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Thursday, November 21, 2024

वरुणा नदी की दुर्दशा: एक जीवनरेखा का पतन

✍️ विकास यादव
वाराणसी, 21 नवंबर 2024, गुरुवार। वाराणसी की जीवनरेखा वरुणा नदी आज गंदगी और प्रदूषण के बोझ से दबी हुई है। एनजीटी की रिपोर्ट कहती है कि गंगा का जल आचमन योग्य नहीं है, लेकिन वरुणा नदी की हालत तो और भी खराब है। इसकी तुलना पहले टेम्स नदी से की जाती थी, लेकिन आज इसका पानी छूने लायक भी नहीं बचा है। नदी के काले सीवर के पानी से उठती दुर्गंध विचलित करती है और इसके पानी का इस्तेमाल करने से त्वचा की गंभीर समस्याएं हो सकती हैं। वरुणा नदी का उद्गम स्थल जौनपुर, इलाहाबाद और प्रतापगढ़ की सीमा पर इनऊझ ताल के मैलहन झील पर होता है और यह नदी 202 किमी की यात्रा करके वाराणसी के आदिकेशव घाट पर गंगा में मिलती है। इसका नाम हिंदू देवता वरुण से लिया गया है, जो आकाश, समुद्र और जल से जुड़े हैं। वरुणा नदी के उद्धार को लेकर सरकारें कागजी घोड़े दौड़ा रही हैं, लेकिन जमीनी हकीकत में इसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है। वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री अरुण सक्सेना ने कहा है कि महाकुंभ से पहले गंगा समेत यूपी की सभी सहायक नदियां साफ हो जाएंगी, लेकिन यह वादा कब तक पूरा होगा, यह एक बड़ा सवाल है।
वरुणा नदी: जीवनदायिनी से कूड़े-कचरे का डंपिंग स्टेशन तक
प्रयागराज से लेकर वाराणसी तक वरुणा नदी के दोनों छोर पर बसे सैकड़ों गांवों के किसानों के लिए जीवनदायिनी वरुणा नदी आज कूड़े-कचरे का डंपिंग स्टेशन बनकर रह गई है। खेती-किसानी के लिए इसका उपयोग अब स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित हो रहा है। वाराणसी में आदिकेशव घाट से लेकर रामेश्वर तक वरुणा नदी गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। बड़े-बड़े सीवर और खुले हुए ड्रेनेज से मलजल सीधे वरुणा में गिर रहे हैं। नदी किनारे खुली फैक्ट्रियों के केमिकल के साथ ही होटलों का गंदा कूड़ा-करकट वरुणा में डाले जा रहे हैं। नदी के किनारों पर चलने वाले कई कसाईखाने सिर्फ कागजों में बंद हैं, हकीकत खुद वरुणा नदी बयां कर रही है। कॉरिडोर की रेलिंग के किनारे और नदी के तट पर कूड़े का अंबार है। वरुणा नदी की यह हालत सरकारी दावों की पोल खोल रही है। वरुणा नदी के उद्धार के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
वरुणा नदी का जहरीला पानी: सब्जियों में घुल रहा है जहर
वाराणसी के 40 से अधिक गांवों में वरुणा नदी के पानी से सब्जियां उगाई जाती थीं, लेकिन अब यह पानी जहरीला हो चुका है। लोहता, चमाव, शिवपुर, रामेश्वर समेत कई गांवों में वरुणा के पानी से खेतों की सिंचाई होती है, लेकिन इसमें जिंक, क्रोमियम, मैग्नीज, निकल, कैडमियम, कापर, लेड जैसे घातक तत्वों की मात्रा मानक से अधिक है। इस जहरीले पानी से उगाई जाने वाली सब्जियों का सेवन करने वाले लोगों को पेट की बीमारी का सामना करना पड़ रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि वरुणा नदी के पानी से उगाई जाने वाली सब्जियों में जहरीले तत्वों की मात्रा अधिक होने से लोगों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। वरुणा नदी के उद्धार के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है, ताकि लोगों को स्वच्छ और सेहतमंद सब्जियां मिल सकें।
वरुणा कॉरिडोर: टूटी रेलिंग और उखड़े पत्थर, खतरे में जान
वाराणसी में वरुणा नदी को नया जीवन देने के लिए बनाए गए 11 किलोमीटर के कॉरिडोर की हालत खराब हो गई है। नदी किनारे की रेलिंग जगह-जगह से उखड़ गई है और कुछ स्थानों से तो रेलिंग गायब हो चुकी है। पाथवे के पत्थर भी जगह-जगह से उखड़ गए हैं, जो वरुणा कॉरिडोर मार्ग पर वाहन चलाने वालों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। यह हालत सरकार की लापरवाही को दर्शाती है और वरुणा नदी के उद्धार के प्रति उनकी गंभीरता की कमी को उजागर करती है। वरुणा कॉरिडोर के निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे, लेकिन अब इसकी हालत देखकर लगता है कि यह पैसा व्यर्थ गया है। सरकार को इस मामले में तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए और वरुणा कॉरिडोर की मरम्मत करानी चाहिए।
वरुणा नदी की दुर्दशा: जलकुंभी और काई ने रोका पानी का प्रवाह
वाराणसी की वरुणा नदी की हालत दिनों-दिन खराब होती जा रही है। नदी का पानी काला और जानलेवा हो गया है। चौकाघाट के समीप वरुणा में जलकुंभी का जाल इस कदर बिछा है कि पानी में प्रवाह थम गया है। नदी में जगह-जगह काई जम गई है और गंदगी तैर रही है। नदी किनारे की सड़ांध उधर से गुजरना दूभर कर देती है। प्रदूषण विभाग के दावों के बावजूद वरुणा नदी की हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा है। 11 नालों को बंद करने के बाद भी नदी का पानी साफ नहीं हो पा रहा है। वरुणा नदी के उद्धार के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत है। नदी की सफाई और जलकुंभी के नियंत्रण के लिए तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।
वरुणा कॉरिडोर: राजनीति का शिकार
वाराणसी में लगभग 11 किलोमीटर वरुणा कॉरिडोर बनाने की पहल समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने गोमती रिवर फ्रंट की तर्ज पर शुरू की थी। वर्ष 2016 में 201 करोड़ की लागत से 10 किलोमीटर तक नदी के दोनों छोर पर रेलिंग बनाने के साथ ही पाथवे का निर्माण हुआ। लेकिन गोमती रिवर फ्रंट घोटाला जगजाहिर होने के बाद वरुणा के उद्धार की गति धीमी पड़ गई। समाजवादी पार्टी का आरोप है कि वरुणा का विकास योगी सरकार ने सिर्फ इसलिए बंद कर दिया क्योंकि वरुणा का उद्धार अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट में शामिल था। हालांकि योगी सरकार के कार्यकाल में ही डेनमार्क से टीम आई थी वरुणा के उद्धार को उसे कचरा मुक्त करने के लिए लेकिन उन्होंने भी बाद में हाथ खींच लिए। वरुणा कॉरिडोर के निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए थे, लेकिन अब इसकी हालत देखकर लगता है कि यह पैसा व्यर्थ गया है। सरकार को इस मामले में तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए और वरुणा कॉरिडोर की मरम्मत करानी चाहिए।

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