असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में मैदान में उतरने पर तृणमूल कांग्रेस की अल्पसंख्यकों पर पकड़ कमजोर हो सकती है। बिहार विधानसभा चुनाव में पांच सीटे जीतने के बाद पार्टी ने बंगाल में किस्मत आजमाने का मन बनाया है।
राज्य में 2011 में वाम मोर्चे को हराने के बाद से ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पार्टी को ही अल्पसंख्यक मतों का फायदा मिला है। एआईएमआईएम के इस फैसले पर पार्टी का कहना है कि ओवैसी का मुसलमानों पर प्रभाव हिंदी और उर्दू भाषी समुदायों तक सीमित है, जो राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का सिर्फ छह प्रतिशत है।
पश्चिम बंगाल में 30 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। कश्मीर के बाद सबसे अधिक मुस्लिम मतदाता बंगाल में ही हैं। अल्पसंख्यक, विशेषकर मुसलमान, 294 सदस्यीय विधानसभा में लगभग 100-110 सीटों पर एक निर्णायक कारक हैं, जो 2019 तक, अपने प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ तृणमूल के लिए हमेशा फायदेमंद रहे है। इनमें से अधिकांश ने पार्टी के पक्ष में मतदान किया है, जो भगवा दल के विरोध में हमेशा उनके लिए ‘विश्वसनीय’ रहे हैं।
वरिष्ठ मुस्लिम नेताओं का कहना है कि एआईएमआईएम के यहां चुनाव लड़ने से समीकरण यकीनन बदल सकता है। मिशन पश्चिम बंगाल के लिए तेलंगाना स्थित पार्टी की विस्तृत योजना के बारे में बात करते हुए, इसके राष्ट्रीय प्रवक्ता असीम वकार ने एजेंसी को बताया कि पार्टी ने राज्य में 23 जिलों में से 22 में अपनी इकाईयां स्थापित की हैं।
वकार ने कहा कि हम बंगाल में विधानसभा चुनाव लड़ेंगे। हम रणनीति तैयार कर रहे हैं। हमने राज्य के 23 जिलों में से 22 में अपनी मौजूदगी दर्ज करा ली है। हमें लगता है कि एक राजनीतिक पार्टी के तौर पर हम राज्य में मजबूत पकड़ बना सकते हैं।
एआईएमआईएम ने पिछले साल नवम्बर में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ रैली में ममता बनर्जी पर परोक्ष रूप से निशाना साधने के बाद से ही दोनों पार्टियों के बीच जंग शुरू हो गई थी, जो अब चुनावी मैदान तक पहुंच गई है।