने वहां पहुंचकर लोगों को हटाया और स्थिति सामान्य की।
प्रशासन ने शुरू की जांच, पीएसी तैनात
मुस्लिम बाहुल्य इलाके में लगभग 300 साल पुराना मंदिर।निकलने की सूचना पर एडीएम सिटी आलोक वर्मा और डीसीपी काशी जोन गौरव वंशवाल ने मदनपुरा स्थित गोल चबूतरा पहुंचकर स्थिति की समीक्षा की। एडीएम सिटी ने कहा कि प्रॉपर्टी से जुड़े दस्तावेज राजस्व से मंगाए गए हैं और एएसआई से भी मामले में मदद मांगी गई है। उन्होंने कहा कि दो से तीन दिनों के अंदर कागज सामने आ जाएगा कि प्रॉपर्टी खरीदते समय क्या स्थिति थी और बदलते समय में क्या क्या परिवर्तन हुआ। डीसीपी गौरव वंशवाल ने कहा कि शांति बनी रहे, इसके लिए यहां पीएसी तैनात कर दी गई है। उन्होंने लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है।
मदनपुरा मंदिर विवाद में नया मोड़: श्री काशी विद्वत परिषद ने किया दावे का समर्थन
मदनपुरा मंदिर विवाद में श्री काशी विद्वत परिषद की एंट्री से निर्णायक मोड़ आ गया है। परिषद ने संस्था ‘ढूंढे काशी’ के दावे को सही ठहराया है कि यह मंदिर सिद्धिश्वर महादेव है। जल्द ही परिषद वहां प्रतिनिधिमंडल भेजकर स्थलीय निरिक्षण कराएगी। परिषद ने सरकार और प्रशासन से मांग की है कि वहां नियमित राग भोग और दर्शन पूजन की व्यवस्था की जाए। मुस्लिम समाज से अपील की गई है कि इसे हिंदुओं को लौटा दिया जाए। श्री काशी विद्वत परिषद के राष्ट्रीय महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी ने इसे पौराणिक मंदिर बताते हुए इसे हिंदुओं को सौंपने की मांग की है।