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Saturday, June 28, 2025

अरब की सरजमीं पर लहराएगा काशी की संस्कृति का परचम! खाड़ी देशाें में पहली बार गूंजेंगे देववाणी ‘संस्कृत और वेदमंत्र’

वाराणसी। खाड़ी देशाें में पहली बार देववाणी संस्कृत और वेदमंत्र गूंजेंगे। इसके साथ ही वैदिक ज्ञान परंपरा और संस्कृत भाषा का प्रचार व शिक्षण भी होगा। संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय और नव भारत इंटरनेशनल बहरीन साम्राज्य के बीच ऑनलाइन एमओयू (समझौता) पत्र पर हस्ताक्षर हुआ। दोनों देश के विश्वविद्यालय मिलकर भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृति पर सहयोगात्मक शोध कार्य करने की संभावना की खोज करेंगे। कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा और नव भारत इंटरनेशनल डब्ल्यूएलएल किंगडम ऑफ बहरीन के संरक्षक जी. प्रदीप कुमार ने हस्ताक्षर किए।

कुलपति प्रो. शर्मा ने बताया कि बहरीन साम्राज्य और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय भारत में भारतीय संस्कृति, परंपरा, कला, भाषा और विभिन्न सामाजिक सांस्कृतिक और मानवीय गतिविधियों के प्रचार और प्रसार पर मिलकर काम करेंगे। एमओयू वर्चुअल/ऑफलाइन मोड के माध्यम से वैदिक परंपरा ज्ञान और संस्कृत भाषा के प्रचार, शिक्षण, प्रमाणीकरण के उद्देश्य से दोनों पक्षों के बीच हस्ताक्षर किए गए हैं। दोनों संस्थाओं के बीच शैक्षणिक और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देने तथा अनुसंधान एवं नवाचार को भी लाभ प्राप्त होगा। एमओयू पर दोनों संस्थाओं के प्रमुखों के अतिरिक्त बहरीन के बहरीन साम्राज्य के निदेशक रुद्रेश कुमार सिंह एवं रितेश दुबे ने गवाह के रूप में हस्ताक्षर किए।

बहरीन के विद्यार्थियों को होगा लाभ

नव भारत इंटरनेशनल डब्ल्यूएलएल किंगडम ऑफ बहरीन के संरक्षक जी प्रदीप कुमार ने बताया कि भारतीय ज्ञान परंपरा एवं शास्त्रों के संरक्षक के रूप में स्थापित यह संस्था समझौते के अनुसार प्रथम पक्ष है। एमओयू से बहरीन में शास्त्रों में अंतर्निहित ज्ञान तत्वों का अध्ययन-अध्यापन एवं अनुसंधान का लाभ प्राप्त होगा। आज दुनिया के सभी देश भारत और भारतीय ज्ञान परंपरा एवं भारतीय संस्कृति की तरफ उन्मुख हैं। इसी दिशा में बहरीन के भी विद्यार्थियों को दूरगामी लाभ प्राप्त होगा।

समझौते के प्रमुख बिंदु

  • दोनों संस्थान वैदिक ज्ञान-परंपरा और संस्कृत भाषा के प्रचार, शिक्षण, प्रमाणीकरण के उद्देश्य से सहयोग करेंगे।
  • दोनों संस्थान आभासी कक्षाएं, कार्यशालाएं, सम्मेलन आयोजित करेंगे।
  • संकाय सदस्यों के समान आदान-प्रदान के लिए तौर-तरीके निर्धारित किए जाएंगे।
  • दोनों संस्थानों के शोधकर्त्ता विद्वान और शिक्षण संकाय भारतीय ज्ञान परंपरा/भारतीय ज्ञान प्रणाली (आईकेएस) पर सहयोगात्मक शोध कार्य करेंगे।
  • दोनों संस्थान अल्पकालिक संस्कृत पाठ्यक्रम संचालित करेंगे।
  • समझौते की शर्तें पार्टियों द्वारा हस्ताक्षर किए जाने पर तुरंत प्रभावी होंगी।
  • समझौते को तीन महीने की अग्रिम सूचना देकर समाप्त किया जा सकता है।
  • किसी भी विवाद को आपसी चर्चा के आधार पर सुलझाया जाएगा।

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