रानी हंसादेवे सहित नौ सौ क्षत्राणियों का अग्नि प्रवेश: राव सातलदेव सोनगरा का बलिदान
मध्यकाल में हुये भीषण विध्वंस और नरसंहार के बीच रोंगटे खड़े कर देने वाली ऐसी अगणित वीरगाथाएँ हैं जिनमें अपने स्वत्व और स्वाभिमान की रक्षा केलिये क्षत्रियों ने केशरिया बाना धारण कर बलिदान दिया और क्षत्राणियों ने अपनी सखी सहेलियों सहित अग्नि में प्रवेश किया । ऐसा ही रोंगटे खड़े कर देने वाला है सिवाणा में जौहर और साका।
इतिहास की पुस्तकों में सिवाणा के किले में दो जौहर और ढाई साके का वर्णन है। यह पहला जौहर और साका दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय हुआ । इसकी तिथियों पर मतभेद हैं पर सितम्बर माह प्रत्येक विवरण में है । दूसरा जौहर और साका मुगल बादशाह अकबर आक्रमण के समय हुआ । दिल्ली के हर शासक की कुदृष्टि सिवाणा किले पर रही है । यह किला जोधपुर के राजाओं के अज्ञातवास का सुरक्षित गुप्त स्थान था। इसकी बनावट तथा पहुँच मार्ग दुर्गम पहाड़ियों से घिरा था इसलिये हमलावर बहुत सरलता से नहीं पहुँच सकते थे । सल्तनकाल में जब भी जोधपुर पर दिल्ली या गुजरात से हमले होते, तब राज परिवार की महिलाओं के लिये सुरक्षित स्थान सिवाणा का किला ही हुआ करता था । किले की दुर्गमता के कारण हमलावर नीचे बस्तियों में लूट खसोट कर लौट जाते थे । सिवाणा का यह किला जालौर के रास्ते में पड़ता था । इसलिये आती जाती सेनाएँ इस किले और बस्ती पर धावा बोलती चलतीं थीं। इस बार सिवाणा पर योजना से हमला हुआ । खिलजी की सेनाओं ने दो हमले किये थे और दोनों ही विफल रहे थे । उसकी सेना को लौटना पड़ा था । एक हमला जुलाई 1308 में अलाउद्दीन खिलजी की फौज नाहर खाँ के नेतृत्व में जालौर पर हमले केलिये जा रही थी। रास्ते में सिवाणा पड़ा। नाहर खान ने सिवाणा पर धावा बोला । यह किला परमार काल में बना था । परमार शासक राजा भोज के पुत्र वीर नारायण पंवार ने दसवीं शताब्दी में यह किला बनबाया था । पहले इसका नाम “कुस्थाना का किला” था। बाद में अपभ्रंश होकर “सिवाणा” हो गया । उन दिनों जालौर पर कान्हड़दे सोनगरा का शासन था और उनके भतीजे सातलदेव सोनगरा सिवाणा की रक्षा के लिये तैनात थे । नाहर खाँ के नेतृत्व में जालौर जा रही खिलजी की सेना ने सातलदेव से समर्पण करने और सेना केलिये रसद और अन्य सुविधाएँ जुटाने का दबाव डाला । सातलदेव सोनगरा एक वीर और पराक्रमी यौद्धा थे । उन्हें पहाड़ों के गुप्त रास्तों से होकर हमलावर सेना पर धावा बोलने में महारथ हासिल थी । जुलाई 1308 को नाहर खाँ के नेतृत्व में खिलजी की सेना ने सिवाणा पर घेरा डाला। यह घेरा लगभग एक महीने रहा । किले में अधिक सेना न थी । फिर भी सैनिकों में हौसला था । एक रात योजना पूर्वक सोनगरा वीरों ने खिलजी सेना पर अचानक धावा बोल दिया । यह धावा इतना अकस्मात हुआ था कि खिलजी की सेना को इसकी भनक तक न लगी और न संगठित होकर मोर्चा लेने का समय मिला । इस धावे से सेनानायक नाहरखाँ सहित हजारों सैनिक मारे गये । पांडालों में आग लगा दी गई । खिलजी के वही सैनिक बच सके जो प्राण बचाकर भाग लिये थे । यह खबर दिल्ली पहुँची। अलाउद्दीन आग बबूला हुआ और बदला लेने के सेनापति कमालुद्दीन के नेतृत्व एक बड़ी सेना सिवाणा पर हमले के लिये रवाना की । यह सेना 10 नवम्बर 1308 में रवाना हुई । कहीं कहीं यह भी लिखा है कि अलाउद्दीन खिलजी स्वयं ही सेना लेकर आया । सेना ने आकर किला घेर लिया । किला अजेय था । लगभग दो वर्ष तक खिलजी की सेना किले पर घेरा रहा । और सेनापति कमालुद्दीन के नेतृत्व में सेना का घेरा सिवाणा पर बना रहा । कमालुद्दीन के नेतृत्व में बीस हजार की फौज घेरा डाले रही । इस बार खिलजी की फौज सतर्क थी जिससे सोनगरा फौज को रात मेंअपनी छापामार लड़ाई का अवसर न मिला । इन दो वर्षों में न सेना हटी और न सातलदेव सोनगरा ने समर्पण किया । हाँ कयी बार गुप्त रास्तों से आकर सेना पर धावा बोलकर परेशान अवश्य कर देते थे । अंततः खिलजी सेनानायक कमालुद्दीन ने किसी विश्वासघाती को खोजा और दुर्ग के पेयजल जलाशय में गोमांस डलवा दिया। अब सातलदेव के सामने दो ही रास्ते थे । एक समर्पण करना और दूसरा केशरिया वाना धारण कर अंतिम संघर्ष करना । उन्होंने रानी हंसादेवे से परामर्श किया और केशरिया वाना पहनकर साका करने का निर्णय लिया । उस समय किले में रानी हंसादेवे सहित कुल नौ सौ महिलाएं थीं इनमें राज परिवार और सैनिक परिवार की महिलाएँ शामिल थीं । रानी हंसादेवे ने जौहर करने की तैयारी आरंभ की और राव सातलदेव सोनगरा ने साॅका करने की। जौहर 25 सितम्बर से आरंभ हुआ और दो दिन चला । 27 सितम्बर भोर के समय रानी हंसादेवे ने अग्नि में प्रवेश किया और किले के द्वार खोल दिये गये सैनिक प्राण हथेली पर लेकर शत्रु सेना पर टूट पड़े । भीषण युद्ध हुआ । सिवाणा के सैनिकों की संख्या केवल एक हजार थी जबकि खिलजी की सेना की संख्या असंख्य थी ।