गोवर्धन पर्वत: जानें इसके आकार के पीछे की कथा और पत्थर ले जाने की मनाही क्यों?
मथुरा, 1 नवंबर 2024, शुक्रवार । दिवाली के दूसरे दिन, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा मनाई जाती है। इस साल यह पर्व 2 नवंबर, शनिवार को है।
गोवर्धन पर्वत का महत्व
गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के बज्रमंडल में स्थित है और धर्म ग्रंथों में इसे भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप माना गया है। रोज हजारों लोग गोवर्धन पर्वत के दर्शन और परिक्रमा करने आते हैं।
कलयुग के आरंभ और गोवर्धन पर्वत
मान्यता है कि गोवर्धन पर्वत का आकार कलयुग के आरंभ होने के साथ ही कम होने लगा। जब यह पूरी तरह से धरती से सट जाएगा, तो कलयुग अपने चरम काल पर पहुंच जाएगा और धरती से धर्म का नामोनिशान मिट जाएगा।
गोवर्धन पर्वत के पत्थर की मान्यता
गोवर्धन पर्वत के पत्थर को घर नहीं ले जाना चाहिए, नहीं तो बुरे दिन शुरू हो सकते हैं और सुख-संपत्ति नष्ट हो सकती है। इसे 84 कोस तक यानी ब्रज मंडल की सीमा तक ही ले जाना उचित है। इसके आगे इसे ले जाना महापाप माना गया है।
गोवर्धन पूजा की विधि
गोवर्धन पूजा के दिन महिलाएं अपने आंगन में गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाकर इसकी पूजा करती हैं। इस दिन भगवान कृष्ण की विजय का जश्न मनाया जाता है।
गोवर्धन परिक्रमा के 5 महत्वपूर्ण नियम
गोवर्धन परिक्रमा का विशेष महत्व है, जिससे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। परिक्रमा करते समय कुछ जरूरी नियमों का पालन करना चाहिए:
1. नंगे पैर परिक्रमा करें: जूते, चप्पल पहनकर परिक्रमा नहीं करनी चाहिए.
2. नशीले पदार्थों से दूर रहें: बीड़ी-सिगरेट, तंबाकू आदि का सेवन न करें.
3. वाहनों का उपयोग न करें: परिक्रमा किसी वाहन में बैठकर नहीं करनी चाहिए.
4. भगवान के भजन करें: व्यर्थ की बातें बिल्कुल भी न करें और भगवान के भजन करें.
5. सकारात्मक विचार रखें: परिक्रमा के दौरान कोई भी गलत विचार मन में न लाएं.
इन नियमों का पालन करके गोवर्धन परिक्रमा का अधिक लाभ उठा सकते हैं।
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