सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक केस की सुनवाई के दौरान यह कहा कि घर में रहने वाली महिलाओं के काम उनके पति के ऑफिस के काम जितना ही महत्वपूर्ण है। एक मोटर वाहन दुर्घटना के मुआवजे को लेकर हो रही सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह सोच कि घर पर रहने वाली महिलाएं काम नहीं करती या फिर वह घर में कोई आर्थिक सहायता नहीं देती, गलत है और अब इससे बाहर आने की जरूरत है। यह कहते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कार दुर्घटना में जान गंवाने वाले एक दंपती के रिश्तेदारों को मिलने वाले मुआवजे की रकम को बढ़ा दिया। हाई कोर्ट ने इस मामले में मृत महिला की आय इसलिए कम आंकी थी क्योंकि वह गृहणी थी।
जस्टिस एनवी रमण की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने कहा कि गृहणियों की कड़ी मेहनत और श्रम के लिए आर्थिक मूल्य तय करना काफी मुश्किल है लेकिन यह महत्वपूर्ण है। जस्टिस रमण ने कहा कि साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत में करीब 16 करोड़ महिलाएं घर संभालती हैं। वहीं, घर संभालने वाले पुरुषों की संख्या सिर्फ 60 लाख के आसपास है।
हाल ही में आई सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि औसतन महिलाएं हर दिन 299 मिनट तक ऐसे घर के काम करती हैं जिनके लिए उन्हें कोई भुगतान नहीं मिलता, वहीं पुरुष घर के कामों के लिए औसतन एक दिन में 97 मिनट देते हैं। महिला खाना बनाती है, राशन या अन्य जरूरी चीजें खरीदती हैं, घर साफ और व्यवस्थित करती है, साज-सजावट का ध्यान रखती है, रखरखाव की जिम्मेदारी लेती है और घर के बच्चों और बड़े-बुजुर्गों को सभी संभालती है।
जस्टिस रमण ने कहा, ‘इन सबके बावजूद यह सोच कि गृहणियां काम नहीं करती या फिर घर में आर्थिक मदद नहीं देती, गलत है और सालों से चली आ रही इस सोच से अब निकलने का समय है।’
पीठ ने मोटर वाहन दुर्घटना के पीड़ितों (हाउसवाइफ पूनम और उनके पति विनोद) के परिवार को 22 लाख की बजाय 33.2 लाख का मुआवजा देने का भी आदेश दिया। हाई कोर्ट ने यह रकम 22 लाख रुपये तय की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आदेश देते वक्त अदालतों को घर पर रहने वाली महिलाओं के अप्रत्यक्ष आर्थिक योगदान को भी ध्यान में रखना चाहिए। उनके काम किसी परिवार की आर्थिक स्थिति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और अब इन्हें पहचान देने की जरूरत है।