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Tuesday, April 23, 2024

कांग्रेस अध्यक्ष के लिए अशोक गहलोत ही पहली पसंद क्यों,जानें राजस्थान सीएम की जादूगरी

अशोक गहलोत। ये नाम आज पूरे देश की सुर्खियों में है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अब देश की सबसे पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस के मुखिया बनने की ओर कदम बढ़ाते दिख रहे हैं। खुद अशोक गहलोत ने एलान कर दिया है कि वह कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगे।

अशोक गहलोत को राजनीति का जादूगर कहा जाता है। अपनी जादूगरी से गहलोत ने बड़े-बड़े सियासतदानों को मात भी दी है। यही कारण है कि अध्यक्ष पद के लिए पहली पसंद अशोक गहलोत ही हैं। यूं तो अध्यक्ष पद की रेस में सांसद शशि थरूर, दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं के होने की भी चर्चा है, लेकिन सबसे ज्यादा मजबूत दावेदारी अशोक गहलोत की ही दिख रही है।

गहलोत की सियासत समझने के लिए उनके शुरुआती जीवन को समझ लीजिए
अशोक गहलोत का जन्म राजस्थान के जोधपुर शहर में तीन मई 1951 को हुआ। इनके पिता लक्ष्मण सिंह गहलोत, जादूगर हुआ करते थे। देश-दुनिया में वह अपनी जादूगरी का करतब दिखाया करते थे। बचपन में अशोक भी उनके साथ बड़े-बड़े मंचों पर जादू दिखाने जाया करते थे।

अशोक गहलोत की प्रारंभिक शिक्षा जोधपुर शहर के प्राथमिक विद्यालय से हुई। इसके बाद उन्होंने जय नारायण व्यास विश्वविद्यालय से विज्ञान और फिर कानून में स्नातक की डिग्री हासिल की। गहलोत ने बाद में अर्थशास्त्र से परास्नातक की पढ़ाई पूरी की। गहलोत की शादी 27 नवंबर 1977 को सुनीता गहलोत के साथ हुई। अशोक गहलोत के एक बेटे वैभव गहलोत और बेटी सोनिया गहलोत हैं। वैभव खुद कांग्रेस नेता हैं।

इंदिरा गांधी के कहने पर कांग्रेस में आए
1971 के युद्ध के दौरान लाखों शरणार्थी भारत आ रहे थे। तब मशहूर डॉक्टर सुब्बाराव कई शहरों में सेवा के काम में लगे हुए थे। अशोक गहलोत भी उनके साथ सेवा कार्यों में लग गए। कहा जाता है कि इसी दौरान तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का दौरा हुआ। उन्हें अशोक गहलोत काफी मेहनती लगे। इंदिरा ने गहलोत को कांग्रेस से जुड़ने के लिए कह दिया और वह मान भी गए। तब अशोक गहलोत की उम्र करीब 20 साल रही होगी।

1972 में अशोक ने स्नातक कर लिया, लेकिन उन्हें नौकरी नहीं मिली। तब घरवालों ने जोधपुर से 50 किलोमीटर दूर पीपाड़ शहर में खाद और बीज की दुकान खुलवा दी, लेकिन धंधा नहीं चला तो अशोक वापस घर वापस लौट आए। फिर उन्होंने आगे की पढ़ाई करने का फैसला लिया। अर्थशास्त्र से परास्नातक की पढ़ाई शुरू की। इस दौरान कांग्रेस के छात्र संगठन एनएसयूआई से भी जुड़ गए। कॉलेज में सचिव पद का चुनाव भी लड़े, लेकिन हार गए। इसके बाद भी वह हार नहीं मानें। जुझारू अशोक गहलोत को राजस्थान एनएसयूआई का अध्यक्ष बना दिया गया। इसी दौरान उनकी मुलाकात संजय गांधी से हुई। अशोक ने संजय के लिए खूब प्रचार किया। दोनों के बीच दोस्ती हो गई।

पहला चुनाव हार गए, लेकिन लड़ना जारी रखा
देश में आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए। अशोक किसी तरह संजय गांधी की मदद से जोधपुर के सरदारपुरा से टिकट हासिल करने में कामयाब हुए। कहा जाता है कि उस दौरान उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए अपनी मोटरसाइकिल चार हजार रुपये में बेच दी थी। तब सामने जनता पार्टी के माधव सिंह उम्मीदवार थे। माधव सिंह ने अशोक गहलोत को 4329 वोटों से हरा दिया। गहलोत मायूस हुए, लेकिन लड़ना जारी रखा। उस वक्त अशोक की उम्र 26 साल थी।

जब पहली बार सांसद और फिर केंद्रीय मंत्री बना दिए गए
ये बात 1980 की है। जनता पार्टी की सरकार तीन साल में ही गिर गई। फिर से पूरे देश में लोकसभा चुनाव हुए। अशोक गहलोत ने जोधपुर लोकसभा से चुनाव लड़ा और विपक्ष के बलवीर सिंह को 52 हजार 519 मतों से पराजित कर दिया। चुनाव जीतने के बाद जब अशोक गहलोत दिल्ली गए तो उन्होंने इंदिरा गांधी को धन्यवाद दिया। इंदिरा भी गहलोत को मानने लगीं थीं। इसका परिणाम दो साल के अंदर ही देखने को मिला। 1982 में इंदिरा गांधी ने कैबिनेट का विस्तार किया और अशोक गहलोत को नागरिक उड्डयन मंत्रालय का उप-मंत्री बना दिया। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तब भी अशोक गहलोत उनके मंत्रिमंडल में रहे।

फिर राजस्थान की राजनीति में सक्रिय हुए
1985 में राजीव गांधी ने अशोक गहलोत को प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर राजस्थान भेजा गया। 1998 में चुनाव हुए और कांग्रेस को बड़ी जीत मिली। 200 सीटों वाले राजस्थान में 153 सीटें कांग्रेस की थी। अशोक गहलोत को इस जीत का तोहफा मिला और उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया गया। तब पहली बार अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे।

हालांकि, पांच साल बाद इसमें बड़ा उलटफेर हुआ। 2003 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 153 से 56 सीटों पर सिमट गई। भाजपा ने 120 सीटें जीतकर सरकार बनाई और वसुंधरा राजे सिंधिया मुख्यमंत्री बनाईं गईं।

फिर देशभर में जादू बिखेरने लगे गहलोत
राजस्थान में चुनाव हारने के बाद गहलोत ने संघर्ष जारी रखा। सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत को दिल्ली बुला लिया। अशोक गहलोत को पार्टी का महासचिव बना दिया गया। इस दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली के प्रभारी भी रहे।
2003 में हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत मिली। 68 सीटों वाले हिमाचल में 43 सीटें कांग्रेस को मिलीं, जो कि पिछले चुनाव से 12 सीटें अधिक थीं।

2003 में ही छत्तीसगढ़ में भी विधानसभा चुनाव हुए। हालांकि, इसमें कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन अशोक गहलोत की भूमिका काफी चर्चा में रही। तमाम सत्ता विरोधी लहर के बावजूद गहलोत की सूझबूझ से कांग्रेस ने 37 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की। उस साल छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार बनी थी।
2003 में ही दिल्ली में हुए विधानसभा चुनाव में भी अशोक गहलोत ने प्रभारी की जिम्मेदारी निभाई और पार्टी ने फिर से सत्ता हासिल कर ली। कांग्रेस की शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनाई गईं थीं।
2008 में राजस्थान में हुए चुनाव में फिर से गहलोत ने बड़ी भूमिका निभाई। तब कांग्रेस राजस्थान के अध्यक्ष सीपी जोशी थे। हालांकि, वह एक वोट से खुद का चुनाव हार गए, लेकिन कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। कांग्रेस के 96 विधायक चुने गए थे। तब सरकार बनाने के लिए गहलोत ने बसपा के छह विधायकों को अपने साथ कर लिया। कांग्रेस हाईकमान ने भी गहलोत को इसका इनाम दिया और उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया।

मोदी लहर में हार गए, लेकिन फिर वापसी कराई
2013 में पूरे देश में मोदी की लहर थी। राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए और इसमें कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। अशोक गहलोत की कई योजनाओं के चर्चा देश-दुनिया में हुई, लेकिन वह अपनी पार्टी को जीत नहीं दिला सके। वसुंधरा राजे सिंधिया फिर से चुनाव जीत गईं। इसके बाद अशोक गहलोत को सोनिया गांधी ने फिर दिल्ली बुला दिया और सचिन पायलट को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। 2018 चुनाव में फिर कांग्रेस को जीत मिली। विधायकों में तालमेल बनाने के लिए कांग्रेस हाईकमान ने फिर से अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि, इससे सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों में काफी नाराजगी देखने को मिली।

कई चुनाव जीत चुके हैं गहलोत
अशोक गहलोत 7वीं लोकसभा (1980-84) के लिए वर्ष 1980 में पहली बार जोधपुर संसदीय क्षेत्र से चुने गए थे। इसके बाद 8वीं लोकसभा (1984-1989), 10वीं लोकसभा (1991-96), 11वीं लोकसभा (1996-98) और 12वीं लोकसभा (1998-1999) में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद सरदारपुरा (जोधपुर) विधानसभा क्षेत्र से जीतने के बाद गहलोत फरवरी, 1999 में 11वीं राजस्थान विधानसभा के सदस्य बने। इसके बाद उनका ये सफर लगातार जारी रहा और उन्होंने 2003, 2008 और 2013 में विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज की। इसके बाद गहलोत 15वीं राजस्थान विधानसभा के लिए 2018 में सरदारपुरा विधानसभा क्षेत्र से ही जीतकर आए।

तीन प्रधानमंत्रियों के साथ किया काम, रणनीति में माहिर
अशोक गहलोत ने केंद्र की राजनीति को भी काफी करीब से देखा। उन्होंने तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम किया। जिनमें इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव शामिल हैं। तीनों के साथ गहलोत केंद्रीय मंत्री के तौर पर थे।

गहलोत संगठन की जिम्मेदारी में भी माहिर हैं। अपनी सूझबूझ से ही 2020 में जब सचिन पायलट के साथ 17 विधायक बागी हो गए थे, तो गहलोत अपनी सरकार बचाने में कामयाब हो गए थे। अगर इनमें से 10 विधायक भी टूटते तो गहलोत सरकार गिर सकती थी, लेकिन गहलोत ने ऐसा नहीं होने दिया। फ्लोर टेस्ट तक में कोई भी विधायक नहीं छिटका।

गुजरात में भी कमाल कर चुके हैं गहलोत
2017 के गुजरात चुनाव में भी कांग्रेस महासचिव के तौर पर अशोक गहलोत ने अहम भूमिका निभाई थी। तब उन्होंने पार्टी अध्यक्ष बने राहुल गांधी की रीलॉन्चिंग की थी। भाजपा लगातार कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप लगा रही थी। इसका सियासी तोड़ निकालने के लिए गहलोत अपने साथ राहुल गांधी को गुजरात के सभी अहम मंदिरों में लेकर गए थे। इस चुनावी मुकाबले में कांग्रेस ने भाजपा को बेहद कड़ी टक्कर दी थी। पिछले पांच चुनावों में यह पहला मौका था, जब बड़ी मुश्किल से सत्ता में लौटी थी। भाजपा विधानसभा में सौ सीटों का आंकड़ा भी नहीं छू पाई थी। जबकि पार्टी ने 150 प्लस का नारा दिया था।

गहलोत ने पिछले चुनावों में भाजपा को न केवल बड़ी बढ़त से रोका, बल्कि कांग्रेस को 16 सीटों पर बढ़त भी दिलाई। पार्टी को 77 सीटों पर जीत मिली, जबकि 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 115 और कांग्रेस ने 61 सीटें जीती थीं। गहलोत ने उस दौरान गुजरात के कई युवा नेताओं को पार्टी से जोड़ा था। इनमें हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर जैसे चेहरे शामिल रहे।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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