नई दिल्ली, 15 दिसंबर 2024, रविवार। आत्मसमर्पित नक्सली शंकर मड़का की कहानी एक प्रेरणादायक और रोमांचकारी कहानी है, जो नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में एक नए अध्याय की शुरुआत करती है। शंकर मड़का ने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर नक्सल संगठन को छोड़ दिया और आत्मसमर्पण कर दिया।
शंकर मड़का का जन्म बस्तर जिले के एक छोटे से गांव में हुआ था। वह बचपन से ही नक्सलवाद के प्रभाव में थे और उनके परिवार के कई सदस्य नक्सल संगठन में शामिल थे। शंकर ने भी 2007 में नक्सल संगठन में शामिल हो गए और जल्द ही वह एक महत्वपूर्ण पद पर पहुंच गए।
हालांकि, शंकर को जल्द ही एहसास हुआ कि नक्सलवाद का रास्ता सही नहीं है। वह देख रहे थे कि नक्सलवाद के नाम पर लोगों को मारा जा रहा था, और गरीब और असहाय लोगों को नक्सलवाद के नाम पर धमकाया जा रहा था। शंकर को यह एहसास हुआ कि नक्सलवाद का रास्ता सही नहीं है, और उन्होंने नक्सल संगठन को छोड़ने का फैसला किया।
शंकर ने 2023 में नक्सल संगठन को छोड़ दिया और आत्मसमर्पण कर दिया। उनके आत्मसमर्पण के बाद, उन्हें सरकार की ओर से सम्मान और सुरक्षा प्रदान की गई। शंकर ने कहा कि आत्मसमर्पण के बाद सरकार ने उन्हें सम्मान और नई ज़िंदगी दी है।
आज, शंकर मड़का एक नए जीवन की शुरुआत कर रहे हैं। वह एसपी के साथ समाज में नई राह पर हैं और नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में एक नए अध्याय की शुरुआत कर रहे हैं। शंकर की कहानी एक प्रेरणादायक कहानी है, जो नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई में एक नए अध्याय की शुरुआत करती है।
बता दें, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बस्तर ओलंपिक के समापन समारोह में पहुंचकर आत्मसमर्पित नक्सलियों से मुलाकात की। यह मुलाकात नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में बदलाव का प्रतीक है और उन सैकड़ों युवाओं के लिए प्रेरणा है जो मुख्यधारा में लौटकर एक नई राह पर चलने के इच्छुक हैं।
बस्तर ओलंपिक जैसे आयोजन और आत्मसमर्पण की पहल यह साबित कर रहे हैं कि हिंसा और बंदूक का रास्ता किसी समाधान की ओर नहीं ले जाता। सरकार की नीतियों और विकास की योजनाओं के माध्यम से बस्तर में अब शांति और विश्वास का माहौल बन रहा है।