काशी की बिटिया ने रच दिया इतिहास, जिसे पार न कर सकी हिटलर की सेना, उस यूरोप के माउंट एल्ब्रुस को फतह किया गुंजन ने…
वाराणसी। हिम्मत बुलंद है आपकी पत्थर सी जान रखते हैं, कदमों तले ज़मीन तो क्या आसमां को रखते हैं। ये पंक्तियां काशी की बेटी पर बड़ा मौजू है। ये बात हम यूं ही नहीं कह रहे हैं। रूस पर हमला करने के लिए यूरोप के जिस ऊंची पहाड़ियों पर हिटलर की सेना नहीं चढ़ पाई। उसी पहाड़ पर काशी की बेटी ने न सिर्फ चढ़ाई की बल्कि उस पर देश की आन-बान और शान तिरंगे को लहराया। काशी की गुंजन अग्रवाल ने न सिर्फ अपने सपने को सच कर दिखाया है बल्कि माउंट एल्ब्रुस पर तिरंगा फहराकर काशी सहित भारत को गौरवांवित कर दिया है। गुंजन के इस अचीवमेंट के लिए रूस ने मेडल देकर सम्मानित किया। काशी की बिटिया ने ये मेडल बाबा विश्वनाथ को समर्पित किया।
5642 मीटर ऊंचाई वाले माउंट एल्ब्रुस को फतह करने से पहले गुंजन ने कश्मीर में सोनमर्ग, फिर लद्दाख में कांगयांसेन पर भी चढ़ाई कर चुकी है। काशी की बेटी की इस सफलता के पीछे उनके कोच हीरा सिंह का भी बहुत बड़ा योगदान है। गुंजन बताती है कोरोनाकाल के दौरान वे भी कोविड की चपेट में आ गई थी। उसके बाद डॉक्टर की सलाह पर वर्कआउट और योगा करना शुरू किया। उसी दौरान BLW के मैदान पर उनकी मुलाकात फुटबाल कोच हीरा सिंह से हुई। उन्होनें ही मेरे अंदर का जुनून देखकर पर्वतारोहण की तरफ जाने की सलाह दी। इसके बाद 24 अगस्त को गुंजन रूस पहुंची और 30 अगस्त की आधी रात 12 बजे माउंट एल्ब्रुस पर चढ़ाई शुरू की। सुबह 6:30 पर सूर्योदय की लालिमा के बीच यूरोप की सबसे बड़ी चोटी को फतह करने के साथ तिरंगा फहराया।
48 वर्षीय गुंजन के पति दिव्य पुष्प अग्रवाल एशिया की सबसे बड़ी कालीन नगरी भदोही में कार्पेट एक्सपोर्टर है। गुंजन की एक बेटी व एक बेटा है। बेटा वकालत कर रहा है, वहीं बेटी लॉ की पढ़ाई। गुंजन वाराणसी में ही पांच सालों से बेकरी की शॉप चलाती है। इससे पहले वे 18 साल तक फूलों का बिजनेस किया। गुंजन बताती है वर्ल्ड में सात समिट है, पर अपनी उम्र को देखते हुए मैंने 5 समिट पूरा करने का लक्ष्य बनाया है। तीन साल में तीन पूरे हो चुके हैं, दो बाकी है। कोशिश है कि उन्हें भी पूरा कर लूं।
भारत में कई महिलाएं ऐसी हैं जो विभिन्न क्षेत्रों में उम्दा कार्य कर न केवल अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं, ऐसे में गुंजन की कहानी हाशिये पर रहने वाली महिलाओं के लिए प्रेरणा श्रोत बनेगा। गुंजन के हौसले, जुनून और जज़्बा देखकर बरबस ही दुष्यंत कुमार के इन पंक्तियों की याद दिलाता है ‘इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है, नाव जर्जर ही सही लहरों से टकराती तो है।’ गुंजन के हौसले को न्यूज अड्डा इंडिया का सलाम!
Advertisement
Translate »