लखनऊ। हरियाणा विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने कुर्बानी दी थी और अब बारी कांग्रेस पार्टी की है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के 9 सीटों पर होने वाले उपचुनाव से कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींचने का मन बना लिया है। गठबंधन के तहत जो सीटों उसकी झोली में आई है वहां जीत को लेकर आश्वस्त न होने की वजह से यह फैसला लिया गया है। हालांकि राजनैतिक पंडितों का दावा है कि यूपी का रण छोड़कर भी कांग्रेस फायदे में रहेगी। सूत्रों के अनुसार कांग्रेस यूपी में एक भी सीट पर चुनाव न लड़ने का फैसला कर के सपा को दबाव में ले आएगी। दरअसल, सपा महाराष्ट्र में 12 सीटों की मांग कर रही है। इस तरह कांग्रेस ने बहुत सोची-समझी रणनीति के तहत दांव चला है।
खैर-गाजियाबाद सीट का सियासी समीकरण
गाजियाबाद और खैर ये दोनों सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस लंबे समय से जीत दर्ज नहीं कर पाई है। यदि उपचुनाव में वह इन सीटों पर उतरती है तो भी उसके लिए जीत की संभावनाएं बहुत कम रहेंगी। खैर सीट पर कांग्रेस 44 साल से नहीं जीती तो गाजियाबाद में 22 साल से खाता नहीं खुला। कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्ष के लिहाज से भी दोनों सीटें टफ मानी जा रही है। सियासी समीकरण भी कांग्रेस के पक्ष में नहीं है। खैर सीट पर कांग्रेस आखिरी बार 1980 में चुनाव जीती थी। इसी तरह गाजियाबाद सीट पर कांग्रेस को अंतिम बार 2002 के चुनाव में जीत मिली थी। इन दोनों ही सीटों पर सपा का भी कोई खास जनाधार नहीं है। खैर सीट पर सपा अपना खाता तक नहीं खोल सकी जबकि गाजियाबाद में सिर्फ एक बार उपचुनाव में जीती है। बीजेपी 2017 से लगातार तीन बार से दोनों ही सीटें जीतने में कामयाब रही थी। यही वजह है कि कांग्रेस ने उपचुनाव की दोनों ही सीटों पर सपा को समर्थन करने का ऐलान किया है।
कांग्रेस किन सीटों की कर रही मांग?
उत्तर प्रदेश में 9 सीट पर उप चुनाव होने हैं। कांग्रेस यूपी उपचुनाव में मझवां, मीरापुर और फूलपुर सीट के साथ खैर और गाजियाबाद सीट पर चुनाव लड़ने का दावा कर रही थी। इन पांचों सीट पर बीजेपी और उसके सहयोगी दलों का कब्जा था। कांग्रेस की रणनीति थी कि विपक्षी कब्जे वाली सीटों में से कई सीटों पर मुस्लिम वोटर और अतिपिछड़े वर्ग के मतदाता निर्णायक भूमिका में है। इसमें उसकी कोशिश मंझवा, फूलपुर और मीरापुर सीट को लेकर थी, लेकिन सपा ने इन तीनों ही सीटों को अपने पास रखा और खैर और गाजियाबाद जैसी टफ सीटें वो कांग्रेस को दे रही थी। कांग्रेस का कहना है कि 5 सीटों से कम पर समझौता नहीं होगा। कांग्रेस का दावा है कि सपा हमें हल्के में ना ले। हम सपा के मोहताज नहीं हैं।
कांग्रेस की क्या स्ट्रैटजी?
कांग्रेस की यूपी में मन की मुराद पूरी न होने पर पार्टी ने उपचुनाव लड़ने के बजाय सपा को वॉकओवर देने फैसला किया है। इसके बहाने कांग्रेस ने महाराष्ट्र चुनाव में सपा से डील करने की स्ट्रैटजी बनाई है। कांग्रेस ने सपा के शीर्ष नेतृत्व को यह बता दिया है कि यूपी उपचुनाव में वह नहीं लड़ेगी। सपा इसके बदले महाराष्ट्र में या तो चुनाव न लड़े या फिर लड़े तो बेहद कम सीटों पर एक या दो सीटों पर चुनाव लड़े। महाराष्ट्र में कांग्रेस का सपा साथ दे। इस तरह से कांग्रेस ने सपा के सामने दो ऑफर रखे हैं, लेकिन सपा की तरफ से कोई आधिकारिक जवाब अभी नहीं आया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस यूपी में सपा के साथ जो स्मार्टगेम खेलने की कोशिश कर रही है क्या उसका असर महाराष्ट्र में अखिलेश यादव की मांग पर पड़ेगा या नहीं। क्या यूपी में उपचुनाव का रण छोड़ते हुए भी कांग्रेस, सपा के साथ उसी तत्परता के साथ प्रचार में साथ उतरेगी, जैसा लोकसभा चुनाव में था। इस सवाल का जवाब भी समय के गर्भ में है।
क्या कहती है, सपा-कांग्रेस की पॉलिटिकल केमिस्ट्री
यूपी की सियासत में गठबंधन के प्रयोगों के इतिहास में लोकसभा 2024 के बाद एक और अध्याय दर्ज हो गया। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के गठबंधन के मुकाबले 2024 के चुनाव में सपा-कांग्रेस का गठबंधन ज्यादा प्रभावी दिखा। कांग्रेस और सपा 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन तक मिलकर लड़ी थी। सपा-कांग्रेस की सियासी केमिस्ट्री यूपी लोकसभा चुनाव में हिट रही। सपा के गठबंधन को 37 और कांग्रेस को छह सीटों पर सफलता मिली। दरसल, सपा और कांग्रेस की सियासी जमीन यूपी में एक ही है। सपा का सियासी आधार मुस्लिम वोटबैंक पर टिका है। ऐसे में कांग्रेस को सपा बहुत ज्यादा सियासी स्पेस यूपी में नहीं देना चाहती है, क्योंकि उसकी मजबूती सपा के लिए टेंशन का सबब बन सकती है। इसी तरह महाराष्ट्र में सपा की सियासी मजबूती कांग्रेस के लिए भविष्य में टेंशन बन सकती है।
महाराष्ट्र में सपा ने ठोंक दी ताल, फंसाया पेंच
महाराष्ट्र में चुनाव से पहले जहां महा विकास अघाड़ी के सहयोगी दलों में सीटों को लेकर खींचतान मची हुई है तो वहीं विपक्षी गठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी ने पांच सीटों पर उम्मीदवार घोषित कर ताल ठोंक दी है। इस बीच महाराष्ट्र दौरे पर पहुंचे अखिलेश यादव ने एलान किया कि उनकी पार्टी वहीं चुनाव लड़ेगी जहां जीतने की क्षमता है। जहां यूपी उपचुनाव में कांग्रेस को मिलने वाली दोनों ही सीटों पर उसकी जीत की संभावना नजर नहीं आ रही है। वहीं, सपा महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन के तहत 12 सीटें मांग रही है। सपा की नजर उन्हीं सीटों पर है, जिन पर मुस्लिम वोटर काफी निर्णायक स्थिति में है। सपा ने मुस्लिम बहुल पांच सीटों पर अपने उम्मीदवारों के नाम का ऐलान भी कर दिया है, जिनमें से भिवंडी पश्चिम सीट पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है।
गठबंधन तो बना रहेगा
सपा प्रमुख अखिलेश यादव बार-बार एक ही बात कर रहे थे कि सपा और कांग्रेस साथ है। इंडिया गठबंधन पहले जैसा ही है। इंडिया गठबंधन पीडीए के साथ चलेगा, लेकिन उपचुनाव में कांग्रेस को बिना विश्वास में लिए उम्मीदवार के नामों का ऐलान कर दिया। ऐसे में गठबंधन धर्म निभाने की ज़िम्मेदारी अब उन्होंने कांग्रेस पर छोड़ दी है। अखिलेश ये नहीं चाहते हैं कि लोग कहें कि वे गठबंधन तोड़ने में लगे हैं। अखिलेश यादव बड़ी विनम्रता से कह रहे हैं कि गठबंधन तो बना रहेगा, लेकिन कांग्रेस इस बात को बखूबी समझ रही है। इसीलिए सपा को उसी की तरह जवाब देने के लिए, कांग्रेस ने उपचुनाव लड़ने से कदम पीछे खींचकर महाराष्ट्र की शर्त रख दी है।
यूपी में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और सपा का गठबंधन था। विपक्ष के लिहाज से दलितों और मुस्लिमों की पहली पसंद कांग्रेस रही। जिस सीट पर बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस लड़ी, वहां तो बीएसपी का सफाया ही हो गया। बीजेपी को हराने के लिए बसपा प्रमुख मायावती का वोटबैंक भी कांग्रेस की तरफ चला गया। इसमें जाटव वोटर भी शामिल हैं। आंकड़े बताते हैं कि दलित वोटर को सपा और कांग्रेस में से किसी एक को चुनना पड़ा तो पहली पसंद कांग्रेस हो सकती है।
कांग्रेस ने खेला सियासी दांव
अखिलेश यादव मुस्लिम और दलित समाज के इस मानसिकता से वाकिफ हैं। इसीलिए गठबंधन तोड़ने का ठीकरा वे अपने माथे लेने को तैयार नहीं है। वे ये भी जानते हैं कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का कॉमन वोटबैंक है इसीलिए एक का फायदा तो दूसरे का नुकसान आज नहीं तो कल तय है। अखिलेश यादव का फोकस 2027 का यूपी विधानसभा चुनाव है तो कांग्रेस की नजर भी उसी पर है। अखिलेश कांग्रेस से गठबंधन बनाए रखने के भरोसे के बहाने मुस्लिम और दलितों को अपने साथ साधे रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं, लेकिन कांग्रेस ने भी अब उसी दांव से सपा को चित करने की रणनीति पर कदम बढ़ाया है।