हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि के दिन काल भैरव जयंती मनाई जाती है। मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि 22 नवंबर को शाम 6 बजकर 07 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 23 नवंबर 2024 को रात 7 बजकर 56 पर समाप्त हो जाएगी। ऐसे में 22 नवंबर, शुक्रवार को काल भैरव जयंती है। भगवान काल भैरव को भूत संघ नायक के रूप में वर्णित किया गया है। पंच भूतों के स्वामी-जो पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश हैं। वह जीवन में सभी प्रकार की वांछित उत्कृष्टता और ज्ञान प्रदान करने वाले हैं। भगवान काल भैरव का प्राकट्य यह संदेश देता है कि अहंकार, अधर्म और अन्याय का अंत अवश्य होता है।
भगवान काल भैरव का प्राकट्य शिवपुराण की एक महत्वपूर्ण कथा से जुड़ा है, जो उनके क्रोध, शक्ति, और न्याय के प्रतीक के रूप में उनकी उपस्थिति को दर्शाती है। इस कथा के अनुसार, एक बार त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु और महेश) के बीच सृष्टि के सर्वोच्च देवता को लेकर विवाद हुआ। सभी देवता इस चर्चा में शामिल हुए, और यह प्रश्न उठा कि कौन सबसे महान है। इस विवाद में भगवान ब्रह्मा ने अपने पांच मुखों के माध्यम से यह दावा किया कि वे सृष्टि के रचयिता हैं और इसलिए सर्वोच्च हैं। उनकी बातों में अहंकार झलक रहा था। भगवान शिव, जो विनम्रता और सृष्टि की मूल चेतना के प्रतीक हैं, ने उन्हें अहंकार त्यागने की सलाह दी। परंतु ब्रह्मा ने इसे अनसुना कर दिया और भगवान शिव का अपमान कर दिया।
काल भैरव की पूजा का महत्व
काल भैरव की पूजा तंत्र और साधना पद्धति में विशेष महत्व रखती है। वे समय, मृत्यु, और सुरक्षा के देवता माने जाते हैं। भक्तों का मानना है कि उनकी उपासना से भय, पाप, और बुरी शक्तियों का नाश होता है। काशी में उनकी विशेष आराधना होती है, और हर मंगलवार और शनिवार को उनके भक्त उन्हें शराब, नारियल, और काले तिल अर्पित करते हैं। मान्यता है कि इनके भक्तों का अनिष्ट करने वालों को तीनों लोकों में कोई शरण नहीं दे सकता । काल भी इनसे भयभीत रहता है इसलिए इन्हें काल भैरव एवं हाथ में त्रिशूल,तलवार और डंडा होने के कारण इन्हें दंडपाणि भी कहा जाता है । इनकी पूजा-आराधना से घर में नकारात्मक शक्तियां,जादू-टोने तथा भूत-प्रेत आदि से किसी भी प्रकार का भय नहीं रहता बल्कि इनकी उपासना से मनुष्य का आत्मविश्वास बढ़ता है।