नई दिल्ली, 5 नवंबर 2024, मंगलवार: क्या सरकार किसी भी निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है? इस सवाल के जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। अदालत ने कहा कि सभी निजी संपत्तियों को सार्वजनिक हित वाली घोषित नहीं किया जा सकता, इसलिए सरकार हर संपत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकती। हालांकि, सार्वजनिक हित के मामलों में सरकार को समीक्षा करने का अधिकार है और ऐसी स्थिति में वह जमीन का अधिग्रहण भी कर सकती है।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने 1978 के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सामुदायिक हित के लिए राज्य किसी भी निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है। संविधान के आर्टिकल 39(b) का अवलोकन करते हुए, बेंच ने फैसला दिया कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक हित के लिए अधिग्रहित नहीं किया जा सकता। इस फैसले का मतलब यह है कि सरकार को निजी संपत्तियों पर कब्जा करने का अधिकार नहीं है, लेकिन वह जनता की भलाई के लिए भौतिक संसाधनों पर दावा कर सकती है जो समुदाय के पास हैं। यह फैसला निजी संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करता है और सरकार की शक्तियों को सीमित करता है।
अदालत बोली- 1978 का फैसला समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था
उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि 1978 का फैसला समाजवादी विचारधारा से प्रेरित था, जिसमें यह कहा गया था कि सरकार आम भलाई के लिए सभी निजी संपत्तियों को अपने कब्जे में ले सकती है। इस फैसले में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया गया है, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को सरकार द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता है।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय ने समाजवादी विचारधारा को अपनाने के बजाय निजी संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करने का फैसला किया है। यह फैसला न केवल निजी संपत्ति के मालिकों के लिए बल्कि समाज के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इससे सरकार की शक्तियों पर नियंत्रण रखा जा सकता है और निजी संपत्ति के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है। इस फैसले के पीछे का तर्क यह है कि सरकार को निजी संपत्ति पर कब्जा करने का अधिकार नहीं है, बल्कि उसे आम भलाई के लिए काम करना चाहिए। यह फैसला न्यायालय की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को दर्शाता है, जो कि हमारे लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।