अयोध्या 30 अप्रैल 2025, बुधवार। अयोध्या, भगवान राम की नगरी, एक बार फिर इतिहास के पन्नों में नया अध्याय जोड़ने को तैयार है। बुधवार को हनुमानगढ़ी के गद्दीनशीन महंत प्रेमदास ने 121 साल पुरानी परंपरा को तोड़ते हुए राम मंदिर में रामलला के दर्शन किए। यह पहला मौका था जब 1904 के बाद हनुमानगढ़ी का कोई गद्दीनशीन महंत 52 बीघे की परिधि से बाहर निकला। यह घटना न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।
परंपरा का टूटना, संतों की सहमति
हनुमानगढ़ी की कठोर नियमावली के अनुसार, गद्दीनशीन महंत को आजीवन 52 बीघे के परिसर से बाहर कदम रखने की मनाही है। इस नियम ने महंत प्रेमदास को राम मंदिर के निर्माण के बाद भी रामलला के दर्शन से वंचित रखा था। लेकिन, उनकी गहरी इच्छा और भक्ति को देखते हुए निर्वाणी अखाड़े के पंचों ने बैठक कर सर्वसम्मति से उन्हें दर्शन की अनुमति दी। अक्षय तृतीया के पावन अवसर पर यह ऐतिहासिक कदम उठाया गया।
शोभायात्रा और उत्साह का माहौल
सुबह 6 बजे हनुमानगढ़ी से गाजे-बाजे और अखाड़े के निशान के साथ महंत प्रेमदास की भव्य शोभायात्रा शुरू हुई। नागा संतों, शिष्यों और श्रद्धालुओं से सजी यह यात्रा पहले सरयू नदी के तट पर पहुंची, जहां महंत ने मां सरयू का पूजन किया। इसके बाद जुलूस राम मंदिर की ओर बढ़ा। रास्ते में जगह-जगह श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा और स्वागत के साथ इस पल को और भी यादगार बनाया। करीब 6 किलोमीटर की दूरी तय कर और सात घंटे तक चले इस कार्यक्रम ने अयोध्या की गलियों को भक्ति के रंग में रंग दिया।
राम मंदिर में दर्शन और परिक्रमा का शुभारंभ
राम मंदिर पहुंचकर महंत प्रेमदास ने रामलला के दर्शन किए और भाव-विभोर हो उठे। उनके साथ अन्य संतों ने रामरक्षा स्तोत्र का पाठ किया और भगवान को 56 भोग अर्पित किए। इस खास मौके पर राम मंदिर की अंतरगृही परिक्रमा का शुभारंभ भी हुआ, जिसे पहली बार वीवीआईपी के लिए खोला गया। यह क्षण न केवल महंत के लिए, बल्कि समस्त राम भक्तों के लिए गर्व और आनंद का था।
नियमावली और सिविल कोर्ट की मर्यादा
हनुमानगढ़ी की यह परंपरा इतनी पवित्र और सख्त है कि इसका पालन सिविल कोर्ट भी करता है। यदि किसी मुकदमे में गद्दीनशीन की गवाही जरूरी हो, तो कोर्ट स्वयं हनुमानगढ़ी पहुंचकर उनका बयान दर्ज करता है। अखाड़े के मुख्तार ही पैरोकार के रूप में अदालत में उपस्थित होते हैं। 1904 से चली आ रही यह मर्यादा अब तक अटूट थी, लेकिन रामलला के प्रति महंत की भक्ति ने इसे नए रूप में ढाला।
एक नया इतिहास
महंत प्रेमदास का यह कदम केवल परंपरा का टूटना नहीं, बल्कि भक्ति और श्रद्धा की जीत है। राम मंदिर के निर्माण के बाद यह पहला अवसर था जब हनुमानगढ़ी और राम मंदिर के बीच का यह आध्यात्मिक सेतु और मजबूत हुआ। अयोध्या की यह घटना हर राम भक्त के दिल में एक नई आस्था और उत्साह का संचार कर रही है। यह पल हमें सिखाता है कि भक्ति के सामने कोई बंधन नहीं टिकता, और प्रेम ही सबसे बड़ा नियम है।