रियाद, 5 जुलाई 2025: इस्लामिक देश सऊदी अरब, जिसे मक्का और मदीना जैसे शहरों के लिए जाना जाता है, में पुरातत्वविदों को एक ऐसी खोज ने दुनिया को हैरान कर दिया है, जो इस क्षेत्र की प्राचीन सभ्यता को उजागर करती है। सऊदी अरब की राजधानी रियाद के दक्षिण-पश्चिम में अल-फ़ॉ (Al-Faw) क्षेत्र में 8000 साल पुराना एक मंदिर और प्राचीन शहर के अवशेष मिले हैं, जो नवपाषाण काल (Neolithic Period) से संबंधित हैं। इस खोज से यह स्पष्ट होता है कि इस क्षेत्र में हजारों साल पहले मंदिर संस्कृति और धार्मिक परंपराएं फल-फूल रही थीं।
सऊदी अरब के पुरातत्व विभाग और हेरिटेज कमीशन के नेतृत्व में एक बहुराष्ट्रीय टीम ने इस पुरातात्विक स्थल की खोज की। इस सर्वेक्षण में ड्रोन, रिमोट सेंसिंग, लेजर स्कैनिंग, और जियोफिजिकल सर्वे जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग किया गया। अल-फ़ॉ, जो कभी किंडा साम्राज्य की राजधानी थी, रेगिस्तान के किनारे अल-रुब अल-खाली (The Empty Quarter) में वादी अल-दावासिर से 100 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
मंदिर और धार्मिक अवशेषों की खोज
खुदाई के दौरान तुवैक पर्वतमाला की चोटी पर एक रॉक-कट मंदिर मिला, जिसे ‘खशेम कारियाह’ कहा गया। इस मंदिर में धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़े अवशेष, जैसे पत्थर की वेदी और शिलालेख, प्राप्त हुए हैं, जो यह दर्शाते हैं कि उस समय के लोग पूजा-पाठ और अनुष्ठान करते थे। कुछ शिलालेखों में ‘कहल’ नामक देवता का उल्लेख है, जिसकी पूजा अल-फ़ॉ के लोग करते थे। इसके अलावा, मंदिर में यज्ञ वेदी के अवशेष भी मिले हैं, जो भारतीय मंदिरों की वेदियों की दिशा के समान हैं, जिससे प्राचीन धार्मिक परंपराओं की समानता पर चर्चा शुरू हो गई है।
प्राचीन शहर और जटिल सिंचाई व्यवस्था
मंदिर के साथ-साथ इस स्थल पर एक सुनियोजित शहर के अवशेष भी मिले हैं, जिसमें चार टावरों वाली संरचनाएं शामिल हैं। पुरातत्वविदों ने यहां 2,807 कब्रें भी खोजीं, जो विभिन्न कालखंडों से संबंधित हैं और छह समूहों में वर्गीकृत की गई हैं। इस खोज का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि इस क्षेत्र में, जो आज दुनिया का सबसे शुष्क रेगिस्तानी इलाका है, उस समय एक जटिल सिंचाई प्रणाली थी। नहरें, पानी के कुंड, और सैकड़ों गड्ढे बनाए गए थे, जो बारिश के पानी को खेतों तक पहुंचाने के लिए उपयोग किए जाते थे। यह दर्शाता है कि नवपाषाण काल में अल-फ़ॉ के लोग रेगिस्तानी पर्यावरण में भी जल संरक्षण और कृषि में कुशल थे।
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
इस खोज से यह साबित होता है कि सऊदी अरब में 8000 साल पहले मंदिर संस्कृति और मूर्तिपूजा की परंपरा मौजूद थी। धार्मिक शिलालेखों और चित्रों से उस समय की सभ्यता की गहरी धार्मिक समझ का पता चलता है। कुछ शिलालेखों में ‘माधेकर बिन मुनैम’ नामक व्यक्ति का उल्लेख है, जो उस समय की सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों की कहानी बताता है।
सऊदी अरब में वर्तमान में मंदिर निर्माण पर रोक
हालांकि, वर्तमान में सऊदी अरब एक इस्लामिक देश है, जहां मंदिर निर्माण पर रोक है। यहां रहने वाले हिंदू अपने घरों में ही पूजा कर सकते हैं। हालांकि, पड़ोसी देश यूएई में हाल ही में अबू धाबी में एक भव्य हिंदू मंदिर का उद्घाटन हुआ है, जिसे भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था।
खोज का महत्व और भविष्य
सऊदी अरब हेरिटेज कमीशन का कहना है कि यह सर्वेक्षण और खुदाई इसलिए की जा रही है ताकि देश की प्राचीन विरासत को समझा और संरक्षित किया जा सके। अल-फ़ॉ में शोध कार्य अभी भी जारी है, और पुरातत्वविदों को उम्मीद है कि भविष्य में और भी महत्वपूर्ण जानकारियां सामने आएंगी। यह खोज न केवल सऊदी अरब की प्राचीन सभ्यता को उजागर करती है, बल्कि विश्व स्तर पर नवपाषाण काल की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं को समझने में भी महत्वपूर्ण योगदान देगी।
इस खोज ने सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा बटोरी है, जहां लोग इसे प्राचीन सभ्यताओं और सनातन धर्म से जोड़कर देख रहे हैं। हालांकि, कुछ दावे अतिशयोक्तिपूर्ण हो सकते हैं, और इस खोज को पूरी तरह ऐतिहासिक और पुरातात्विक संदर्भ में समझना जरूरी है।