वाराणसी, 5 नवंबर 2024, मंगलवार: छठ पूजा, जिसे लोक आस्था का महापर्व कहा जाता है, भगवान सूर्य और छठी मैया (षष्ठी देवी) की पूजा के लिए समर्पित है। यह पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलता है, जो कि इस वर्ष 5 नवंबर यानी आज से आरंभ हुआ है। इस महत्वपूर्ण त्योहार में, लोग नहाय-खाय की परंपरा के साथ छठ पूजा की शुरुआत करते हैं। छठी मैया और भगवान सूर्य की पूजा करके, लोग उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। सूर्य देव की पूजा के लिए छठ का महापर्व बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि यह जीवन को रोशन और समृद्ध बनाने वाली ऊर्जा का प्रतीक है।
छठ महापर्व: खरना की महत्ता
छठ महापर्व के दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है, जिसका अर्थ है शुद्धता और पवित्रता। इस दिन, लोग अपने शरीर और आत्मा की शुद्धि पर ध्यान देते हैं। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद, छठ पूजा का व्रत शुरू हो जाता है। कल यानी, 6 नवंबर को खरना किया जाएगा, जो कार्तिक मास की पंचमी तिथि के दिन पड़ता है। इसे लोहंडा के नाम से भी जाना जाता है। खरना के दिन, महिलाएं शाम को मीठा भोजन करके अपने व्रत की शुरुआत करती हैं। यह दिन छठ पूजा के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसमें लोग अपनी आत्मा की शुद्धि और पवित्रता पर ध्यान देते हैं।
छठ पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा: खरना की खीर
छठ पूजा के दूसरे दिन, खरना के दिन, विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है, जिसमें गुड़ की रोटी और खीर शामिल हैं। खीर बनाने के लिए विशेष समय चुना जाता है, जब आसपास शोर-शराबा न हो और व्रती शांति से प्रसाद ग्रहण कर सकें। खरना के दिन, शाम को मिट्टी के चूल्हे और आम की लकड़ी पर खाना पकाया जाता है, जिसे केले के पत्तों पर परोसा जाता है। इस प्रसाद में गुड़ की रोटी, खीर और केला शामिल होता है। व्रती इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद 36 घंटों तक उपवास करती है, जिसमें उन्हें कुछ भी नहीं खाना चाहिए और न ही पीना चाहिए। खरना की खीर का महत्व छठ पूजा में बहुत अधिक है, क्योंकि यह व्रती को शुद्धता और पवित्रता की भावना से भर देती है।
छठ पूजा के दूसरे दिन: खरना के दिन व्रत की शुरुआत
खरना के दिन, व्रती को विशेष तरीके से व्रत शुरू करना होता है। व्रती उसी कमरे में प्रसाद ग्रहण करती हैं जहां छठी मैया का खरना किया जाता है। इसके बाद, व्रती परिवार के सदस्यों को प्रसाद बांटती है। शाम को व्रती खीर ग्रहण करते हैं और फिर अन्न-जल का त्याग करते हैं। इसके बाद 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू होता है। व्रती पूजा घर में ही सोती हैं और खरना के उपवास के दौरान छठी मैया को चढ़ने वाले पकवान बनाती हैं। इनमें ठेकुआ, पेडुकिया और अन्य सामग्री शामिल होती है। इन पकवानों को टोकरी में रखकर छठी मैया को चढ़ाया जाता है और अर्घ्य देने के दौरान विशेष महत्व दिया जाता है।
छठ पूजा का महत्व: जीवन और समृद्धि की कामना
छठ पूजा एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसमें सूर्य देव और छठी माता की पूजा की जाती है। सूर्य को जीवनदाता और छठी माता को संतान की देवी माना जाता है। इस त्योहार के माध्यम से, लोग अपने परिवार की समृद्धि और अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करते हैं। छठ पर्व प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है, जिसमें जल, सूर्य, चंद्रमा आदि की पूजा की जाती है। यह हमें प्रकृति के संरक्षण का महत्व सिखाता है और हमें प्रकृति के साथ संतुलन बनाने की याद दिलाता है। छठ का व्रत बहुत कठिन होता है, जिसमें व्रतधारी 36 घंटे तक बिना पानी पिए रहते हैं। लेकिन यह व्रत न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक भी है, जो सभी वर्गों और समुदायों के लोगों को एक साथ लाता है। इस पर्व के दौरान, लोग मिलकर पूजा करते हैं, भोजन करते हैं और एक-दूसरे के साथ समय बिताते हैं, जिससे सामाजिक एकता और भाईचारा बढ़ता है।