देश में सुप्रीम कोर्ट से लेकर निचली अदालतों तक न्यायाधीशों के 5,611 पद रिक्त हैं। इनमें सबसे कम सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के दो पद रिक्त हैं। शीर्ष न्यायालय में न्यायाधीशों के स्वीकृत पद 34 हैं। इसके अलावा, 25 उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों के 364 पद खाली हैं, जबकि उनकी स्वीकृत संख्या 1,114 है। इस क्रम में जिला न्यायालयों में सबसे ज्यादा 5,245 पद रिक्त हैं।
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में प्रश्नकाल के दौरान एक लिखित उत्तर में यह जानकारी दी। एक पूरक प्रश्न के जवाब में कानून मंत्री ने बताया कि हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के लिए संविधान के अनुच्छेद 217 और 224 में नियुक्तियों का प्रावधान किया गया है।
यहां पदों के खाली होने की वजह सेवानिवृत्ति, इस्तीफे, न्यायाधीशों की पदोन्नति और स्वीकृत संख्या में बदलाव होता है। इन्हें भरने के लिए त्वरित कार्यवाही जारी है, जबकि जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में पदों को भरने की जिम्मेदारी न्यायालय और राज्य सरकार की होती है। इसके लिए सांविधानिक तौर पर राज्य सरकारों को संबंधित उच्च न्यायालयों के परामर्श से संविधान के अनुच्छेद 309 में और अनुच्छेद 233 और 234 में प्रावधान किए गए हैं। इसके अनुसार राज्य को अधिकार दिया गया है कि वह राज्य न्यायिक सेवा में नियुक्ति के लिए भर्ती के नियम बना सकता है।
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि जनवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में एक विशेष समय सीमा तय की थी, जिसका पालन राजकीय, उच्च न्यायालयों द्वारा जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों की भर्ती प्रक्रिया में किया जाना चाहिए।