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Sunday, December 22, 2024

क्या है अजमेर के गरीब नवाज की दरगाह की कहानी?

अजमेर, 30 नवंबर 2024, शनिवार। राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। हिंदू पक्ष ने एक याचिका दायर की है, जिसमें दावा किया गया है कि दरगाह की जगह कभी हिंदू मंदिर हुआ करता था। इस मामले में अदालत का फैसला आना अभी बाकी है। इसके बाद राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर भी सवाल उठने लगे।
कौन थे ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती एक संत और दार्शनिक थे जिन्होंने भारत में इस्लामी विचारों को फैलाया। उनका जन्म 1141 में पर्शिया में हुआ था और वह पैगंबर मोहम्मद साहब के वंशज माने जाते हैं। उनकी जीवन यात्रा में कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। 14 साल की उम्र में वह अनाथ हो गए और इसके बाद उन्होंने सच की तलाश में निकल पड़े। उन्होंने दर्शन, व्याकरण और अध्यात्म का अध्ययन करने बुखारा और समरकंद में जाकर अध्ययन किया। इसके बाद अफगानिस्तान के हेरात में उनकी मुलाकात ख्वाजा उस्मान हरूनी से हुई और उन्होंने चिश्ती सिलसिले की शुरुआत की। उन्होंने मुल्तान और लाहौर में भी अध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया और हिंदू विद्वानों से मिले।
मोईनुद्दीन चिश्ती लाहौर से दिल्ली और फिर अजमेर आए थे। उस समय अजमेर चौहान साम्राज्य की राजधानी थी और पृथ्वीराज तृतीय का शासन था। लेकिन मोहम्मद गोरी के आक्रमण ने अजमेर की हालत खराब कर दी थी। मोईनुद्दीन चिश्ती ने लोगों की सेवा के लिए अजमेर में ठिकाना बनाने का फैसला किया और यहीं पर उन्होंने लोगों की सेवा करनी शुरू कर दी। उनकी मुलाकात बीबी उम्मातुल्ला से हुई और उन्होंने यहीं मिट्टी का एक घर बनाया। धीरे-धीरे यह गरीबों, असहायों और अनाथों का सहारा हो गया और लोग यहां शांति की तलाश में आने लगे। जफर के मुताबिक यहीं से उन्हें गरीब नवाज की संज्ञा मिली।
मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह अजमेर में एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया था। यहां रोज ही लंगर चलता था जो कि सभी के लिए खुला रहता था। बिना धर्म के भेदभाव के सबका यहां स्वागत किया जाता था। मोईनुद्दीन चिश्ती एकात्मवाद का प्रचार करते थे। वह बराबरी, आलौकिक प्रेम और मानवता की बात करते थे। उनके शिष्यों ने इसे विस्तार दिया और चिश्ती सिलसिला को आगे बढ़ाया।
कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी इल्तुतमिश के गुरु थे और उनकी दरगाह मेहरौली में है। बाबा फरीद पंजाब के प्रसिद्ध सूफी संत थे और निजामुद्दीन औलिया भी इसी परंपरा के सूफी संत थे। उनकी दरगाह दिल्ली में है। मुगल शासकों में अकबार पर भी उनका प्रभाव था। अकबर ने उनकी दरगाहों का सुंदरीकरण करवाया और इसके बाद यहां बड़ी संख्या में लोग आने लगे। मुगल काल में ही अजमेर की दरगाह काफी प्रसिद्ध हो गई।

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