मुंबई, 7 जुलाई 2025: 1993 के मुंबई दंगों ने शहर को हिलाकर रख दिया था। उन भयावह दिनों की आग की लपटें भले ही बुझ गई हों, लेकिन उस दौर के कुछ घाव अभी भी ताजा हैं। इन्हीं घावों को कुरेदने वाले एक हाई-प्रोफाइल मामले में मुंबई पुलिस ने 32 साल बाद एक बड़ी कामयाबी हासिल की है। दंगों का मुख्य आरोपी, जो तीन दशकों से कानून की आंखों में धूल झोंक रहा था, आखिरकार सलाखों के पीछे पहुंच गया।
कौन है यह भगोड़ा?
आरोपी का नाम है आरिफ अली हशमुल्ला खान, उम्र 54 साल। 1993 में मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों के दौरान इस शख्स पर संगीन आरोप लगे थे। हत्या का प्रयास, गैरकानूनी जमावड़ा और कई अन्य अपराधों के तहत भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं में उसके खिलाफ मामला दर्ज हुआ था। लेकिन जैसे ही कानून का शिकंजा कसने वाला था, हशमुल्ला खान हवा में गायब हो गया। स्थानीय अदालत ने उसे भगोड़ा घोषित कर दिया, और उसकी तलाश सालों तक एक रहस्य बनी रही।
उत्तर प्रदेश में छिपा था ‘शातिर’
32 साल तक पुलिस को चकमा देने वाला हशमुल्ला खान आखिरकार पकड़ा गया। मुंबई पुलिस आयुक्त के निर्देश पर शुरू किए गए विशेष अभियान ने इस भगोड़े की किस्मत का ताला खोल दिया। पुलिस को खुफिया जानकारी मिली कि हशमुल्ला उत्तर प्रदेश में छिपा हुआ है। इसके बाद वडाला पुलिस स्टेशन की एक चुस्त-दुरुस्त टीम ने कमर कसी और उत्तर प्रदेश की ओर रुख किया। वहां मिले सुरागों और एक पुख्ता टिप-ऑफ के आधार पर पुलिस ने मुंबई के वडाला इलाके में दिन बंधूनगर, अन्टॉप हिल से हशमुल्ला को धर दबोचा। यह ऑपरेशन सटीक खुफिया जानकारी और पुलिस की त्वरित कार्रवाई का शानदार नमूना है।
कानून के सामने पेश, अब सलाखों के पीछे
गिरफ्तारी के बाद हशमुल्ला खान को स्थानीय कोर्ट में पेश किया गया। सुनवाई के बाद अदालत ने उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया। यह गिरफ्तारी मुंबई पुलिस के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो पुराने और गंभीर मामलों में फरार आरोपियों को पकड़ने के लिए दिन-रात जुटी हुई है। पुलिस आयुक्त ने सभी थानों को सख्त निर्देश दिए हैं कि ऐसे मामलों में कोई कसर न छोड़ी जाए।
आगे की जांच में क्या खुलेगा?
हशमुल्ला की गिरफ्तारी ने 1993 के दंगों से जुड़े कई सवालों को फिर से हवा दे दी है। पुलिस अब इस मामले की गहराई में उतर रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि क्या इस साजिश में और भी लोग शामिल थे। क्या हशमुल्ला अकेला था, या उसके पीछे कोई बड़ा नेटवर्क काम कर रहा था? इन सवालों के जवाब जांच के अगले चरण में सामने आ सकते हैं।
कानून की लंबी पहुंच
यह गिरफ्तारी न सिर्फ मुंबई पुलिस की मेहनत और लगन का सबूत है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कानून का हाथ कितना लंबा है। 32 साल बाद भी अगर कोई अपराधी बच नहीं सकता, तो यह संदेश साफ है—न्याय भले ही देर से आए, लेकिन वह अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचता है। मुंबई पुलिस की इस जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि अपराध की दुनिया में कोई भी हमेशा के लिए छिप नहीं सकता।