नई दिल्ली (एजेंसी)। भारत में कोरोना वैक्सीन के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ सीरम इंस्टीट्यूट ने करार किया है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (सीआइआइ) के सीईओ अदार पूनावाला ने एक न्यूज चैनल को बताया है कि एस्ट्राजेनेका से वैक्सीन की 10 करोड़ डोज का समझौता किया गया है। ऐसे में तीसरे दौर का ट्रायल सफल रहने के बाद अगर वैक्सीन को ब्रिटेन के ड्रग रेगुलेटर से आपात मंजूरी मिलती है तो जल्द ही यह वैक्सीन भारत में उपलब्ध हो सकती है। पूनावाला की मानें तो कोविशिल्ड की न्यूनतम 100 मिलियन खुराक जनवरी तक उपलब्ध होगी
सीआइआइ के सीईओ अदार पूनावाला ने यह भी बताया कि फरवरी के अंत तक इस वैक्सीन की सैकड़ों मिलियन डोज तैयार की जा सकती हैं। बेहद खुशी की बात है कि यह कोरोना वैक्सीन परीक्षण में 90 फीसद तक असरदार साबित हुई है। जल्द ही यह व्यापक रूप से सभी के लिए उपलब्ध होगी। मालूम हो कि भारत में सीरम इंस्टीट्यूट के साथ मिलकर बनाई जा रही ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका की वैक्सीन कोरोना संक्रमण से बचाव में 70 फीसद तक असरदार साबित हुई है। तीसरे फेज के ट्रायल के बाद सोमवार को यह एलान किया गया।
सोमवार को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी ने कहा, ‘आज हम लोगों ने कोरोना के खिलाफ लड़ाई में अहम पड़ाव पार कर लिया है। अगर दो तरह के डोज रेजीमेन को मिला लेते हैं तो तीसरे चरण के अंतरिम आंकड़े बताते हैं कि वैक्सीन 70.4 फीसद तक प्रभावी है।’ दो डोज (एक महीने के अंतराल के दौरान पहली आधी-दूसरी पूरी) के रेजीमेन में यह 90 फीसद तक असरकारक रही जबकि एक महीने के अंतराल में दो पूरी डोज देने पर 62 फीसद असरदार रही। दोनों तरह के डोज के आंकड़े एक साथ रखने पर यह वैक्सीन 70 फीसद असरदार रही।
हजारों जिंदगियां बचा सकती है वैक्सीन
ऑक्सफोर्ड वैक्सीन ग्रुप के डायरेक्टर और ट्रायल चीफ एंड्रयू पोलार्ड के मुताबिक, ‘ब्रिटेन और ब्राजील में वैक्सीन के जो नतीजे आए हैं, उससे यह उम्मीद बंधी है कि ये वैक्सीन हजारों जिंदगी बचा सकती है।’ उन्होंने बताया कि डोज के चार पैटर्न में से एक में अगर वैक्सीन की पहली डोज आधी दी जाए और दूसरी डोज पूरी तो यह 90 फीसद तक असर कर सकती है। एस्ट्राजेनेका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से अनुरोध किया है कि वह कम आय वाले देशों में इसके आपात उपयोग की मंजूरी दे।
20 हजार से अधिक वालंटियर पर ट्रायल
ट्रायल में बीस हजार से अधिक वालंटियर शामिल थे। इनमें से आधे ब्रिटेन और आधे ब्राजील के थे। परीक्षण के दौरान देखा गया कि जब वालंटियर को दो हाई डोज दी गई तो यह 62 फीसद असरदार रही। हालांकि जब कम खुराक दी गई तो 90 फीसद तक असरकारक रहीं। अभी यह पता नहीं चल सका है कि यह अंतर क्यों है।
वायरस से बनाई गई है वैक्सीन
ऑक्सफोर्ड वैक्सीन को एक वायरस से बनाया गया है। जिस वायरस का उपयोग वैक्सीन बनाने में किया गया है, वह कॉमन कोल्ड वायरस (एडेनोवायरस) का जेनेटिकली इंजीनियर्ड संस्करण है। एडेनोवायरस के टीकों पर ना केवल दशकों तक बड़े पैमाने पर शोध किया गया है बल्कि उपयोग भी होता रहा है। इस तरह से बनाई गई वैक्सीन का महत्वपूर्ण लाभ यह है कि इसे घरेलू फ्रीज के तापमान (दो से आठ डिग्री सेल्सियस) पर रखा जा सकता है।
दो से आठ डिग्री सेल्सियस पर रख सकते हैं यह वैक्सीन
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी वैक्सीन का कोडनेम एजेडडी1222 है। अगर इसकी तुलना फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन से करें तो यह ना केवल सस्ती होगी बल्कि इसे दो से आठ डिग्री सेल्सियस पर रखा भी जा सकता है। इससे वैक्सीन के वितरण में भी आसानी होगी। बता दें कि फाइजर की वैक्सीन को रखने के लिए माइनस 75 डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होगी। वहीं मॉडर्ना की वैक्सीन की बात करें तो इसे दो से आठ डिग्री (फ्रीज के तापमान) सेल्सियस पर 30 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। हालांकि अगर इसे छह महीने तक सुरक्षित रखना है तो तापमान माइनस 50 से 60 डिग्री होना चाहिए।
500 से 600 रुपये हो सकती ऑक्सफोर्ड वैक्सीन की कीमत
भारत में ऑक्सफोर्ड के साथ वैक्सीन बनाने वाले सीरम इंस्टीट्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने कुछ दिनों पहले मीडिया से बात करते हुए कहा था कि भारत में इस वैक्सीन की कीमत 500 से 600 रुपये हो सकती है। वहीं मॉडर्ना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) स्टीफन बेंसेल ने कहा है कि वैक्सीन के एक डोज की कीमत 25 डॉलर से 37 डॉलर (करीब 1800 रुपये से 2700 रुपये) के बीच होगी। हालांकि कीमत इस बात पर निर्भर करेगी कि कंपनी को कितना बड़ा आर्डर मिला है। फाइजर ने जहां अपनी वैक्सीन की कीमत की घोषणा नहीं की है वहीं स्पूतनिक वी को लेकर यह दावा किया जा रहा है कि यह सबसे सस्ती होगी।
जनवरी तक इस्तेमाल में आएगी यह वैक्सीन
इस बीच ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि यह अविश्वसनीय रूप से रोमांचक खबर है कि ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन ट्रायल में इतनी असरदार साबित हुई है। वहीं ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री मैट हैनकॉक ने कहा कि आंकड़े दर्शाते हैं कि अगर इसकी सही डोज ली जाए तो यह 90 फीसद तक असरदार हो सकती है। हम अगले वर्ष की शुरुआत तक इसका बड़े पैमाने पर उपयोग कर सकेंगे।
फाइजर ने जर्मनी की कंपनी के साथ मिलकर बनाई है वैक्सीन
अमेरिकी फार्मास्यूटिकल्स कंपनी फाइजर ने जर्मनी की कंपनी बायोएनटेक एसई के साथ मिलकर वैक्सीन बनाई है। शुरुआती नतीजों में कंपनी ने कहा था कि उसकी वैक्सीन 90 फीसद से अधिक असरदार है। हालांकि एक सप्ताह बाद कंपनी ने कहा कि अंतिम नतीजों में उसकी वैक्सीन 95 फीसद से अधिक असरदार रही है। 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में यह 94 फीसद से अधिक कारगर है। वैक्सीन के साइड इफेक्ट की बात करें तो इसकी डोज लेने के बाद वालंटियर ने खुमारी, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द की शिकायत की।
मॉडर्ना की वैक्सीन 94.5 फीसद असरदार
इससे पहले फाइजर द्वारा बनाई गई वैक्सीन के 90 फीसद से ज्यादा और मॉडर्ना द्वारा बनाई गई वैक्सीन के 94.5 फीसद से अधिक असरदार होने की बात कही गई थी। मॉडर्ना ने 16 नवंबर को घोषणा की थी कि उसकी वैक्सीन (एमआरएनए-1273) 94.5 फीसद असरदार है। अंतिम चरण के ट्रायल के नतीजों के बाद कंपनी ने यह घोषणा की थी। कंपनी का कहना है कि वह आपात स्थिति में प्रयोग की मंजूरी के लिए एफडीए में आवेदन करने जा रही है।
रूस की स्पूतनिक वी 92 फीसद असरदार
रूस के स्वास्थ्य मंत्रालय ने 11 नवंबर को एलान किया था कि उसकी कोरोना वैक्सीन (स्पूतनिक वी) 92 फीसद असरदार है। रूस का कहना है कि परीक्षण के दौरान किसी तरह के साइड इफेक्ट भी नहीं दिखाई दिए। स्पूतनिक वी के असर को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। एडिनबरा यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर का कहना है कि जिन वालंटियर पर इस वैक्सीन का परीक्षण किया गया, उनमें से मात्र 20 लोगों में कोरोना लक्षण विकसित हुए। हालांकि कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के एक प्रोफेसर का मानना है कि फाइजर वैक्सीन की तरह इसे माइनस 80 डिग्री सेल्सियस पर रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। बता दें कि हाल ही में रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन ने कहा कि वह दो और कोरोना वैक्सीन बना रहे हैं।