लखनऊ, 7 जुलाई 2025: लखनऊ में एक सनसनीखेज साइबर अपराध ने सबको चौंका दिया है, जहां फर्जी CBI अधिकारियों ने एक व्यवसायी को वीडियो कॉल पर ‘डिजिटल हाउस अरेस्ट’ में रखकर 47 लाख रुपये की ठगी कर डाली। यह घटना न केवल तकनीकी ठगी का नया चेहरा उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि कैसे साइबर अपराधी डर और भ्रम का जाल बुनकर मासूम लोगों को निशाना बनाते हैं। लखनऊ पुलिस की साइबर क्राइम टीम ने इस मामले में ओडिशा के क्योंझार से दो ठगों, रंजीत कुमार और जयंत कुमार साहू (एक सरकारी टीचर!) को धर दबोचा। चौंकाने वाली बात यह है कि इनके एक कंपनी खाते में हर महीने करीब 5 करोड़ रुपये का लेनदेन होता था।
फर्जी CBI अधिकारी बनकर रचा जल
23 जून 2025 को लखनऊ के व्यवसायी रविन्द्र वर्मा के पास एक अनजान कॉल आई। कॉलर ने खुद को CBI अधिकारी बताते हुए दावा किया कि रविन्द्र का मोबाइल नंबर और आधार कार्ड मनी लॉन्ड्रिंग, ड्रग तस्करी और आतंकवाद जैसे गंभीर अपराधों में इस्तेमाल हुआ है। कॉलर ने धमकाया कि मुंबई के अंधेरी ईस्ट थाने में उनके खिलाफ FIR दर्ज है। बात को और विश्वसनीय बनाने के लिए कॉल को व्हाट्सऐप वीडियो कॉल में बदला गया, जहां एक व्यक्ति पुलिस की वर्दी में नजर आया। उसने रविन्द्र को डराया कि अगर उन्होंने सहयोग नहीं किया, तो जेल की सैर तय है।
फर्जी दस्तावेजों से बढ़ाया डर
साइबर ठगों ने रविन्द्र को व्हाट्सऐप पर फर्जी कोर्ट सीज़र ऑर्डर और गिरफ्तारी वारंट भेजे। उन्हें एकांत कमरे में रहने, परिवार से संपर्क न करने और सुप्रीम कोर्ट के कथित खाते में अपनी 99% संपत्ति ट्रांसफर करने का आदेश दिया गया। डर और दबाव में रविन्द्र ने 47 लाख रुपये अलग-अलग खातों में ट्रांसफर कर दिए।
क्रिप्टोकरेंसी में तब्दील होती थी लूटी रकम
पुलिस की जांच में ठगों का गोरखधंधा सामने आया। आरोपियों ने बताया कि वे फर्जी नामों पर कॉर्पोरेट क्रेडिट कार्ड बनवाते थे, जिन्हें ICICI बैंक की कॉर्पोरेट नेटबैंकिंग और Run Paisa पेमेंट गेटवे के जरिए जयंत साहू की कंपनी Trinav Digital Pvt. Ltd के खातों में ट्रांसफर करते थे। एक ही लेनदेन में 21 जून 2025 को 27 लाख रुपये ‘उदित बलवंतराय’ नामक कार्डधारक के जरिए ट्रांसफर किए गए, जिसे बाद में क्रिप्टोकरेंसी (USDT) में बदलकर आपस में बांट लिया गया। इस पूरे नेटवर्क की जानकारी एक व्हाट्सऐप नंबर (9861275859) पर साझा होती थी।
पुलिस की सख्ती, ठगों का पर्दाफाश
लखनऊ पुलिस की साइबर क्राइम टीम ने त्वरित कार्रवाई करते हुए ओडिशा से दोनों आरोपियों को गिरफ्तार किया। डीसीपी क्राइम कमलेश दीक्षित के मुताबिक, इस गिरोह में देश के अन्य राज्यों के लोग भी शामिल हो सकते हैं। पुलिस अब इस नेटवर्क के अन्य सदस्यों की तलाश में जुट गई है।
सावधानी ही बचाव
यह मामला हमें सिखाता है कि अनजान कॉल्स और डिजिटल धमकियों से सावधान रहना कितना जरूरी है। कोई भी सरकारी एजेंसी फोन पर इस तरह की धमकी या तत्काल पैसे ट्रांसफर करने की मांग नहीं करती। ऐसे में किसी भी संदिग्ध कॉल की सूचना तुरंत पुलिस को दें और अपने धन को सुरक्षित रखें।
लखनऊ पुलिस की इस कार्रवाई ने साइबर अपराधियों के लिए सख्त संदेश दिया है, लेकिन हमें भी अपनी जागरूकता से इस डिजिटल जाल से बचना होगा।