जयपुर, 29 मई 2025, गुरुवार। जयपुर के एसएमएस अस्पताल में एक ऐसी कहानी लिखी गई, जो दिल को छू जाए और हौसले को सलाम करवाए! 84 साल की बुद्धो देवी ने अपनी 46 साल की बेटी गुड्डी देवी को न सिर्फ़ किडनी दी, बल्कि उसे जिंदगी की एक नई सुबह भी बख्शी। ये मां-बेटी की जोड़ी अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी है, क्योंकि बुद्धो देवी राजस्थान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में सबसे उम्रदराज किडनी डोनर बन गई हैं!
बेटी की सांसों के लिए मां का बुलंद हौसला
गुड्डी देवी अक्टूबर 2024 से क्रॉनिक किडनी डिजीज (CKD) की जंग लड़ रही थीं। डायलिसिस उनकी जिंदगी का हिस्सा बन चुका था। जब डॉक्टरों ने बताया कि दोनों किडनियां अब जवाब दे चुकी हैं और ट्रांसप्लांट ही आखिरी रास्ता है, तब मां बुद्धो देवी ने बिना एक पल सोचे अपने दिल का फैसला सुना दिया। 84 साल की उम्र में किडनी दान करना मेडिकल दुनिया में जोखिम भरा कदम माना जाता है, लेकिन बुद्धो देवी का जज्बा किसी पहाड़ से कम नहीं था।
“मैंने अपनी जिंदगी जी ली है,” बुद्धो देवी ने गर्व भरी मुस्कान के साथ कहा। “अगर मेरे एक अंग से मेरी बेटी की सांसें चलती रहें, तो इससे बड़ा सुख मेरे लिए और क्या हो सकता है?” भरतपुर की इस मां ने न सिर्फ़ अपनी बेटी को जिंदगी दी, बल्कि हर उस इंसान को प्रेरणा दी, जो उम्र को हौसले की राह में रोड़ा समझता है।
गाय का दूध, देसी घी और मेहनत की ताकत
बुद्धो देवी की फिटनेस का राज सुनकर आप भी हैरान रह जाएंगे। सात बीघा जमीन पर खेती, गाय-भैंस की देखभाल, खेतों की ताज़ा सब्जियां, गाय का दूध और घर का बना देसी घी – यही है उनकी सेहत का असली मंत्र! न डायबिटीज, न ब्लड प्रेशर, न कोई और बीमारी। बुद्धो देवी की जिंदादिली और मेहनत ने उन्हें ऐसी ताकत दी कि 84 की उम्र में भी वो एक सुपरहीरो की तरह अपनी बेटी की जिंदगी बचाने निकल पड़ीं।
डॉक्टर भी हुए मां के जज्बे के कायल
एसएमएस अस्पताल के सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट डॉ. धनंजय अग्रवाल ने बताया कि इससे पहले सबसे उम्रदराज डोनर 79 साल की एक दादी थीं, जिन्होंने अपने पोते को किडनी दी थी। लेकिन बुद्धो देवी ने ये रिकॉर्ड तोड़ दिया। “आमतौर पर 60-65 की उम्र के बाद किडनी डोनेशन की सलाह नहीं दी जाती, लेकिन बुद्धो देवी की फिटनेस और मानसिक मज़बूती ने हमें हैरान कर दिया,” डॉ. अग्रवाल ने कहा। “उनका जज्बा इस ट्रांसप्लांट की सबसे बड़ी ताकत बना।”
मां-बेटी की नई शुरुआत
23 मई 2025 को हुई इस जटिल सर्जरी ने मां-बेटी दोनों को नई जिंदगी दी। बुद्धो देवी को महज तीन दिन बाद अस्पताल से छुट्टी मिल गई, जबकि गुड्डी देवी ICU में हैं, लेकिन उनकी हालत स्थिर है। डॉक्टरों का कहना है कि नई किडनी ने काम शुरू कर दिया है, और जल्द ही गुड्डी भी पूरी तरह स्वस्थ होकर घर लौटेंगी। यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. शिवम प्रियदर्शी ने इसे एक मिसाल बताया। “ये कहानी हर उस परिवार के लिए उम्मीद की किरण है, जो उम्र को ऑर्गन डोनेशन की राह में बाधा समझता है,” उन्होंने कहा।
एक मां का प्यार, जो बना इतिहास
बुद्धो देवी की कहानी सिर्फ़ एक मां की नहीं, बल्कि उस अनमोल प्यार की है, जो उम्र, जोखिम और डर की हर दीवार को तोड़ देता है। ये कहानी हमें सिखाती है कि जब दिल में जज्बा हो, तो उम्र सिर्फ़ एक नंबर है, और प्यार से बड़ी कोई ताकत नहीं। बुद्धो देवी ने अपनी बेटी को नई जिंदगी दी, और हमें एक ऐसी प्रेरणा, जो हमेशा याद रहेगी!