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Saturday, June 21, 2025

बिहार सरकार का दावा है,या बच्चे के दिल में छेद का इलाज फ्री

नौ महीने कोख में रहने के बाद जब बच्चे की किलकारी गूंजती है तो घर में खुशी आती है। इस घर में भी आई थी, भले ही परिवार गरीब था। बेटे के बाद बेटी आई थी। परिवार पूरा हो रहा था। लेकिन, फिर बेटी के दिल में छेद होने की जानकारी सामने आती है तो पिता निरीह होकर अस्पतालों-डॉक्टरों के चक्कर लगाता है। बिहार सरकार का दावा है कि बच्चे के दिल में छेद का इलाज फ्री है और हकीकत है कि पिता को इसका पता नहीं चलता। जहां भी जाता है, इलाज में डॉक्टर-अस्पताल इतना चूस लेते हैं कि मां के गिने-चुने जेवर भी बिक जाते हैं। रोज की कमाई से दवा के पैसे नहीं पूरे हो रहे थे। निरीह पिता निर्मोही बनकर ढाई महीने की बेटी की जान लेने का अंतिम फैसला लेता है। और फिर निर्दयी होकर इसपर अमल भी करता है। कहानी नहीं, यह हकीकत बिहार की राजधानी पटना की है।

बेटी के दिल में छेद था, पिता का दिल नहीं बचा
पटना के कदमकुआं में काजीपुर में रोड नंबर दो स्थित घर में 26 अप्रैल को ढाई महीने की एक बच्ची की लाश प्लास्टिक के बड़े जार में बंद मिली थी। घर के किचन में लाश मिली तो पुलिस भी दंग रह गई। पुलिस को पहले दिन से ही पिता पर शक था। वह सबूत का इंतजार कर रही थी। पहला सबूत पुलिस को बच्ची में गले में लगा कपड़े के रूप में मिला। दरअसल को पुलिस घर की तलाश के दौरान एक फटा हुआ कपड़ा मिला था। यह वही कपड़ा था जो मासूम के गले में था। पुलिस वैज्ञानिक अनुसंधान के दौरान बच्ची के पिता भरत यादव के खिलाफ कई सबूत हाथ लगे। पुलिस ने उससे पूछताछ की। भरत यादव ने जो खुलासे किए वह चौंकाने वाले थे।

बच्ची के इलाज में आ रहे खर्च से परेशान था
भरत यादव ने पूछताछ के दौरान बताया कि वह अपनी बच्ची के इलाज में आ रहे खर्च से परेशान था। वह ठेला पर अंडा बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करता है। इससे इतनी कमाई नहीं हो पाई थी कि बच्ची के दिल के इलाज के लिए और पैसे का इंतजाम करवा पाए। कर्ज भी काफी बढ़ गए थे। अब कर्जदार भी पैसे देने के लिए तैयार नहीं थे। उसके पास कोई रास्ता नहीं बचा था। इसीलिए उसने ऐसा कदम उठाया। हत्या वाले दिन भरत की पत्नी ने उसे बच्ची की देखरेख का जिम्मा देकर नहाने चली गई। इतने में भरत ने मासूम का गला घोंट दिया और प्लास्टिक के डिब्बे में उसकी लाश बंदकर किचन में रख दी। पत्नी नहाकर आई तो बच्ची को खोजने लगी। पहले उसने खूब बहाने बनाए। इसके बाद दोपहर पत्नी और परिजन दबाव बनाने लगे तो पुलिस को फोन किया।

हजार में से 10 बच्चों को दिल की समस्या आती है
डॉक्टर मानें तो हजार में से 10 बच्चों को दिल की समस्या आती है। इसमें किसी के दिल में छिद्र होता है तो किसी की आर्टरी दूसरी तरफ से निकलती है। इन 10 में से दो या तीन मामले काफी गंभीर होते हैं। ऐसे मामलों को मेडिकल साइंस में साइनोटिक और ए-साइनोटिक दो भागों में बांटा गया है। हर साल इस बीमारी से पीड़ित 50-60 बच्चे आते हैं। हालांकि, इसमें से 10 प्रतिशत बच्चों को ही सर्जरी की जरूरत होती है, बाकी मेडिसिन से ठीक हो जाते हैं। बिहार सरकार की ओर से भी इसके लिए सहयता प्रदान की जाती है। हालांकि, अब भी कई जगह प्राइवेट अस्पताल में डॉक्टर दिल में छेद के इलाज को लेकर मरीज से काफी पैसे वसूलते हैं। यह गलत है।

सहायता राशि बिहार सरकार सीधे हॉस्पिटल के खाते में भेजती है
मुख्यमंत्री बाल हृदय योजना के तहत इसका इलाज होता है। इसमें बिहार सरकार अपने खर्च पर दिल में छेद के साथ जन्मे बच्चे का इलाज करवाती है। हर साल बिहार सरकार ने बच्चों को अपने खर्चे पर बेहतरीन अस्पताल में भेजकर इलाज करवाती है। दरअसल बिहार सरकार ने प्रशांति मेडिकल सर्विसेज एंड रिसर्च फाउंडेशन द्वारा संचालित अहमदाबाद स्थित हॉस्पिटल के करार किया है। बाल हृदय योजना के तरह इस ऑपरेशन में आने वाले तक खर्च सरकार देगी। जैसे दिल की छेद वाले बच्चों के सामान्य ऑपरेशन में 1.30 लाख खर्च आते हैं। वहीं ऑपरेशन जटिल है तो सरकार 1.50 लाख रुपये तक खर्ज आते हैं। यह राशि बिहार सरकार सीधे हॉस्पिटल के खाते में देती है। इतना ही नहीं इलाज के दौरान मरीज और उसके परिवार को हॉस्पिटल में सभी सुविधाएं मुफ्त में मिलती है।

बाल हृदय योजना का लाभ पाने के लिए क्या कैसे करें
सबसे पहले बिहार सरकार की वेबसाइट से बाल हृदय योजना ऑनलाइन आवेदन के लिए क्लिक करें.


इसके बाद एक आवेदन पत्र आएगा, लिंक पर क्लिक करके आवेदन पत्र डाउनलोड करें


आवेदन पत्र डाउनलोड करने के बाद सभी जानकारी इसमें दर्ज करें
इसके बाद इस आवेदन पत्र के साथ सभी दस्तावेजों लगाने के बाद संबंधित पते पर पोस्ट कर दें

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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