वाराणसी, 15 नवंबर 2024, शुक्रवार। काशी देव दीपावली के अवसर पर, शहर अपनी धार्मिक यात्रा में एक और सुनहरा अध्याय जोड़ने के लिए तैयार है। आज उपराष्ट्रपति द्वारा नमो घाट के फेज-2 का उद्घाटन किया जाएगा, जो विश्व को सनातन की राह दिखाने वाली काशी की नई पहचान बन गया है। नमो घाट पर 75 फीट ऊंचा नमस्ते स्कल्पचर श्रद्धालुओं के लिए एक आकर्षक सेल्फी पॉइंट बन गया है, जो इसका नाम नमो घाट रखने का कारण है। पहले इस घाट का नाम खिड़कियां घाट था, जो अब इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह जाएगा। यह नमो घाट काशी की धार्मिक यात्रा में एक नया और महत्वपूर्ण स्थल बन गया है, जो श्रद्धालुओं को आकर्षित करेगा और उनकी धार्मिक यात्रा को और भी समृद्ध बनाएगा।
इस अवसर पर, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार देव दीपावली पर काशी आने वाले पर्यटकों को काशी की धार्मिक इतिहास, मां गंगा का अवतरण, और देव दीपावली का धार्मिक वर्णन 3डी प्रोजेक्शन मैपिंग के माध्यम से दिखाएगी। इसके अलावा, गंगा की लहरों के साथ लेजर शो और लाइट मल्टीमीडिया शो के माध्यम से भगवान शिव के भजन की प्रस्तुति होगी।
नमो घाट, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक, ने वास्तव में पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। यहां पर्यटक सुबह-ए-बनारस के अलौकिक दृश्य को देखने के लिए आते हैं, और उगते सूरज को देखकर वे परम आनंद की अनुभूति करते हैं। हर कोई इस घाट के साथ अपनी एक तस्वीर लेने को उत्सुक दिखता है, और यह विश्व स्तरीय सुविधाओं से युक्त खूबसूरत नमो घाट आस्था, पर्यटन और रोजगार के नए द्वार खोल रहा है। मल्टी मोड टर्मिनल के निर्माण के बाद, पूरी दुनिया में वाराणसी के विकास की नई गाथा लिखी जाएगी। यह घाट वास्तव में एक अद्वितीय और आकर्षक स्थल है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
काशी की ऐतिहासिक धरोहर और आधुनिक विकास का संगम, नमो घाट, गंगा और वरुणा के पवित्र संगम के निकट स्थित है। यह घाट काशी के तीन हजार साल पुराने गौरवशाली इतिहास को अपने साथ समेटे हुए है, जो शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। नमो घाट के पीछे स्थित काशी के राजा बलवंत सिंह के सेनापति का मकबरा इस शहर के गौरवशाली इतिहास की गाथा कहता है, जो काशी के शौर्य और साहस का प्रतीक है। दूसरी ओर, अत्याधुनिक सुविधाओं से युक्त नमो घाट काशी के विकास की नई कहानी बताता है, जो शहर की आधुनिकता और प्रगति का प्रतीक है। नमो घाट वास्तव में काशी के इतिहास और विकास का संगम है, जो शहर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और आधुनिक प्रगति का प्रतीक है।
वाराणसी में नमो घाट का पुनर्निर्माण: एक नई पहचान
वाराणसी में 1.71 किलोमीटर लंबे नमो घाट का पुनर्निर्माण 91.06 करोड़ की लागत से किया गया है। यह घाट न केवल शहर की ऐतिहासिक धरोहर को समेटे हुए है, बल्कि आधुनिक सुविधाओं से भी युक्त है। नमो घाट पर मेटल के 15, 25 और 75 फ़ीट ऊंचे नमस्ते करते स्कल्प्चर बनाए गए हैं, जो शहर की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक हैं। इस घाट की एक और विशेषता है कि यह जल, थल और नभ से जुड़ने वाला पहला घाट है, जहां हेलिकॉप्टर उतर सकते हैं।
इसके अलावा, नमो घाट पर वाटर एडवेंचर स्पोर्ट्स और हेली टूरिज्म की सुविधा भी उपलब्ध है, जो पर्यटकों के लिए एक नया अनुभव प्रदान करेगी। घाट पर फ्लोटिंग सीएनजी स्टेशन, ओपन थियेटर, कुंड, बाथिंग कुंड, योग स्थल, वाटर स्पोर्ट्स, चिल्ड्रन प्ले एरिया, और कैफेटेरिया जैसी आधुनिक सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। बाढ़ से सुरक्षा के लिए घाट पर कोगेबियन और रेटेशन वाल का निर्माण किया गया है, जो घाट की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा। इसके अलावा, घाट तक वाहनों के आवागमन और पार्किंग की सुविधा भी उपलब्ध है, जो पर्यटकों के लिए सुविधाजनक होगी।
दिव्यांगजनों के लिए घाट पर रैंप का निर्माण किया गया है, जो समावेशी सुविधाओं का प्रतीक है। नमो घाट वाराणसी की एक नई पहचान बन गया है, जो शहर की ऐतिहासिक धरोहर और आधुनिक प्रगति का प्रतीक है।
काशी की ऐतिहासिक धरोहर: खिड़कियां घाट की कहानी
काशी के पहले राजा दिवोदास ने आदिकेशव घाट से लेकर भैंसासुर घाट के बीच अपना किला बनवाया था, जिसका एक हिस्सा गंगा किनारे बना था। इस किले में खूब सारी खिड़कियां थीं, जिनसे राजा और उसके परिवार के सदस्य गंगा के अलौकिक दृश्य को निहारते थे। लेकिन 1194 में कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमण ने काशी की तस्वीर बदल दी। उसने हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थल काशी के लगभग एक हजार से अधिक मंदिरों को तोड़ दिया और अनमोल मूर्तियों और जेवरातों को लूट लिया। इस हमले में खिड़कियां घाट पर बने किले को भी तोड़ दिया गया, जिससे सिर्फ खंडहर बचा।
लेकिन खंडहर के एक हिस्से की खिड़कियां सिर्फ बची थीं। कालांतर में लोग इस स्थान को खिड़की घाट पुकारने लगे और बदलते समय के साथ इसे खिड़कियां घाट कहा जाने लगा। यह नाम आज भी इस स्थान की ऐतिहासिक महत्ता को दर्शाता है। आज खिड़कियां घाट का नाम नमो घाट है, जो काशी की नई पहचान बन गया है। लेकिन इसकी ऐतिहासिक कहानी अभी भी हमें याद दिलाती है कि काशी की धरोहर कितनी समृद्ध और गौरवशाली है।
लाल खान की अंतिम इच्छा: खिड़कियां घाट का एक अनोखा मकबरा
काशी के ऐतिहासिक खिड़कियां घाट के पिछले हिस्से में एक अनोखा मकबरा है, जो लाल खान की याद में बनवाया गया था। लाल खान तत्कालीन काशी नरेश बलवंत सिंह के सेनापति थे, जिन्होंने अपनी वीरता और सेवा से नरेश का विश्वास हासिल किया था। एक दिन, काशी नरेश ने लाल खान से कहा कि वह उनके लिए कुछ मांगें, लेकिन लाल खान ने एक अनोखी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि उनकी मौत के बाद, उनका मकबरा ऐसे स्थान पर बनवाया जाए जहां से वह राजमहल को देख सकें। यह इच्छा लाल खान की वफादारी और राजमहल के प्रति उनके प्रेम को दर्शाती है।
लाल खान की मौत के बाद, काशी नरेश ने उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान किया और खिड़कियां घाट पर उनका मकबरा बनवाया। इस मकबरे में एक विशेष झरोखा बनवाया गया, जो देखने से खिड़की की तरह लगता था और जिससे सीधे काशी नरेश का महल दिखता था। यह झरोखा लाल खान की इच्छा को पूरा करता है और उनकी याद में बनवाया गया एक अनोखा स्मारक है। आज, लाल खान का मकबरा खिड़कियां घाट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो काशी की ऐतिहासिक धरोहर को दर्शाता है। यह मकबरा लाल खान की वीरता, वफादारी और राजमहल के प्रति उनके प्रेम की कहानी बताता है।
काशी रेलवे स्टेशन का विस्तार: एक अनोखा इतिहासकथा
काशी रेलवे स्टेशन का विस्तार न केवल यात्रियों के लिए सुविधाजनक है, बल्कि यहां की खोदाई से काशी का एक अनोखा इतिहास भी सामने आया। वर्ष 1940 में जब रेलवे स्टेशन के विस्तार के लिए खोदाई की गई, तो पुरातत्व विभाग को कुछ ऐसी संरचनाएं मिलीं जो काशी के तीन हजार साल पुराने इतिहास को दर्शाती हैं। इस खोदाई में मिट्टी के बर्तन, धातु और कई अन्य सामान मिले, जो सैकड़ों वर्ष पुराने इतिहास को समेटे हुए थे। यह उत्खनन काशी के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाता है और यहां के पुरातात्विक महत्व को प्रमाणित करता है।
बीएचयू के छात्रों की मदद से दोबारा खोदाई शुरू हुई और इसके परिणामस्वरूप काशी का एक नया इतिहास सामने आया। राजघाट से लेकर खिड़कियां घाट तक का इतिहास, जो पहले अनजान था, अब सामने आया है। पुरातत्व विभाग ने इस क्षेत्र को राष्ट्रीय महत्व के तौर पर संरक्षित कर रखा है, जिससे यहां का इतिहास और संस्कृति सुरक्षित रहे। काशी रेलवे स्टेशन का विस्तार न केवल यात्रियों के लिए सुविधाजनक है, बल्कि यहां का इतिहास भी एक अनोखा और महत्वपूर्ण हिस्सा है।