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Thursday, June 26, 2025

वाराणसी में सोने के सिक्कों के नाम पर 7 लाख की ठगी: लालच और लापरवाही की कहानी

वाराणसी, 5 अप्रैल 2025, शनिवार। वाराणसी के मालवीय ब्रिज (राजघाट पुल) पर एक ऐसी घटना सामने आई है, जो इंसानी लालच और पुलिस की लापरवाही की पोल खोलती है। एक माइक्रो फाइनेंस कंपनी में काम करने वाले शख्स को तीन ठगों ने सोने के सिक्कों का लालच देकर 7 लाख रुपये की चपत लगा दी। अयोध्या में खुदाई के दौरान सोने के सिक्के मिलने का झांसा देकर ठगों ने पीड़ित से एक किलो नकली सिक्कों के बदले मोटी रकम ऐंठ ली और फरार हो गए। इस मामले में पुलिस की सुस्ती भी कम हैरान करने वाली नहीं है। घटना को डेढ़ महीने बीत जाने के बाद भी FIR दर्ज न होने पर पीड़ित को पुलिस कमिश्नर की शरण लेनी पड़ी, तब जाकर कार्रवाई शुरू हुई।

जमीन के सपने और लोन का पैसा

कुशीनगर के रहने वाले प्रदीप कुमार, जो मुगलसराय के जलीलपुर चौकी क्षेत्र में रहते हैं, ने बताया कि वह एफ्को इंफ्राटेक कंपनी में नौकरी करते हैं। जमीन खरीदने का सपना पूरा करने के लिए उन्होंने HDFC बैंक से 7 लाख रुपये का पर्सनल लोन लिया था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। 12 फरवरी को दोपहर ढाई बजे एक शख्स, जिसने अपना नाम प्रजापति बताया, उनके पास आया। उसने दुखड़ा सुनाया कि उसकी मां बीमार है और गरीबी के कारण इलाज नहीं करवा पा रहा। फिर उसने प्रदीप को लालच का ऐसा जाल फेंका, जिससे बच पाना मुश्किल था।

अयोध्या में मिले हैं सोने के सिक्के

प्रजापति ने दावा किया कि अयोध्या में खुदाई के दौरान उसे सोने के सिक्के मिले हैं। उसने कहा, “अगर आप मुझे पैसे दे दें, तो मैं अपनी मां का इलाज करवा लूंगा और खेत को गिरवी से छुड़ा लूंगा।” प्रदीप ने कुछ दिन का समय मांगा, और प्रजापति अपना मोबाइल नंबर देकर चला गया। लेकिन प्रदीप के मन में सस्ते में सोना पाने का लालच जाग चुका था। 14 फरवरी की सुबह प्रजापति ने उन्हें राजघाट पुल पर बुलाया। वहां उसके साथ एक लड़का और एक महिला भी थी। प्रदीप ने उन्हें 7 लाख रुपये नकद थमा दिए और बदले में एक किलो “सोने का सिक्का” ले लिया। ठगों ने सिक्का देकर वहां से रफूचक्कर हो गए।

तनिष्क में खुला सच, पैरों तले खिसकी जमीन

प्रदीप की खुशी उस वक्त मातम में बदल गई, जब वह सुबह 10 बजे तनिष्क शोरूम पहुंचे। वहां दो सिक्कों की जांच में पता चला कि वे नकली हैं। बाकी सिक्के भी चेक कराए तो सारा माल जाली निकला। प्रदीप के होश उड़ गए। वह थक-हारकर मुगलसराय थाने पहुंचे, लेकिन वहां के इंस्पेक्टर विजय बहादुर सिंह ने घटनास्थल आदमपुर का होने की बात कहकर उन्हें टरका दिया।

पुलिस की टालमटोल और डेढ़ महीने की दौड़

प्रदीप उसी दिन आदमपुर थाने गए, लेकिन वहां से भी उन्हें डांटकर भगा दिया गया। मुगलसराय और आदमपुर थाने के बीच पिंग-पॉन्ग की तरह वह डेढ़ महीने तक दौड़ते रहे। आखिरकार, पुलिस कमिश्नर मोहित अग्रवाल को प्रार्थना पत्र देना पड़ा। कमिश्नर की सख्ती के बाद आदमपुर थाने ने बीएनएस की धारा 318(2) और 318(4) के तहत मुकदमा दर्ज किया। अब पुलिस जांच में जुटी है, लेकिन प्रदीप के 7 लाख रुपये और ठगों का कोई सुराग नहीं है।

लालच और लापरवाही का सबक

यह कहानी सिर्फ ठगी की नहीं, बल्कि लालच में अंधे हो जाने और सिस्टम की सुस्ती की भी है। प्रदीप का सपना जमीन खरीदने का था, लेकिन लालच ने उन्हें नकली सिक्कों के भंवर में डुबो दिया। दूसरी ओर, पुलिस की लापरवाही ने पीड़ित की मुश्किलें और बढ़ा दीं। अब सवाल यह है कि क्या प्रदीप को उनका पैसा वापस मिलेगा, या यह घटना एक और अनसुलझी फाइल बनकर रह जाएगी?

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