हिसार से सांसद बृजेंद्र सिंह भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। उनके पाला बदलने की चर्चा दो अक्तूबर को शुरू हो गई थी जब उनके पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह ने जींद की रैली में ऐलान किया था कि जजपा से गठबंधन रहा तो वह भाजपा छोड़ देंगे। उनके इस बयान के बाद से ही माना जा रहा था कि वह और उनके बेटे सांसद बृजेंद्र सिंह कभी भी भाजपा से इस्तीफा दे सकते हैं।
वहीं, भाजपा ने भी मौके को भांप लिया था। भाजपा इस बार जिन सीटों पर उम्मीदवार बदलने वाली है, उनमें हिसार सीट भी है और इसका आभास बृजेंद्र सिंह को भी हो गया था। भाजपा उन्हें सोनीपत लोकसभा से भी उतारने के बारे में सोच रही थी, मगर बृजेंद्र सिंह ने पहले से ही मन बना लिया था कि वह पार्टी में नहीं रहेंगे। भाजपा छोड़ने और कांग्रेस में शामिल होने की पटकथा उनके पिता चौधरी बीरेंद्र सिंह ने ही लिखी है। वह हरियाणा की राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। बांगर-जाट बेल्ट की सीटों पर उनकी पकड़ काफी मजबूत रही है।
बीरेंद्र सिंह साल 1984 में हिसार लोकसभा क्षेत्र से पहली बार सांसद चुने गए थे। वे इनेलो के ओमप्रकाश चौटाला को हराकर पहली बार सांसद बने थे। वह दो बार राज्यसभा सदस्य भी चुने गए। 2014 में भाजपा में शामिल होने के एक साल बाद उन्हें केंद्रीय मंत्री बनाया गया। भले ही वह किसी पार्टी में रहे हो मगर उनके रिश्ते हर दल के नेताओं से रहे हैं। पिछले साल कैथल की इनेलो रैली में भी वह शामिल हुए थे। भूपेंद्र सिंह हुड्डा से भी उनकी दोस्ती छुपी नहीं है। हालांकि चौधरी बीरेंद्र सिंह ने अभी कोई फैसला नहीं किया है। बताया जा रहा है कि वह 25 मार्च को अपने जन्मदिन पर रैली कर बड़ा धमाका कर सकते हैं।
इस्तीफे के पीछे एक यह भी वजह है
भले ही सांसद बृजेंद्र सिंह ने इस्तीफे के पीछे राजनीतिक मजबूरियां गिनाई हो, मगर इस्तीफे की एक वजह उचाना कलां की विधानसभा सीट भी है। उचाना कलां की राजनीति केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह और उनके परिवार के इर्द-गिर्द घूमती आई है। बीरेंद्र सिंह का एक मजबूत वोट बैंक है। यह सीट दुष्यंत चौटाला और चौधरी बीरेंद्र सिंह के लिए नाक का सवाल बनी हुई है। दोनों ही परिवार की स्थिति पर अपना दावा जताते रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में बृजेंद्र ने हिसार में दुष्यंत को हराया। वहीं अक्तूबर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव में, दुष्यंत ने उचाना कलां में बृजेंद्र की मां प्रेमलता को हराया। साल 2014 में प्रेमलता ने दुष्यंत को हराया था। दुष्यंत कई मौकों पर कह चुके हैं कि वह उचाना कलां की सीट किसी भी हालत में नहीं छोड़ेंगे। वहीं, जजपा के साथ भाजपा का गठबंधन होने से बीरेंद्र सिंह परिवार को टिकट पर संशय लग रहा था।
कभी जाट तो कभी गैर जाट को मिलती रही है सीट
हिसार लोकसभा क्षेत्र में करीब 15.76 लाख मतदाता हैं। इस लोकसभा सीट पर 5 लाख से अधिक जाट मतदाता और करीब 5 लाख अनुसूचित व पिछड़ी जातियों के मतदाता हैं। वहीं 80,000 से अधिक ब्राह्मण, 36,000 से अधिक बिश्नोई और 65,000 पंजाबी मतदाता हैं। इसलिए हिसार सीट पर भी कभी जाट तो कभी गैर जाट के उम्मीदवार जीतते आएं हैं। 2004 में कांग्रेस के जयप्रकाश जीते तो 2009 में भजनलाल और 2011 में कुलदीप बिश्नोई जीते। 2014 में दुष्यंत चौटाला और 2019 में बृजेन्द्र सिंह सांसद बने।
भाजपा के अन्य उम्मीदवारों का रास्ता साफ
भाजपा के हिसार सीट से केंद्रीय चुनाव समिति के भेजे गए पैनल में पूर्व सांसद कुलदीप बिश्नोई, पूर्व मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा का नाम शामिल है। चुनावी समीकरणों के हिसाब से कुलदीप बिश्नोई का पलड़ा भारी है। यहां से वह और उनके पिता भजनलाल सांसद रह चुके हैं। वहीं, जातीय समीकरण के हिसाब से देखें तो कैप्टन अभिमन्यु की दावेदारी भी भारी है। यदि पार्टी जाट उम्मीदवार पर दांव लगाती है तो अभिमन्यु पार्टी की पहली पसंद होंगे। संघ ने भी कैप्टन अभिमन्यु के नाम की पैरवी की है। पैनल में विधायक व डिप्टी स्पीकर रणबीर गंगवा का भी नाम शामिल है।