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Thursday, September 19, 2024

वित्तीय संकट से जूझ रहे ग़रीब अरब देशों को आईएमएफ़ की कड़ी चेतावनी

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चेतावनी दी है कि अगर अरब देशों में सरकारें तकनीक में निवेश करने और कोरोना महामारी की मार झेल रही अर्थव्यवस्था में तेज़ी लाने के लिए सुधारों को लागू करने में विफल रही तो उनके लिए यह “गँवाया हुआ दशक” बन सकता है.

आईएमएफ के मध्य-पूर्व और मध्य एशिया के निदेशक, जिहाद अज़ूर ने फाइनेंशियल टाइम्स को बताया कि इस क्षेत्र की सरकारें जो घटते संसाधनों, बढ़ते क़र्ज़ और बड़े पैमाने पर युवाओं की बेरोज़गारी की समस्या से जूझ रही हैं, उन्हें “अतीत से सीखना” चाहिए था.

लेबनान के पूर्व वित्त मंत्री अज़ूर ने कहा कि वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, इस क्षेत्र के देशों को औसतन उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अधिक समय लगा.

उन्होंने कहा, “अब संकट यह है कि कुछ देश ऐसे हैं जो 2022 तक अपना 2019 का आउटपुट हासिल नहीं कर सकेंगे और कुछ ऐसे जो उस स्थिति में अगले पाँच सालों तक भी नहीं पहुँच पाएँगे.”पाएँगे.”विरोध प्रदर्शन

“यहाँ तक कि कोरोना वायरस महामारी के आने से पहले भी इस क्षेत्र के ग़रीब तेल आयातक देश अरब विद्रोह के बाद बीते दशक के दौरान उच्च ग़रीबी दर और बेरोज़गारी से निपटने में विफल रहे.”महामारी ने पर्यटन इंडस्ट्री पर पूरी तरह से रोक लगातार इस समस्या को और बढ़ा दिया है. इससे जहाँ एक तरफ़ बेरोज़गारी और विदेशी मुद्रा की कमाई पर असर पड़ा वहीं दूसरी ओर अन्य सेक्टर भी प्रभावित हुए हैं.ट्यूनिशिया के हज़ारों लोगों ने बेरोज़गारी और संभावनाओं की कमी की निराशा में बीते महीने सड़कों पर प्रदर्शन किया, जिससे 2011 के प्रदर्शन की यादें ताज़ा हो गईं.

जिहाद अज़ूर ने चेतावनी दी कि “आर्थिक सुधार में तेज़ी लाने और इस दशक को बर्बाद होने से बचाने के लिए ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर और डिजिटलीकरण में उच्च गुणवत्ता वाले निवेश को लेकर काम अब शुरू हो जाना चाहिए.”covid-19 vaccineGetty ImagesCopyright: Getty Imagesउन्होंने कहा कि कोरोना वायरस से बचाव के लिए सरकारों को अपनी आबादी को वैक्सीन लगवाना चाहिए. कमज़ोर स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करना चाहिए. इसके अलावा सरकारों को भारी कर्ज़ की समस्या को दूर करने और सार्वजनिक व्यय को व्यर्थ खर्च, जैसे- सब्सिडी, से दूर करके स्वास्थ्य, शिक्षा, प्रौद्योगिकी और समग्र विकास और रोज़गार से जुड़े सेक्टर में, विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए.वे कहते हैं, “जब हम राजकोषीय सुधार की बात करते हैं तो इसक मतलब मितव्ययिता से नहीं है. इसे टैक्स सिस्टम में सुधार और वित्तीय बोझ को बांटने से किया जा सकता है. यह अलग अलग देशों में उनकी ज़रूरतों के मुताबिक उपयुक्त जगह पर लगाया जाना चाहिए.”

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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