पटना | बिहार विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भले ही एनडीए और महागठबंधन के बीच रहा, मगर इस चुनाव में दो और गठबंधन भी थे। इनमें पप्पू यादव की अगुवाई वाला प्रगतिशील लोकतांत्रिक गठबंधन और उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेक्युलर फ्रंट। पप्पू का गठबंधन कुछ खास न कर सका। वे खुद भी मधेपुरा सीट से हार गए। लेकिन दूसरे गठबंधन ने आरजेडी और महागठबंधन की तमाम सीटों का गणित बिगाड़ दिया। ओवैसी और मायावती की बीएसपी ने इसमें बड़ी भूमिका निभाई।
उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी के खाते में भले कोई सीट न आई हो लेकिन उसके गठबंधन की भूमिका इस चुनाव में बेहद महत्वपूर्ण रही। आरएलएसपी ने दिनारा, केसरिया सहित कई सीटों पर अपनी अच्छी उपस्थिति दर्ज कराई। बीएसपी ने यूपी से सटे बिहार के इलाकों में अपना दम दिखाया। रामगढ़ सीट पर बीएसपी के अंबिका सिंह और आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह में कड़ा मुकाबला रहा। वहीं, पार्टी ने चैनपुर सीट पर जीत हासिल की है। गोपालगंज में बीएसपी दूसरे नंबर पर रही। इसके अलावा भोजपुर, शाहाबाद की कई सीटों का चुनावी गणित भी पार्टी ने प्रभावित किया।
ओवैसी ने गड़बड़ाया माय समीकरण
इस चुनाव में ओवैसी बहुत बड़ा फैक्टर बनकर उभरे हैं। मिथिलांचल से लेकर कोसी और सीमांचल के इलाके तक ओवैसी ने गहरा प्रभाव छोड़ा। ओवैसी की पार्टी ने आरजेडी के माय (मुस्लिम-यादव) समीकरण में बड़ी सेंधमारी की। पाच सीट जीतने वाली एआईएमआईएम के प्रत्याशियों ने न केवल मुस्लिम वोट हासिल किए, बल्कि अमौर, वायसी, जोकीहाट सीट पर जीत भी दर्ज की है। कोचाधामन सीट पर भी पार्टी ने जीत हासिल की है। मतलब साफ है कि जेडीयू को जितना नुकसान एलजेपी के कारण हुआ, उससे अधिक झटका ओवैसी और बीएसपी ने आरजेडी व महागठबंधन को दे दिया।
