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Thursday, September 19, 2024

पीएम मोदी ने बताया नए कृषि कानून कैसे किसानों के लिए हैं फायदेमंद, मन की बात में अन्नदाताओं को दिया यह संदेश

देश में केंद्र के नए कृषि किसानों के खिलाफ किसानों का विरोध प्रदर्शन चौथे दिन भी जारी है। होम मिनस्टर अमित शाह की अपील के बाद भी किसान दिल्ली के सिंघु, टिकरी, कुंडली और यूपी बॉर्डर पर अपनी मांगों के साथ सड़क पर जमे हुए हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम में किसानों को नए कृषि कानूनों के फायदे बताए हैं। उन्होंने कहा कि नए कृषि कानूनों से न सिर्फ किसानों के अनेक बंधन समाप्त हुए हैं, बल्कि उन्हें नए अधिकार और नए अवसर भी भी मिले हैं।

इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत में खेती और उससे जुड़ी चीजों के साथ नए आयाम जुड़ रहे हैं। बीते दिनों हुए कृषि सुधारों ने किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं। बरसों से किसानों की जो मांग थी, जिन मांगों को पूरा करने के लिए किसी न किसी समय हर राजनीतिक दल ने उनसे वायदा किया था। वो मांगे पूरी हुई हैं।

उदाहरण के जरिए बताया फायदा 

पीएम मोदी ने कहा कि इन अधिकारों ने बहुत ही कम समय में, किसानों की परेशानियों को कम करना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री मोदी ने उदाहरण देते हुए बताया कि कैसे किसानों ने नए कृषि कानूनों का इस्तेमाल किया है। 

उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र के धुले जिले के किसान जितेंद्र भोई जी ने मक्के की खेती की थी और सही दामों के लिए उसे व्यापारियों को बेचना तय किया। फसल की कुल कीमत तय हुई करीब तीन लाख बत्तीस हजार रुपए। जितेंद्र भोइ को पच्चीस 25 हज़ार रुपए एडवांस भी मिल गए थे। तय हुआ कि बाकी का पैसा उन्हें पंद्रह दिनों में चुका दिया जाएगा। लेकिन बाद में परिस्थितियां ऐसी बनी कि उन्हें बाकी पेमेंट नहीं मिला। किसान से फसल लो, महानों-महीनों पेमेंट न करो, संभवत: मक्का खरीदने वाले बरसों से चली आ रही उसी परंपरा को निभा रहे थे। इसी तरह चार महीने तक जितेंद्र का पेमेंट नहीं हुआ। इस स्थिति मेें सिंतंबर में पास हुए नए कृषि कानून उनके काम आए। इस कानून में यह तय किया गया कि फसल खरीदने के तीन दिन में ही, किसान को पूरा पेमेंट करना पड़ता है और अगर पेमेंट नहीं होता है, तो किसान शिकायत दर्ज कर सकता है।        

इसके अलावा प्रधानमंत्री ने देश के नौजवानों से कहा कि मेरा नौजवानों, विशेषकर कृषि की पढ़ाई कर रहे लाखों विद्यार्थियों से आग्रह है, कि वो अपने आस-पास के गावों में जाकर किसानों को आधुनिक कृषि के बारे में और हाल में हुए कृषि सुधारों के बारे में जागरूक करें। उन्होंने आगे कहा कि काफी विचार विमर्श के बाद भारत की संसद ने कृषि सुधारों को कानूनी स्वरूप दिया। इन सुधारों से न सिर्फ किसानों के अनेक बंधन समाप्त हुए हैं, बल्कि उन्हें नए अधिकार और नए अवसर भी भी मिले हैं।

गौरतलब है कि संसद द्वारा मानसून सत्र में पारित तीन कृषि विधेयकों को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद कानूनों के रूप में लागू किया जा चुका है जिनका कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं और बड़ी संख्या किसान सड़कों पर उतर आए हैं।

आपको बता दें कि प्रधानमंत्री का यह बयान तब आया है जब पंजाब और हरियाणा से बड़ी संख्या में किसान केंद्र द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार जब तक इन ‘काले कानूनों’ को वापस नहीं लेगी वो वापस नहीं लौटेंगे। दिल्ली में घुसने को लेकर दिल्ली बॉर्डर पर पुलिस द्वारा किसानों पर वाटर कैनन और आसूं गैस के गोले दागकर उन्हें रोकने की कोशिश की गई। कई जगहों पर बोल्डर रखकर और गढ्ढे खोदकर भी किसानों को रोकने की कोशिश की गई लेकिन किसान नहीं माने। हालांकि उन्हें कई शर्तों के साथ दिल्ली के बुराड़ी इलाके में प्रदर्शन की इजाजत दी गई है लेकिन किसान मानने को तैयार नहीं हैं। फिलहाल वे अपनी मांगों के साथ सिंघू बॉर्डर पर ही जमे हुए हैं।

पराली के निपटारे का भी दिया उदाहरण

इसके अलावा कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने पराली प्रबंधन की बात करते हुए हरियाणा के कृषि उद्यमी वीरेंद्र का जिक्र किया और बताया कि पराली प्रबंधन को कैसे वीरेंद्र ने एक नई दिशा दिखाई है। पराली का समाधान करने के लिए वीरेंद्र ने पुआल की गांठ बनाने वाली स्ट्रॉ बैलर मशीन खरीदी। इसके लिए उन्हें कृषि विभाग से आर्थिक मदद भी मिली।

उन्होंने आगे बताया कि इस मशीन से वीरेंद्र ने पराठी के गठ्ठे बनाने भी शुरू कर दिए। गठ्ठे बनाने के बाद इस पराली को एग्रो एनर्जी प्लांट और पेपर मील को बेच दिया। आप जानकर हैरान रह जाएंगे कि वीरेंद्र ने पराली से सिर्फ दो साल में डेढ़ करोड़ से ज्यादा का व्यापार किया है और उसमें भी लगभग 50 लाख रुपए का मुनाफा कमाया है। यह एक अनोखा उदाहरण है।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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