वाराणसी, 29 अक्टूबर 2024 । दीपावली का पर्व सतयुग और उसके बाद त्रेतायुग की दो घटनाओं से जुड़ा है। सतयुग में कार्तिक कृष्ण अमावस्या पर समुद्र मंथन से महालक्ष्मी प्रकट हुई थीं। लक्ष्मी पूजन तभी सतयुग से होता आ रहा है। कालांतर में त्रेतायुग आया, भगवान विष्णु ने रामावतार लिया। संयोग से रावण वध के बाद श्रीराम छोटी दिवाली के दिन भरत को साथ लेकर अयोध्या पहुंचे। अगले दिन अमावस्या को लक्ष्मी पूजन के साथ ही राम-जानकी के आगमन पर देशभर में दीप जलाए गए। तब से लक्ष्मी और राम की पूजा एक साथ दीपावली पर्व के रूप में जुड़ गई। कलयुग में वही पर्व चला आ रहा है। लेकिन इस वर्ष दिवाली कब मनाई जाएगी। इसको लेकर भ्रम है। अब तक अलग-अलग 31 अक्टूबर और एक नवंबर की बात सामने आ रहे हैं।
धर्म, आध्यात्म और सांस्कृतिक नगरी काशी में तो दिवाली की तिथि को लेकर विद्वानों का दो गुट आमने-सामने आ गया है। यहां तक कि विद्वानों का दोनों गुट दंगल में उतरकर दो-दो हाथ करने के लिए भी तैयार है। दरसल, कुछ दिन पहले वाराणसी में काशी विद्वत परिषद ने दावा किया था कि दिवाली 31 अक्टूबर को है। जबकि, काशी के ही गनेश्वर शास्त्री द्रविड़ जी और कई अन्य विद्वानों ने मुहूर्त के अनुसार दिवाली की तिथि 1 नवंबर बताई थी। अयोध्या श्री राम मंदिर का मुहूर्त निकालने वाले गनेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने काशी विद्वत परिषद से पुनर्विचार करने को कहा था। गनेश्वर शास्त्री की बातें काशी विद्वत परिषद को इतनी नागवार गुजरी कि परिषद के विद्वानों ने गनेश्वर शास्त्री द्रविड़ जी सहित सभी विद्वानों को चुनौती दे डाली है। कहा कि जिनको लगता है कि दीपावली एक नवंबर को है वो 29 अक्टूबर को विद्वत परिषद के साथ शास्त्रार्थ कर सकता है। विद्वत परिषद के विद्वानों ने कहा कि गनेश्वर शास्त्री यदि कहीं आ नहीं सकते तो ऑनलाइन और जूम मीटिंग से भी शास्त्रार्थ कर सकते हैं।
काशी के विद्वत परिषद ने गनेश्वर शास्त्री द्रविड़ को नसीहत देते हुए कहा कि वे भ्रम न पैदा करें। विद्वत परिषद ने चुनौती देते हुए कहा कि देश के किसी भी विद्वान, धर्माचार्य या संस्थान को ये लगता है कि दीपावली एक नवंबर को है वो काशी विद्वत परिषद से शास्त्रार्थ कर सकता है। विद्वत परिषद खुले मंच से चुनौती देता है। विद्वत परिषद के अनुसार, 31 अक्टूबर को ही दीवावली मनाना शास्त्र के अनुसार सही है। दीपावली की तिथि के हमारे प्रस्ताव पर शंकराचार्य स्वामी अविमुकतेश्वरानंद जी, शंकराचार्य स्वामी सदानंद जी और शंकराचार्य स्वामी निश्चिलानंद जी महाराज समेत अखाड़ा परिषद, संत समिति और राम भद्राचार्य जी का भी समर्थन प्राप्त है।
विद्वत परिषद के अध्यक्ष प्रोफेसर वशिष्ठ त्रिपाठी और महामंत्री प्रोफेसर राम नारायण द्विवेदी ने एक स्वर में कहा कि गनेश्वर शास्त्री द्रविड़ जी को विद्वत परिषद के साथ इस विषय पर अपना पक्ष रखना चाहिए। अगर वो सही हुए तो हम मान लेंगे, नहीं तो उनको भ्रम नहीं फैलाना चाहिए। बता दें, गनेश्वर शास्त्री द्रविड़ जी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव में प्रस्तावक रहे हैं। उन्होंने काशी विद्वत परिषद से 31 अक्टूबर को दीवाली मनाने के निर्णय पर पुनर्विचार करने को कहा था। कहा था कि पांच प्रमुख पंचागों में से तीन ने एक नवंबर की शास्त्रीय दृष्टिकोण से दीपावली मनाने की पुष्टि की है। एक नवंबर को उदया तिथि में प्रदोष और सूर्यास्त के बाद अमावस्या भी मिल रही है। इसके साथ ही स्वाति नक्षत्र और प्रतिपदा मिल रही, जो कि महालक्ष्मी पूजन के लिए सर्वोत्तम है।