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Thursday, February 6, 2025

धनतेरस पर काशी में बांटा जाएगा खजाना, साल में सिर्फ चार दिन खुलता है मां अन्नपूर्णा का दरबार, महादेव ने आदि शक्ति से मांगी थी भिक्षा

वाराणसी, 25 अक्टूबर 2024, शुक्रवार। वाराणसी की देश में धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक राजधानी के रूप में पहचान है। मंदिरों के शहर काशी में एक ऐसा मंदिर भी है जो काफी अनोखा है। हम जिस मंदिर के बारे में आपको बताने वाले हैं वह इसलिए भी अनोखा है क्योंकि मंदिर का कपाट साल में केवल एक दिन ही खुलता हैं। हम बात कर रहे हैं काशी के प्रसिद्ध माता अन्‍नपूर्णा मंदिर की। इन्हें तीनों लोकों में धन-धान्य और खाद्यान्न की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि माता ने स्‍वयं भगवान शिव को खाना खिलाया था। जिस की गवाही मंदिर की दीवारों पर बने चित्र देते हैं। एक साल बाद मां अन्नपूर्णा का स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन 29 अक्टूबर से आरंभ होगा, जोकि 1 नवंबर तक जारी रहेगा। चार दिनों तक दर्शन देने के बाद मां का पट एक साल के लिए बंद हो जाएगा। धनतेरस पर धन्य धान पूरित होने के लिए मां का दर्शन करने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी भक्त आते हैं और घंटों लाइन खड़े होकर दर्शन करते हैं। मां का अन्नकूट का प्रसाद भी ग्रहण करते हैं। मां अन्नपूर्णेश्वरी के दरबार में मां का स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन करने के लाखों भक्तों की होने वाली भीड़ को देखते हुए अलग से लकड़ी के सीढ़ी का निर्माण शुरू हो गया है। इसी सीढ़ी पर चढ़कर सभी भक्त मां अन्नपूर्णेश्वरी के स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन करने के लिए जाते हैं।
29 से 1 नवंबर तक मां देंगी दर्शन
दरअसल, इस मंदिर में साल में केवल एक बार अन्नकूट महोत्सव होता है। यह अन्नकूट महोत्सव धनतेरस के दिन आयोजित होता है। कुबेर का खजाना खुलता है, उस खजाने में से भक्तों को धान, लावा और सिक्के का प्रसाद दिया जाता है। अन्न्पूर्णा मंदिर के महंत शंकरपुरी ने बताया कि धरतेरस 29 अक्टूबर को है। इस दिन मां के स्वर्णमयी प्रतिमा का दर्शन भक्त कर सकेंगे। साथ ही चार दिनों के लिए मां के मंदिर का पट खोल दिया जाएगा। 1 नवंबर की शाम तक मां सभी भक्तों को दर्शन देंगी।
महादेव ने मां अन्नपूर्णा से मांगी थी भिक्षा
महंत शंकरपुरी ने बताया कि भगवान शंकर ने जब काशी को बसाया तो उनके साथ देव लोक के सभी देवी देवता काशी आ गए थे। एक बार बहुत अकाल पड़ा और लोगों में त्राहि त्राहि मच गई। अन्न की कमी उत्पन्न हो गई। तब महादेव मां अन्नपूर्णा से भिक्षा लेने पहुंच गए। तब मां ने महादेव को आशीर्वाद दिया कि काशी में कोई कभी भूखा नहीं सोएगा। तब से मां अन्नपूर्णा का दर्शन-पूजन की परंपरा शुरू हुई थी। मान्यता है, अन्‍नकूट के दिन उनके दर्शनों के समय कुबेर का खजाना बांटा जाता है। कहा जाता है कि यह खजाना जिसके पास होता है उसे कभी भी धन-धान्य का अभाव नहीं होता।
शंकराचार्य ने की थी अन्नपूर्णा स्त्रोत की रचना
अन्नपूर्णा मंदिर परिसर में कुछ अन्‍य मूर्तियां हैं। इन मूर्तियों का दर्शन साल में किसी भी दिन किया जा सकता हैं। इन मूर्तियों में माता काली, शंकर पार्वती और हिरण कश्यप का अंत करने वाले भगवान नरसिंह की मूर्तियां मंदिर में स्‍थापित हैं। कहा जाता है कि इसी अन्नपूर्णा मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत् की रचना करके ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। श्‍लोक है ‘अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे, ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती. इसमें भगवान शिव माता से भिक्षा की याचना कर रहे हैं’।
नहीं होती अन्न-धन की कमी
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी भक्त धनतेरस के दिन माता अन्नपूर्णा के स्वर्णमयी प्रतिमा के दर्शन करता है और उनसे खजाना प्राप्त कर उसे अपनी तिजोरी या धन स्थान में रखता है, तो देवी अन्नपूर्णा उनके घर में कभी भी अन्न और धन की कमी नहीं होने देती हैं। यही वजह है कि मां का आशीर्वाद लेने के धनतेरस के एक दिन पहले से ही लंबी कतार भक्तों की लग जाती है। दीपावली बाद तक लाइन लगी रहती है। भक्तों की सुरक्षा की दृष्टि से बैरिकेडिंग का निर्माण होने लगा है।

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