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Friday, November 22, 2024

छत्तीसगढ़ में पाया गया दुर्लभ कछुआ “ट्रैकेरिनेट हिल टर्टल”, जानें क्या है इसकी खासियत

छत्तीसगढ़ में दुर्लभ कछुआ “ट्रैकेरिनेट हिल टर्टल” पाया गया है। जी हां, टाइगर की भांति शेड्यूल वन में संरक्षित दुर्लभ ट्रैकारिनेट हिल टर्टल जिसे पहाड़ी कछुआ भी कहा जाता है, केशकाल पहाड़ियों एवं उदन्ती सीतानदी टाइगर रिजर्व में पहली बार देखा गया है। इसके बाद इसे रिपोर्ट कर वन विभाग द्वारा दस्तावेजों में शामिल कर लिया गया है।

सब हिमालयन रेंज में पाया जाता है यह दुर्लभ प्राणी

इस संबंध में जिला दुर्ग के डीएफओ धम्मशील गणवीर ने गुरुवार को चर्चा करते हुए बताया कि इस दुर्लभ प्राणी ट्रैकारिनेट हिल टर्टल (पहाडी कछुआ) को उनके द्वारा केशकाल में रहते हुए 6 माह पूर्व रिपोर्ट किया गया था। इस दुर्लभ प्रजाति के बारे में उनके द्वारा शीघ्र ही एक शोध पत्र भी प्रस्तुत किया जाएगा। उन्होंने बताया कि यह दुर्लभ पहाड़ी कछुआ सब हिमालयन रेंज में पाया जाता है, लेकिन अब छत्तीसगढ़ में भी दिखाई देने लगा है। उन्होंने बताया कि कोविड-19 काल में मानवी उपस्थिति वन क्षेत्र में कम हुई है, इसी का परिणाम है कि इस प्रकार के दुर्लभ प्राणी अब यहां दिखाई देने लगे हैं।

दुर्लभ कछुए की ये है पहचान

2017 से 2019 के बीच नोवा नेचर वेलफेयर सोसाइटी द्वारा गरियाबंद, धमतरी और केशकाल के जंगलों मे अध्ययन के दौरान एक दुर्लभ और संकटग्रस्त कछुए की प्रजाति का पता लगाया गया। यह है ट्रैकारिनेट हिल टर्टल (पहाडी कछुआ)। यह औसत 12 से.मी. का कछुआ है, जिसके काले शल्क पर तीन पीली लकीरें होती है। इसी वजह से इसका नाम ट्रैकारिनेट हिल टर्टल पड़ा हैं। यह सामान्य तौर पर समतल जगहों पर मिश्रित वनों में पाया जाता हैं। इसे जंगलों की जमीन पर सर्दियों में देखा जा सकता हैं। इसके करीब जाने पर यह हिस-हिस जैसी आवाज करता है।

इस कछुए की प्रजाति पहले से संकटग्रस्त की सूची में शामिल

इंटरनेशनल यूनियन फ़ॉर कंजरवेशन ऑफ नेचर एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है जो दुनिया में पाये जाने वाले सभी जीवों का वर्गीकरण करता है। वे संकटग्रस्त है या नही। अभी तक राज्य मे कुछ जीव जैसे बाघ, वन भैंसा, एशियाई हाथी, पेंगोलिन या साल खपरि और ढोल इस सूची में शामिल थे। अब राज्य में एक कछुआ भी ऐसा मिला जो संकटग्रस्त की सूची में पहले से शामिल हैं।

इनके संरक्षण पर ध्यान देना बहुत जरूरी

सिर्फ यही नहीं भारतीय वन्यजीव अधिनियम 1972 के अनुसार इसे सूची -एक में रखा गया हैं, जिसका मतलब है इसे उतना ही संरक्षण प्रप्त है जितना की एक बाघ को प्राप्त हैं। संकटग्रस्त जीवों की अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर रोक लगाने वाली संस्था साइट्स ने भी इसे अपनी सूची एक में शामिल किया है, जिससे पता चलता है कि ये प्रजाति संकट में है और इसके संरक्षण में ध्यान देना बहुत जरूरी है।

इस प्रजाति के विलुप्त होने की कगार पर पहुंचने के ये हैं प्रमुख कारण

जंगलों का कम होना, और वनों में लगने वली आग ये बड़े कारण है, जिनसे इनकी जनसंख्या कम हो रही हैं। इस पर जल्द से जल्द अध्ययन कर इसके बारे मे जानकारी जुटाना और इनके संरक्षण ऐक्शन प्लान तैयार करने की जरूरत हैं।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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