वाराणसी, 13 अक्टूबर 2024, रविवार। दशहरा के बाद काशी में आयोजित हो रहे रामलीला महोत्सव अब समापन की ओर हैं। रावण वध के बाद भरत-मिलाप का मंचन चल रहा है। वाराणसी के नाटी इमली का भरत मिलाप दुनियाभर में बहुत प्रसिद्ध है। तुलसी के दौर से चली आ रही नाटी इमली का ‘भरत मिलाप’ अनूठा है। मान्यता के अनुसार पांच सौ वर्ष पुराने इस ‘भरत मिलाप’ को देखने आज भी यहां लाखों लोग पहुंचे और लीला के साक्षी बने। लीला में रामायण काल में भगवान श्रीराम के अयोध्या पहुंचने और भरत से मिलने के दौरान के दृश्य को वर्णित किया गया। रविवार, 13 अक्टूबर को अस्ताचलगामी सूर्य की किरणों के साथ ‘भरत मिलाप’ संपन्न हुआ।
दिखा रामायण काल सा नजारा
परे भूमि नहिं उठत उठाए बर करि कृपासिंधु उर लाए, श्यामल गात रोम भए ठाढ़े नव राजीव नयन जल बाढ़े। प्रभु श्री रामचंद्र, लक्ष्मण और मां सीता 14 वर्ष वनवास के बाद जब पुष्पक विमान से वापस अयोध्या लौटे तो भरत प्रभु को देख कर भूमी पर लेट जाते हैं और उनके आखों से सागर रूपी करुण कुंदन बहने लगता है। प्रभु श्री राम उनके पास जाते हैं और भरत को उठा कर अपने ह्यदय से लगा लेते हैं। लक्ष्मण और शत्रुघ्न भी 14 वर्षों के बाद एक दूसरे को देखते ही गले लग कर रोने लगते हैं। चारों भाइयों का मनमोहक मिलाप देख कर नाटी इमली भरत मिलाप मैदान में खड़े लीला प्रेमियों की आंखें भी मानों नम हो गईं।
दो मिनट की अद्भुत झलक पाने के लिए घण्टों किया इंतजार
बाबा विश्वनाथ का शहर बनारस अद्भुत है। इस अद्भुत शहर की परंपराएं भी निराली है। दो मिनट के इस अद्भुत लीला को देखने के लिए लाखों लोग वहां घण्टो से इक्कठा रहें। सूर्य ढलने के साथ वाराणसी के नाटी इमली के ऐतिहासिक मैदान में लाखों लोगों के भीड़ के बीच भगवान राम लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का मिलाप हुआ। भक्तों का ऐसा मानना है कि उन्हें इस लीला के पात्रों में साक्षात प्रभु श्री राम के दर्शन होते है। वो क्षण बहुत हो अद्भुत होता है। जिसे लोग जिंदगीभर याद रखतें हैं। काशी के लक्खा मेले में शुमार नाटी इमली के भरत मिलाप में आस्था और श्रद्धा का कोई ओर-छोर नहीं था। हर तरफ बस राम का नाम और उनके जयघोष। आसपास के मकानों की छतों पर श्रद्धालु टकटकी लगाए प्रभु श्रीराम की लीला का वंदन कर रहे थे। श्रद्धालुओं ने चारों स्वरूपों का दर्शन कर आशीर्वाद लिया। स्वरूपों की आरती व्यास ने उतारी।
भरत मिलाप के इसी चबूतरे पर मेघा भगत को श्रीराम ने दिया दर्शन
यहां के ‘भरत मिलाप’ कार्यक्रम को लेकर चित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पंडित मुकुंद उपाध्याय ने बताया कि तुलसीदास ने जब रामचरितमानस को काशी के घाटों पर लिखा उसके बाद तुलसीदास ने कलाकारों को इकठ्ठा कर लीला यहीं से शुरू की थी, मगर उसको परम्परा के रूप में मेघा भगत जी ने ढाला। मान्यता ये भी है की मेघा भगत को इसी चबूतरे पर भगवान राम ने दर्शन दिया था, उसी के बाद यहां ‘भरत मिलाप’ होने लगा।
महाराज बनारस बने साक्षी
काशी के ‘भरत मिलाप’ कार्यक्रम की खास बात ये भी है कि इस कार्यक्रम के साक्षी काशी नरेश बने। हाथी पर सवार होकर महाराज बनारस लीला स्थल पर पहुंचते हैं और देव स्वरूपों को सोने की गिन्नी उपहार स्वरूप देते हैं। इसके बाद लीला शुरू होती है। पूर्व काशी नरेश महाराज उदित नारायण सिंह ने इसकी शुरुआत की थी। सन 1796 में वह पहली बार इस लीला में शामिल हुए थे। बताया जाता है कि, तब से उनकी पांच पीढ़ियां इस परंपरा का निर्वहन करती चली आ रही हैं। वर्तमान में कुंवर अनंत नारायण इस परम्परा को निभाते हुए अपनी आने वाली पीढ़ियों को भी सीख दे रहे हैं।
यदुकुल के कंधे पर रघुकुल
‘भरत मिलाप’ कार्यक्रम में यदुकुल के कंधे पर ही रघुकुल का रथ निकाले जाने की परम्परा इस साल भी निभाई गई। आंखों में सूरमा लगाए सफेद मलमल की धोती- बनियान और सिर पर पगड़ी लगाए यादव बंधु मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का 5 टन का पुष्पक विमान फूल की तरह पिछले सैकड़ों सालों से कंधों के सहारे लीला स्थल तक लाने की परम्परा को निभा रहे हैं।